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सुप्रीम कोर्ट के फैसले और टिप्पणियों से क्या कार्यपालिका और विधायिका की खुलेगी आंख

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सुप्रीम कोर्ट को संविधान का संरक्षक माना गया है। हाल के दिनों में सत्ताधारी दल और विपक्ष अपने – अपने नफा और नुकसान को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट के फैसले और टिप्पणियों का कभी सम्मान करते हैं ,तो कभी सुप्रीम कोर्ट पर पक्षपात का आरोप जड़ देते हैं।हाल के दिनों में सुप्रीम कोर्ट के कुछ फैसले ऐसे हैं जो कार्यपालिका और विधायिका की आंख खोलने वाली है। अब देखना होगा की कार्यपालिका और विधायिका की आँखें सुप्रीम कोर्ट के इन फैसलों से थोड़ी भी शर्माती है या नहीं! क्योंकि ये फैसले एक आई ओपनर हैं। आईए जानते हैं कुछ महत्वपूर्ण फैसलों और टिप्पणियों को जो इन दिनों सुप्रीम कोर्ट की तरफ से आए हैं।

गुरुवार 5 नवंबर को दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की जमानत याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई।कथित शराब घोटाले में सीबीआई की गिरफ्तारी को चुनौती देने और जमानत के लिए केजरीवाल की ओर से दायर याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम टिप्पणी की।कोर्ट ने कहा कि जमानत के मामलों में कितनी देर सुनवाई करनी चाहिए, क्या आम आदमी को इतना समय मिलता है?

गौरतलब हैं कि केजरीवाल की तरफ से पेश हुए वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने करीब 1 घंटे तक अपनी दलीलें पेश की। बार और बेंच के मुताबिक जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि हम दोनों पक्षों को सुनेंगे, लेकिन हम सोच रहे हैं कि हमें जमानत मामले में कब तक सुनवाई करनी चाहिए ,क्या सामान्य लोगों को इतना समय मिलता है? इस पर सीबीआई की ओर से पेश हुए एएसजी राजू ने कहा कि जितना टाइम मे याचिकाकर्ता को दिया गया है, कम से कम उतना ही जांच एजेंसी को भी मिलना चाहिए। सिंघवी ने कोर्ट को बताया कि वह 12:00 बजे तक अपना बात खत्म करेंगे, ताकि लंच तक सुनवाई पूरी हो सके।

एक अन्य फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को राजाजी टाइगर रिजर्व के निदेशक के रूप में उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की नियुक्ति पर सवाल उठाया, क्योंकि इसी अधिकारी को पहले जिम कॉर्बेट टाइगर रिजर्व से पेड़ों की अवैध कटाई के आरोप में पद से हटा दिया गया था।

उत्तराखंड हाई कोर्ट ने करीब दो साल पहले जिम कॉर्बेट टाइगर रिजर्व और राजाजी नेशनल पार्क में पेड़ों की अवैध कटाई का संज्ञान लिया था।इसके बाद कोर्ट ने आईएफएस अधिकारी राहुल को कॉर्बेट टाइगर रिजर्व के निदेशक पद से हटाने का निर्देश दिया था।

मार्च 2024 में जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क में पेड़ों की अवैध कटाई और निर्माण की जांच के लिए एक समिति को आदेश दिया गया था। बुधवार को इस मामले की सुनवाई के दौरान जस्टिस बीआर गवई, केवी विश्वनाथन और प्रशांत कुमार मिश्रा की बेंच ने कहा कि यह कोई सामंती युग नहीं है,जहां राजा जैसा कहता है, वैसा ही होता है।मुख्यमंत्री को इस फैसले के पीछे कुछ तर्क देना चाहिए था, हमें ऐसी उम्मीद है। सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे वकील से मामले में मुख्यमंत्री का हलफनामा दाखिल करने को कहा।

वरिष्ठ वकील और न्याय मित्र परमेश्वर ने पीठ को बताया कि संबंधित आईएएस अधिकारी के खिलाफ पहले ही आरोप पत्र दायर किया जा चुका है। उन्होंने कहा, ”राजाजी नेशनल पार्क में आईएफएस अधिकारी राहुल की पोस्टिंग के लिए सिविल सर्विसेज बोर्ड द्वारा कोई सिफारिश नहीं की गई है, यह एक राजनीतिक पोस्टिंग है।

उस पर जस्टिस गवई ने कहा, ‘क्या इस देश में लोगों का विश्वास कायम रखने का कोई सिद्धांत है या नहीं! संवैधानिक पदों पर बैठे लोग अपनी मनमर्जी नहीं कर सकते। जब जनता समर्थन में नहीं है तो उन्हें वहां तैनात नहीं किया जाना चाहिए।’ सीएम होते हुए क्या वह कुछ भी कर सकते हैं?’

सुप्रीम ने कहा कि, आप मुख्यमंत्री हैं इसका मतलब ये नहीं कि सब कुछ वैसा ही होगा जैसा आप चाहेंगे।आपने भ्रष्टाचार के आरोपी अधिकारी को निलंबित करने के बजाय उसका तबादला कर दिया।हम अब मुख्यमंत्री से सीधा जवाब मांगेंगे।

गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने पहले भी जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क के मुख्य क्षेत्र में अवैध और मनमाने अतिक्रमण और पेड़ों की कटाई पर आपत्ति जताई थी और वन विभाग के अधिकारियों को फटकार लगाई थी।अब जब राज्य सरकार ने इस मामले में आरोपी आईएफएस अधिकारी राहुल को राजाजी नेशनल पार्क के निदेशक का कार्यभार सौंपा है, तो सुप्रीम कोर्ट ने इस पर संज्ञान लिया है और मुख्यमंत्री की आलोचना की है।

इसी तरह के एक अहम फैसले में
28 अगस्त 2020 को सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच ने कहा था कि राज्य SC-ST के भीतर उपजातीय रिजर्वेशन का लाभ दे सकती है और इस तरह का श्रेणी बनाने का उन्हें संविधान के तहत अधिकार है। अगर राज्य को रिजर्वेशन देने का अधिकार है तो वह सब-क्लास बनाकर उसका विस्तार भी कर सकता है।

इसके बाद 1 अगस्त 2024 के अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कोटे में कोटा समानता के खिलाफ नहीं है। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस मनोज मिश्रा, जस्टिस बेला एम त्रिवेदी, जस्टिस बी आर गवई, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस पंकज मित्तल और जस्टिस एससी शर्मा की पीठ ने 6-1 के बहुमत से फैसला सुनाया है।

सुप्रीम कोर्ट ने 6-1 के बहुमत से व्यवस्था दी कि राज्यों के पास आरक्षण के लिए अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति में उप-वर्गीकरण (Sub Classification) करने की शक्तियां हैं। कोर्ट ने कहा कि कोटा के लिए एससी, एसटी में उप-वर्गीकरण का आधार राज्यों द्वारा मानकों एवं आंकड़ों के आधार पर उचित ठहराया जाना चाहिए।

कार्यपालिका और विधायिका की आँखें चाहे सुप्रीम कोर्ट के ऐसे फैसले और टिप्पणियों से खुले अथवा नहीं,लेकिन आम लोगों को इसपर अपनी नजर बनाए रखना चाहिए, नहीं तो कार्यपालिका और विधायिका के अंतर्गत आनेवाले मंत्री और राजनेता संविधान की आड़ में लोगों भावनाओं को भड़काकर और इन्हें बांटकर संविधान की मूल भावना को ही नष्ट कर देंगे।

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