नवरात्रि के चौथे दिन माता कूष्मांडा की पूजा की जाती है। माता कूष्मांडा को सौरमंडर की अधिष्ठात्री देवी कहा जाता है। धर्म शास्त्रों के मुताबिक अपनी मंद मुस्कान से देवी ने पिंड से ब्रह्मांड तक का सृजन कर दिया था। इसलिए माता के इस स्वरूप को कूष्मांडा कहा जाता है। माता का ये स्वरूप बहुत ही तेजस्वी माना जाता है।
शास्त्रों में मां कूष्मांडा को अष्टभुजा देवी के नाम से भी संबोधित किया गया है। इनके हाथों में धनुष, बाण, चक्र, गदा, अमृत कलश, कमल और कमंडल सुशोभित है.आठवें हाथ में वे सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली जप माला धारण करती हैं। शास्त्रों में बताया गया है कि जब सब जगह अंधकार ही अंधकार था, तब माता ने अपने इस स्वरूप से ब्रह्मांड का सृजन किया था। माता कूष्मांडा शेर की सवारी करती हैं।
माता कूष्मांडा की पूजा से रोग, शोक और तमाम दोषों को दूर करने की शक्ति प्राप्त होती है। यश, बल और धन में भी वृद्धि होती है। इसके अलावा बुद्धि का विकास होता है और निर्णय लेने की क्षमता बेहतर होती है। कूष्मांडा का अर्थ है कुम्हड़ा, जिससे पेठा तैयार होता है। माता कूष्मांडा की पूजा में कुम्हड़ा की बलि देने से माता अत्यंत प्रसन्न होती हैं।