अखिलेश अखिल
15 अगस्त को लाल किले की प्राचीर से प्रधानमंत्री मोदी ने एक राष्ट्र एक चुनाव की बात की थी। लेकिन जब दूसरे दिन ही चुनाव आयोग ने चार राज्यों में चुनाव की घोषणा करने के बजाय केवल दो राज्यों जम्मू कश्मीर और हरियाणा में ही चुनाव कराने का ऐलान किया। महाराष्ट्र और झारखंड में बाद में चुनाव कराने की बात कही गई।
अगर पीएम मोदी के एक राष्ट्र एक चुनाव को ही आगे बढ़ाया जाता तो चुनाव आयोग को दिल्ली ,बिहार ,महाराष्ट्र ,हरियाणा और जम्मू कश्मीर में एक साथ चुनाव का ऐलान करना चाहिए था। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। जाहिर बीजेपी अब बाकी राज्यों में चुनाव के लिए तैयार नहीं है।
याद रहे महाराष्ट्र और झारखंड में तो मिसि साल नवम्बर तक चुनाव होने हैं जबकि दिल्ली और बिहार में अगले साल चुनाव होने हैं। लेकिन पीएम मोदी के नारों को अमल किया जाता तो इन राज्यों में भी चुनाव कराये जा सकते थे जो नहीं हो सका। ऐसे में साफ लगता है कि पीएम मोदी का नारा सिर्फ कहने के लिए ही है।
अब थोड़ी जानकारी जम्मू कश्मीर की ले ली जाए। परिसीमन के बाद जम्मू कश्मीर में सात सीट बढ़ने से सीटों की संख्या अब 90 हो गई है। छह सीट जम्मू तो एक सीट कश्मीर घाटी में बढ़ी है। लेकिन मजे की बात है कि इस बार यहाँ जो चुनाव होने जा रहे हैं वह कई मायने में अहम है।
सभी पार्टियां चुनाव जीतने का दम्भ तो भर रही है और अधिकतर पार्टियों का असर भी कई इलाकों में हैं लेकिन दावे के साथ कोई भी पार्टी यह नहीं कह सकती कि चुनाव में उसकी सरकार बनने वाली है। लेकिन पार्टियां डंका जरूर पीट रही है। साफ तौर पर इस राज्य में अभी चुनाव बहुकोणीय होता दिख रहा है।
भाजपा, कांग्रेस, पीडीपी और नेशनल कांफ्रेंस प्रमुख तौर पर मुकाबले मेंदिख रही है । हर पार्टी का असर अलग-अलग क्षेत्रों में स्पष्ट तौर पर दिखता है। इनके अलावा कई छोटी-बड़ी पार्टियां चुनावी मैदान में उतर कर समीकरणों को प्रभावित कर सकती हैं।
सबसे खास बात यह है कि इस बार किसी भी दल का अब तक किसी से गठबंधन नहीं हुआ है। चारों प्रमुख दल अकेले चुनाव लड़ने का दावा कर रहे हैं। यदि ऐसा हुआ तो चुनाव बेहद दिलचस्प हो सकता है। वहीं, भाजपा के लिए मुस्लिम वोट में सेंध लगाने की सबसे बड़ी चुनौती है।
घाटी में कुल 47 सीटें है, जहां मुफ्ती और अब्दुल्ला परिवार का दबदबा माना जाता है। यह चुनाव इन दोनों परिवारों के भविष्य का फैसला भी करेगा। प्रदेश की सत्ता हासिल करने के लिए इन दोनों परिवारों को इस इलाके में बेहतर प्रदर्शन करने के साथ जम्मू की 43 सीटों पर भी सेंधमारी करनी होगी। अभी तक दोनों परिवार अकेले चुनाव में उतरने की बात कह रहे हैं। ऐसे में इन सीटों पर कांग्रेस के उम्मीदवारों पर सबकी नजर होगी। कांग्रेस का वोट बैंक भी लगभग इन दोनों दलों के जैसा ही है।
हिंदू बाहुल्य जम्मू क्षेत्र में भाजपा की पकड़ मजबूत मानी जाती है। यहां सीटों की संख्या 37 से बढक़र 43 होने से भाजपा को फायदा मिल सकता है। बढ़ी हुई सीटों को हिन्दू बाहुल बताया जा रहा है।
हाल में लोकसभा चुनाव में भाजपा ने दो सीटों पर चुनाव जीता है। वहीं यहां कांग्रेस टक्कर में रहती आई है। यदि नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी के यहां उम्मीदवार खड़ा करती है तो कांग्रेस के लिए परेशानी खड़ी हो सकती है। जबकि भाजपा को फायदा मिल सकता है।