बीरेंद्र कुमार झा
मोदी सरकार कोटा के अंदर कोटा को लेकर विचार कर रही है। यह अनुसूचित जाति के कोटे पर लागू होगा।सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार अनुसूचित जनजाति श्रेणी के भीतर कुछ जातियों के लिए एक अलग कोटा तय किया जा सकता है।सरकार यह सुनिश्चित करना चाहती है कि कुछ प्रभावशाली अनुसूचित जाति जाति समुदाय तक ही इसका लाभ सीमित न रह जाए। सूत्रों के मुताबिक तेलंगाना में माडिगा समुदाय की मांग पर केंद्र सरकार इस संदर्भ में विचार कर सकती है।
अनुसूचित जातियों में प्रभावशाली जाति ही उठा लेते हैं ज्यादातर लाभ
तेलंगाना में अनुसूचित जाति समुदाय की कुल आबादी 17% है। इसमें से माडिगा की आबादी लगभग 50% है ।उनका तर्क है कि अनुसूचित जाति को मिलने वाले लाभों में अधिकांश अवसरों पर प्रभावशाली समुदाय माला का कब्जा हो जाता है, इसलिए उन्होंने अपने लिए एक अलग कोटा की मांग करते हुए एक आंदोलन शुरू किया है। अन्य राज्यों में भी माला जैसे उदाहरण मिलते है जैसे कि बिहार में पासवान और यूपी में जाटव का अनुसूचित जाति समुदाय के भीतर बोलबाला है।
केंद्र के मंत्रालयों की चर्चा
सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार इस मुद्दे पर केंद्र सरकार के प्रमुख मंत्रालय चर्चा कर रहे हैं। यदि सरकार किसी राज्य या देशभर में अनुसूचित जाति के अंदर एक कोटा बनाने का निर्णय लेती है,तो उसे संविधान के अनुच्छेद 341 में संशोधन करने की आवश्यकता होगी।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार
सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार अनुसूचित जाति के मामले में कोटा के अंदर कोटा की व्यवस्था के लिए कानून भी एक विकल्प है। सरकार को सुप्रीम कोर्ट की एक बड़ी पीठ के गठन का इंतजार करना है। एक याचिका में अदालत से ऐसा करने का अनुरोध किया गया है। सरकार को सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार है।
गौरतलब है कि केंद्र सरकार ने ओबीसी के लिए ऐसी कवायद पहले से ही शुरू कर दी है।रोहिणी आयोग की स्थापना की गई,जिसकी रिपोर्ट 31 जुलाई को प्रस्तुत की गई थी। 2024 के आम चुनाव से पहले राजनीतिक अनिवार्यता को देखते हुए यह रिपोर्ट फिलहाल लटकी हुई है।
कोटा के अंदर कोटा पर हुए हैं खूब विवाद
2004 में सुप्रीम कोर्ट की एक संविधान पीठ ने अनुसूचित जाति के भीतर कोटा के लिए आंध्र प्रदेश के कानून को रद्द कर दिया था। 2020 में सुप्रीम कोर्ट की 5 न्यायाधीशों की पीठ ने माना कि राज्य के पास ऐसा करने की शक्ति है, लेकिन मुख्य न्यायाधीश से मामले को 7 या अधिक न्यायाधीशों की पीठ को सौंपने का अनुरोध किया। यह मामला अभी भी लंबित है। 1994 में हरियाणा में, 2006 में पंजाब और 2008 में तमिलनाडु जैसे राज्य अनुसूचित जाति के भीतर कोटा लागू करने के लिए आगे बढ़े थे, लेकिन सुप्रीम कोर्ट में फैसला लंबित होने के कारण ऐसा नहीं कर पाए।
मार्च 2000 में सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दायर किया गया है। इसके अनुसार 14 राज्य इससे असहमत थे जबकि 7 राज्य और केंद्र अनुसूचित जाति जाति में कोटा के अंदर कोटा पर सहमत हुए थे ।सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार सरकार के भीतर एक वर्ग ने इसका समर्थन करते हुए तर्क दिया कि आंकड़े इस बात की गवाही दे रहे हैं कि अनुसूचित जाति के भीतर कुछ समुदायों को लाभ का बड़ा हिस्सा मिलता है।
कोटा के अंदर कोटा की शुरआत से सरकार की बढ़ सकती है परेसानी
गौरतलब है कि ओबीसी की तरह एससी और एसटी के लिए कोई क्रीमी लेयर नहीं है। मराठा, पटेल और जाट जैसी समूह की ओर से भी ओबीसी की मांग दर्जे की मांग की जा रही है ।इसलिए सरकार के लिए अनुसूचित जाति कोटा के अंदर कोटा वाला यह कदम जोखिम भरा भी साबित हो सकता है।