न्यूज़ डेस्क
दावे तो कई तरह के किये जा रहे हैं। इंडिया विपक्ष दलों ने खूब कसमे खाई थी। कहा था कि साथ मिलकर ही आगे चलेंगे और लड़ेंगे भी। यही बात गठबंधन के सभी दल करते आ रहे हैं। लेकिन जो हाल दिख रहे हैं उससे तो यही लगता है कि सीट बंटवारे की कहानी जैसे -जैसे आगे बढ़ेगी पार्टियों में हलचल होगी और दूरियां भी बढ़ेगी। ऐसा नहीं है यह सब इंडिया के भीतर ही चल रहा है। खेल तो एनडीए के भीतर भी कुछ ऐसा ही है। अभी वक्त आने दीजिये खेल सामने होगा।
देश की कोई राजनीतिक दल कम से कम चुनाव तो लड़ना ही चाहता है। वजह है उसके साथ जुड़े लोगों की महत्वकांक्षा। जब कोई पार्टी चुनाव ही नहीं लड़ेगी तब उसकी राजनीति किस बात की। बड़ी पार्टियां अक्सर यही चाहती है कि छोटी पार्टियों को हासिये पर रखा जये या फिर कुछ कौरा के रूप में दे दिया जाए। बड़ी पार्टियां यही करती है। अगर कोई सत्तारूढ़ पार्टी है तो वह और भी ज्यादा करती है। अभी बंगाल में कुछ यही सब होता दिख रहा है।
कुछ दिन पहले ही आप पार्टी की एक नेता ने अरविंद केजरीवाल को विपक्ष की और से प्रधानमंत्री पद के सबसे सुयोग्य उम्मीदवार बता दिया था, तो जदयू के एक नेता ने भी बिहार के सीएम नितीश कुमार को राष्ट्रीय नेता बताते हुए उन्हें मुख्य दावेदार बता दिया। इस पर जब विवाद होना शुरू हुआ तो दोनों पार्टी की ओर से स्पष्टीकरण आया। अब विपक्षी गठबंधन को फिर से तगड़ा झटका लगा है। इंडिया गठबंधन में शामिल भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) ने बंगाल और केरल में गठबंधन के खिलाफ फैसला करके बगावत का ऐलान कर दिया। सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक सीपीआईएम ने पश्चिम बंगाल में अपने मुख्य विपक्षी दल टीएमसी और केरल में कांग्रेस से अलग रहने का फैसला किया है।
पिछले सप्ताह भारत समन्वय समिति की बैठक में भी भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी मार्क्सवादी शामिल नहीं हुई थी। सीताराम येचुरी इस पार्टी के वर्तमान सेक्रेटरी जनरल हैं। यह फैसला उन्हीं के कहने पर लिया गया होगा। इस फैसले से बंगाल की सीएम ममता बनर्जी पर कोई खास असर नहीं पड़ेगा। क्योंकि वो पहले ही वामपंथी दल के नेताओं से साथ मंच साझा करने में असहज होने बात कह चुकी हैं। लेकिन केरल में कांग्रेस का सीपीआईएम के इस निर्णय पर क्या रवैया सामने आता है, ये देखने वाली बात होगी।


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