अखिलेश अखिल
सुप्रीम कोर्ट में राजद्रोह पर दायर याचिका की सुनवाई को अब अगस्त टाल दिया गया है। एक मई को इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान सरकार के एजी वेंकटरमानी ने अदालत को बताया था कि राजद्रोह को अपराध बनाने वाली आईपीसी की धारा 124 ए पर समीक्षा की जा रही है। यह सुनवाई इसलिए टाली गई ताकि एजी वेंकटरमानी का पक्ष भी जाना जाए। ऐसे में अब सवाल उठ रहे हैं कि क्या यह कानून अब ख़त्म हो जाएगा ?
बता दें कि इसी यचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 11 मई 2022 को राजद्रोह कानून पर रोक लगा दी थी। और बाद में इसे 31 अक्टूबर 2022 को आगे बढ़ा भी दिया गया था। उस समय तत्कालीन सीजेआई एनवी रमना की पीठ ने कहा था कि रजद्रोह के इस्तेमाल पर रोक लगा दिया जाए और पुनर्विचार तक राजद्रोह कानून के तहत कोई नया मामला दर्ज न हो। इस पीठ ने यह भी कहा था कि इस धारा की कठोरता वर्तमान समाज के लिए ठीक नहीं है। जबतक धारा 124 ए के प्रावधानों की पूरी तरह से जांच नहीं हो जाती तब तक इस कानून के प्रावधानों का उपयोग करना सही नहीं है। इसके साथ ही अदालत ने यह भी कहा था कि राजद्रोह की सीमा को परिभाषित करे.
लेकिन आज तक इसे परिभाषित नहीं किया गया है। अब अगस्त के बाद इस पर सुप्रीम कोर्ट क्या कुछ निर्णय लेता है इसे देखने की बात होगी। बता दें कि इस कानून के खिलाफ एडिटर्स गिल्ड ऑफ़ इंडिया ,अरुण शौरी ,मेजर जेनरल एस जी वोमबटकेरे और पीयूसीएल ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर कहा था कि असहमति को दबाने के लिए सर्कार राजद्रोह कानून का इस्तेमाल कर रही है और उसे अपना हथियार बनाकर लोगों को जेल में डाल रही है।
गौरतलब है क भारत अकेला ऐसा देश नहीं जहां राजद्रोह कानून लागू हैं। भारत के अलावा ईरान, अमेरिका, सऊदी अरब, ऑस्ट्रेलिया, मलेशिया जैसे कई देशों में इस कानून का प्रचलन है।
भारत में भी भारतीय दंड संहिता की धारा 124-ए राजद्रोह या देशद्रोह से संबंधित है। इस धारा के अनुसार कोई भी व्यक्ति जो बोलकर, लिखकर, इशारों या चिन्हों के जरिये या किसी और माध्यम से नफरत फैलाता है, अवमानना करता है, लोगों को उत्तेजित करता है या असंतोष भड़काने की कोशिश करता है। वह व्यक्ति राजद्रोह का दोषी माना जाएगा।
ज्यादातर लोगों को लगता है कि राजद्रोह और देशद्रोह एक ही है. लेकिन दोनों में अंतर है। आसान भाषा में समझे तो राजद्रोह का केस सरकार की मानहानि या अवमानना के मामले में बनता है और देशद्रोह का केस देश की मानहानि या अवमानना के मामले में बनता है। हालांकि, भारत में राजद्रोह या देशद्रोह दोनों ही मामलों में केस आईपीसी की धारा 124-ए के तहत ही दर्ज किया जाता है।
बता दें कि राजद्रोह कानून को 1870 में लागू किया गया था उस वक्त देश में अंग्रेजों का शासनकाल था और ब्रिटिश सरकार इस कानून का उपयोग उनका विरोध करने वाले लोगों के खिलाफ किया जाता था। मैकाले ने इस कानून का ड्राफ्ट तैयार किया था। ब्रिटिश शासन काल में सरकार के विद्रोही स्वरूप अपनाने वालों के खिलाफ राजद्रोह कानून के तहत ही मुकदमा चलाया जाता था। सबसे पहले 1897 में बाल गंगाधर तिलक के खिलाफ इसे इस्तेमाल किया गया था।
दरअसल, पिछले पांच सालों में यानी साल 2015 से 2020 के बीच देश में राजद्रोह की धाराओं के 356 मामले दर्ज किए गए थे। 548 लोगों को गिरफ्तारी भी हुई थी जबकि सिर्फ 12 लोग ऐसे थे जिन्हें दोषी साबित किया जा सका। सुप्रीम कोर्ट ने इसी के खिलाफ सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार को निर्देश दिया था।