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जानिए विपक्ष अब बीजेपी का दाव बीजेपी पर कैसे  लागू कर रहा है ?

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अखिलेश अखिल 

अडानी की कहानी कहां चली गई अब लोगों को याद भी नहीं। राहुल की सांसदी खात्मे की कहानी भी ख़त्म हो गई। राहुल को मानहानि मामले में दो साल की सजा मिल गई है और अब मामला हाई कोर्ट में लंबित है। राहुल भी बेफिक्र होकर अपना काम का रहे हैं। अपने मिशन पर लगे हैं। जंतर मंतर पर बैठी देश की पहलवान बेटियां आज भी रुदाली कर रही है लेकिन सरकार बेफिक्र है। अब नया मामला संसद के उद्घाटन का है। पक्ष और विपक्ष में रार मचा है। बीजेपी और सरकार कहती है कि नई संसद का उद्घाटन पीएम मोदी करेंगे और विपक्ष कहता है कि यह उद्घाटन राष्ट्रपति को करना चाहिए। रार मची तो विपक्ष ने उद्घाटन समारोह का बहिष्कार ही कर दिया। यह मामला भी दो दिन बाद ख़त्म हो जायेगा। फिर कोई नया मामला सामने आएगा। देश ऐसे ही चलता है। चलता रहेगा। बीजेपी के समर्थक उनके पक्ष में बयान देते रहेंगे और विपक्ष के समर्थक अपनी बात कहते रहेंगे। लेकिन सब लोकतंत्र की ही बात कहेंगे। कहते रहेंगे।      
लेकिन संसद उद्घाटन की कहानी अब मजे की हो गई है। जो दाव पहले बीजेपी खेल रही थी उसी दाव से विपक्ष बीजेपी को पस्त करने के फ़िराक में है। बीजेपी के दाव से बीजेपी को ही पस्त करने का खेल बड़ा ही मनोरञ्जल्क हो चला है। यह दाव राजनीतिक है। वोट उगाहने का दाव। पहले बीजेपी ने रामनाथ कोविंद को राष्ट्रपति बनाकर दलित कार्ड खेला। चुनाव में भुनाया। वोट का लाभ मिला। फिर आदिवासी समाज से आने वाली दौपदी मुर्मू को महामहिम बनाया। प्रचारित किया गया कि देश में पहली बार किसी आदिवासी को बीजेपी ने ही राष्ट्रपति बनाया। इसके जो भी लाभ हो सकते थे ,बीजेपी ने उठाये। अब बीजेपी के इसी दाव पर विपक्ष वार करना शुरू कर दिया है।                   विपक्ष का कहना है कि देश की पहली महिला आदिवासी राष्ट्रपति को समारोह में न बुलाकर भाजपा ने लोकतंत्र का अपमान किया है।  विपक्षी दलों ने कहा, जब संसद के नए परिसर का भूमि पूजन किया गया, तब भी तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को नहीं बुलाया गया। भाजपा ने कोविंद को राष्ट्रपति बनाकर यह बताने का प्रयास किया था कि वह दलित समाज के हितों का कितना ख्याल रखती है। इसके बाद जब द्रौपदी मुर्मू राष्ट्रपति बनीं, तो भाजपा ने पहली आदिवासी महिला राष्ट्रपति होने का खूब प्रचार किया था। उस वक्त इन दोनों बातों को भाजपा का चुनावी दांव बताया गया। अब राहुल से लेकर केजरीवाल तक ने उसी दांव को भाजपा के खिलाफ चल दिया है। जानकारों का यह भी कहना है कि विपक्षी नेता ‘दलित-आदिवासी’ नाव में सवार हो कर ‘2024’ देख रहे हैं।
              उधर ,ऑल इंडिया आदिवासी कांग्रेस के प्रमुख शिवाजीराव मोघे ने तो यहां तक कह दिया कि संसद भवन के उद्घाटन पर देश की पहली महिला आदिवासी राष्ट्रपति को निमंत्रित नहीं करना, देश के समस्त आदिवासियों का अपमान है। सरकार के इस निर्णय के खिलाफ आदिवासी कांग्रेस ने आज कई राज्यों में प्रदर्शन किया है। उन्होंने तकरीबन वे सभी बातें दोहरा दीं, जो द्रौपदी मुर्मू के राष्ट्रपति बनने पर भाजपा की तरफ से कही गई थीं। भाजपा ने अपने इस कदम से लोकतंत्र को अपमानित किया है। मोघे ने साफतौर पर कहा, मैं नहीं जानता कि क्या यह इसलिए हो रहा है, क्योंकि हम आदिवासी हैं। विपक्षी दलों ने भी अपने संयुक्त बयान में कहा, नए संसद भवन के उद्घाटन पर राष्ट्रपति को न बुलाकर मोदी सरकार ने संसद से लोकतंत्र की आत्मा को ही निकाल दिया है।
