Homeदेशमंत्रिमंडल के शपथ ग्रहण समारोह के बाद लोकसभा स्पीकर पर है खींचतान

मंत्रिमंडल के शपथ ग्रहण समारोह के बाद लोकसभा स्पीकर पर है खींचतान

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18 वीं लोकसभा चुनाव को लेकर आए जनादेश ने बीजेपी को पूर्ण बहुमत नहीं दिया, लेकिन एनडीए को सरकार गठन के लिए पूर्ण बहुमत दिया। ऐसे में पहले तो एनडीए के अंदर घटक दलों के बीच मंत्रिमंडल गठन के सवाल पर खींचतान हुई।इसके बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तयशुदा मंत्रिमंडल के साथ पद और गोपनीयता की शपथ ले ली तो अब एक नया और महत्वपूर्ण सवाल लोकसभा अध्यक्ष को लेकर बन गया है कि लोकसभा अध्यक्ष का पद एनडीए के घटक दलों में किसे मिले। इस सवाल को लेकर एनडीए के घटक दलों के बीच खींचतान जारी है गौरतलब है कि इस चुनाव में किंग मेकर के रूप में उभरी तेलगु देशम और जेडीयू दोनों ही इस महत्वपूर्ण पद पर नजर गड़ाए हुए है तो वहीं बीजेपी भी इस महत्वपूर्ण पद को आसानी से छोड़ने के मूड में नहीं दिखती है।

लोकसभा अध्यक्ष के चुनाव की विधि

संविधान के अनुसार नई लोकसभा की पहली बार बैठक से ठीक पहले लोक सभा अध्यक्ष का पद खाली हो जाता है और राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त प्रोटेम स्पीकर नए सांसदों को पद की शपथ दिलाता है। इसके बाद लोकसभा अध्यक्ष का चुनाव साधारण बहुमत से होता है। वैसे तो लोकसभा अध्यक्ष के रूप में चुने जाने के लिए कोई विशेष पैमाना नहीं है, लेकिन इसके लिए संविधान और संसदीय नियमों का समझ होना जरूरी है।पिछले दो लोकसभा में बीजेपी को स्पष्ट बहुमत मिली थी।तब बी जे पी ने 2914 में सुमित्रा महाजन को और 2019 में ओम बिरला को अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी सौंपी थी।

क्यों महत्वपूर्ण होता है लोकसभा अध्यक्ष का पद

लोकसभा अध्यक्ष का पद एक संवैधानिक पद है।संसद में उनकी भूमिका निर्णायक होती है।एन चंद्रबाबू नायडू और नीतीश कुमार अध्यक्ष का पद पर नजर गड़ाए हुए हैं ।पिछले कुछ सालों में सत्तारूढ़ पार्टियों के भीतर आपसी मतभेद के कई मामले सामने आए, जिसके कारण पार्टियों में फूट पड़ गई और यहां तक की सरकार है भी गिर गई ।ऐसे मामलों में दल बदल विरोधी कानून लागू होता है। यह कानून सदन के अध्यक्ष को बहुत शक्तियां देता है ।कानून के अनुसार सदन के अध्यक्ष के पास दल बदल के आधार पर सदस्यों की अयोग्यता से संबंधित मामलों को तय करने का पूर्ण अधिकार है। दरअसल नीतीश कुमार ने पहले भी बीजेपी पर अपनी पार्टी को तोड़ने की कोशिश करने का आरोप लगाया है,इसलिए वह किसी बगावत के मूड में नहीं आना चाहती है और स्पीकर का पद ऐसे किसी भी चाल के खिलाफ एक ढाल के तौर पर पाना चाहते हैं।

चुनौती भरा पद है लोकसभा अध्यक्ष का

लोकसभा अध्यक्ष के पद को एक पेचीदा पद माना जाता है। सदन को चलाने वाले व्यक्ति के रूप में अध्यक्ष का पद निरपेक्ष मान जाता है, लेकिन इस पद पर बैठने वाला व्यक्ति किसी विशेष पार्टी से ही चुनकर संसद में आते हैं। इससे टकराव होने की संभावना बढ़ जाती है। पूर्व के कुछ दिलचस्प सुधारो की बात करें तो कांग्रेस के दिग्गज नेता एन संजीव रेड्डी ने चौथी लोकसभा के अध्यक्ष चुने जाने के बाद कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया था। पीए संगमा सोमनाथ चटर्जी और मीरा कुमार जैसे अन्य लोगों ने औपचारिक रूप से पार्टी से इस्तीफा नहीं दिया लेकिन उन्होंने कहा कि वे पूरे सदन के हैं, किसी पार्टी के नहीं ।इतना ही नहीं 2008 में यूपीए सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव के दौरान निरपेक्षता दिखाने की वजह से सीपीएम ने सोमनाथ चटर्जी को निष्कासित कर दिया था।

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