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वोटर लिस्ट से बना जांच किये ही किसी का नाम अब नहीं हटाया जा सकता। किसी के कहने पर किसी भी व्यक्ति के नाम को मतदाता सूची ने हटाए जाने पर कार्रवाई की जाएगी। ये बातें शीर्ष अदालत ने चुनाव आयोग को निर्देश देते हुए कहा है। सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसले में चुनाव आयोग को निर्देश दिया है कि मतदाता सूची में से किसी भी मतदाता का नाम बिना पर्याप्त जांच और जमीनी स्तर पर वेरिफिकेशन किए बिना नहीं हटाया जाना चाहिए। कोर्ट ने कहा है कि किसी भी नाम को हटाने से पहले नियमानुसार मतदाता को नोटिस भेजना भी जरूरी है।
सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला उन रिपोर्टों के बाद दिया है जिनमें देश भर में बड़े पैमाने पर मतदाताओं के नाम वोटर लिस्ट से गायब होने की बात कही गई है। जिन मतदाताओं के नाम वोटर लिस्ट से गायब पाए गए हैं उनमें अधिकतर अल्पसंख्यक और वंचित समुदाय के लोग हैं। इस बारे में सोमवार को एडीआर के जगदीप चोकर ने दिल्ली में विस्तार से जानकारी दी। उन्होंने बताया कि, “जनप्रतिनिधि कानून 1950 और मतदाता पंजीकरण नियम 1960 के तहत बिना उचित प्रक्रिया के किसी भी मतदाता का नाम वोटर लिस्ट से नहीं हटाया जाना चाहिए। नाम हटाने से पहले सभी मामलों में यह सुनिश्चित करना होगा कि इस बाबत नोटिस जारी किया जाए और उसे मतदाता तक पहुंचाया जाए।” सुप्रीम कोर्ट ने भी इसी बिंदु को रेखांकित किया है कि कोई भी मतदाता इस प्रक्रिया से वंचित न हो।
इसी विषय पर चुनाव आयोग को एक ज्ञापन सौंपा जा रहा है जिसमें कई तरह की मांगें और सुझाव व्यक्त किए गए हैं। इन सुझावों को सिटीजन कमीशन ऑन इलेक्शन ने तैयार किया है जिसके अध्यक्ष सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस मदन लोकुर हैं। ज्ञापन में चुनाव आयोग से आग्रह किया गया है कि वह मतदाता सूचियों का सोशल ऑडिट कर और उसे ऐसी जगह प्रकाशित करे जहां से मतदाता उनका अवलोकन कर सकें। इसे चुनाव आयोग की वेबसाइट पर खोजे जाने लायक डेटाबेस में उपलब्ध कराया जाए। ज्ञापन के अनुसार मतदाताओं को अपनी जानकारियों के साथ ही उनके इलाके के फर्जी मतदाताओं को भी चेक करने की सुविधा उपलब्ध होनी चाहिए।
इसी बाबत सोमवार को सुप्रीम कोर्ट के वकील प्रशांत भूषण ने पत्रकारों से बातचीत में उस मुद्दे को उठाया। उन्होंने इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों को लेकर कई मुद्दों की बात की। उन्होंने कहा कि बहुत से ऐसे मामले सामने आए हैं जब मतदान के बाद ईवीएम अनधिकृत स्थानों या व्यक्तियों के पास पाई गई हैं। इनमें प्रत्याशियों की निजी कार आदि भी, जिससे ईवीएम से छेड़छाड़ का शक पैदा होता है। इसके अलावा कुल मतदान और ईवीएम की गिनती में भी अंतर पाया गया है, जिससे चुनावी प्रक्रिया पर प्रश्नचिह्न लगता है।
ज्ञापन में मांग की गई है कि वीवीपैट सिस्टम को भी नए सिरे से व्यवस्थित किया जाए ताकि मतदाता अपने तरीके से इसका वेरिफिकेशन कर सकें। कहा गया है कि मतदाता को वीवीपैट मतदाता के हाथ में आना चाहिए ताकि वह उसे बिना चिप के मतपेटी में डाल सके ताकि उसका वोट वैध हो सके। इन वीवीपैट स्लिप की पहले सभी निर्वाचन क्षेत्रों में नतीजों का ऐलान होने से पहले पूरी तरह गिनती हो। इस उद्देश्य के लिए वीवीपैट स्लिप का आकार थोड़ा बड़ा करना होगा और इस पर सारी जानकारी इस प्रकार अंकित हो कि उसे अगले पांच साल तक सुरक्षित रखा जा सके।
चुनाव आयोग से यह भी मांग की गई है कि मतदाता पंजीकरण के लिए फार्म 17 ए और मत का रिकॉर्ड के लिए फार्म 17 सी का आपस में मिलान कराकर उसे मतदान के दिन ही वोटिंग खत्म होने के बाद सार्वजनिक करना चाहिए।इस सिलसिले में आरटीआई एक्टिविस्ट अंजलि भारद्वाज ने इलेक्टोरल बॉन्ड के मुद्दे पर चुनाव आयोग के यू-टर्न को लेकर सवाल उठाया। उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग ने 2017, 2018, 2019 में इस संदिग्ध योजना का विरोध किया था, लेकिन 2021 में सुप्रीम कोर्ट के सामने आयोग इसके पक्ष में खड़ा दिखा।
सुप्रीम कोर्ट में 2019 में दाखिल शपथ पत्र में चुनाव आयोग ने कहा कि विभिन्न कानून चुनाव आयोग को चुनावी फंडिंग पर निगाह रखने से रोकते हैं, क्योंकि इसमें दिए गए चंदे का स्रोत बताने का प्रावधान नहीं है। आयोग ने यह भी कहा था कि एफसीआरए (विदेशी चंदा कानून) में किए गए बदलाव के बाद राजनीतिक दलों कों बिना किसी जांच के विदेशी चंदा लेने की अनुमति मिल गई है और ऐसा होने से देश की नीतियों पर विदेशी कंपनियों का प्रभाव होने का संभावना है।
वोटर लिस्ट से अब किसी का नाम नहीं कटेगा ,सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को दिया निर्देश !
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