                2017 में रामनाथ कोविंद राष्ट्रपति बने, तो भाजपा ने उसे खूब भुनाया था। जब राष्ट्रपति पद के चुनाव में उनकी उम्मीदवारी का एलान हुआ तो भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने कई बार ‘दलित’ शब्द का इस्तेमाल किया था। भाजपा, कोविंद के नाम को इतने एग्रेसिव तरीके से लोगों के बीच ले गई कि विपक्ष को भी दलित समाज से आने वाली मीरा कुमार का नाम आगे करना पड़ा। उसके बाद हुए लोकसभा चुनाव और कई राज्यों के विधानसभा चुनाव में भाजपा को इसका फायदा भी मिला। गत वर्ष जब द्रौपदी मुर्मू, देश की राष्ट्रपति बनीं तो भाजपा ने उन्हें पहली आदिवासी महिला राष्ट्रपति होने का प्रचार प्रसार किया था। यहां तक कि जब कांग्रेस और भाजपा के बीच किसी मुद्दे पर तकरार हुई तो भाजपा ने कहा, कांग्रेस को बर्दाश्त नहीं हो रहा है कि एक आदिवासी महिला देश के सर्वोच्च पर आसीन हुई हैं। भाजपा ने शीर्ष नेतृत्व ने सार्वजनिक मंचों से यह बात कही। तब भी विपक्षी नेताओं ने दबी जुबान में कहा था कि ये सब 2024 के चुनाव में आदिवासी वोट लेने का एजेंडा है।
               संसद के नए भवन के उद्घाटन पर अब विपक्ष ने भाजपा का वही ‘दांव’ भाजपा पर ही चल दिया है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कहा, संसद संवैधानिक मूल्यों से बनती है, न कि अहंकार की ईंटों से। संसद के नए भवन का उद्घाटन राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के हाथों नहीं कराया जाना और समारोह में भी उन्हें आमंत्रित नहीं किया जाना, यह देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद का अपमान है। इसके बाद कांग्रेस नेता एवं राज्यसभा सांसद दिग्विजय सिंह ने मोदी सरकार पर निशाना साधा। उन्होंने कहा, नए संसद भवन का उद्घाटन राष्ट्रपति के हाथों न कराना, देश के सभी आदिवासियों का अपमान है। आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल ने भी कह दिया कि संसद भवन के उद्घाटन समारोह में राष्ट्रपति को न बुलाकर भाजपा ने आदिवासियों और दलित समुदायों का अपमान किया है। राम मंदिर के शिलान्यास पर मोदी सरकार ने तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को नहीं बुलाया। संसद भवन के शिलान्यास पर भी रामनाथ कोविंद को नहीं बुलाया गया। अब नए संसद भवन के उद्घाटन पर मौजूदा राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को नहीं बुला रहे। देशभर की अनुसूचित जातियां और अनुसूचित जनजातियां पूछ रही हैं कि क्या हमें अशुभ माना जाता है, इसलिए उद्घाटन समारोह में नहीं बुलाया जा रहा।
             अब शिवाजीराव मोघे के मुताबिक, इस मुद्दे को सभी राज्यों में लोगों के बीच ले जा रहे हैं। आदिवासी समुदायों की जनसभाएं आयोजित कर उन्हें मोदी सरकार द्वारा किए गए राष्ट्रपति मुर्मू के अपमान की बात बताई जाएगी। आम आदमी पार्टी की ओर से भी यही बात कही गई है। ‘आप’ ने इसमें दलित व पिछड़े समुदायों को भी जोड़ दिया है। केजरीवाल ने कहा, ये दलित, पिछड़ों और आदिवासियों का अपमान है। राजनीतिक जानकारों के मुताबिक, राहुल गांधी और केजरीवाल इस मुद्दे को 2024 तक भुना सकते हैं।

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