अखिलेश अखिल
प्रधानमंत्री मोदी ने दिल्ली में चल रहे जी 20 के आयोजन को आज समाप्त करने की घोषणा कर दी। घोषणा से पहले पीएम मोदी ने अगले साल जी 20 की अध्यक्षता की जिम्मेदारी ब्राजील के राष्ट्रपति को सौपी और कहा कि अगले साल हम सब वही मिलेंगे। दिल्ली की यह दो दिवसीय बैठक काफी अहम् रही। इस बैठक में दुनिया भर के कई देशों के मेहमान पधारे थे। इसके साथ ही कई विश्व स्तर की संस्थाएं भी दिल्ली पहुंची थी। सबके साथ दुनिया को कैसे आगे बढ़ाया जाए और कैसे दुनिया में शानिति कायम की जाए इस पर चर्चा भी हुई। फिर दिल्ली घोषणा पत्र का भी ऐलान हुआ। इस घोषणा पत्र को सभी देशों ने स्वीकार किया।
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन भी आये थे। हालांकि आज वे सुबह ही वियतनाम की यात्रा पर निकल गए लेकिन जाते जाते फिर से भारत आने का वादा भी कर गए। माना जा रहा है कि प्रधानमंत्री मोदी ने उनसे 26 जनवरी के अवसर पर भारत आने का न्योता भी दिया है और यह भी कहा जा रहा है कि क्वाड की बैठक भी जनवरी में ही भारत में होने की संभावना है। अगर भारत में क्वाड की बैठक होती है तो बाइडेन एक बार फिर से भारत की यात्रा पर आ सकते हैं।
भारत की कोशिश है कि जनवरी 2024 में क्वाड के दो अन्य सदस्य देश जापान और आस्ट्रेलिया भी भारत आएं, जो बाइडन गणतंत्र दिवस के मेहमान बनें और भारत में गणतंत्र दिवस के आस-पास क्वॉड की बैठक हो। यह नई दिल्ली की एक बड़ी कूटनीतिक कोशिश है। चीन इस फोरम से को नापसंद करता आया है। वह इसे अपने विरुद्ध इन देशों की गोलबंदी मानता है।
कूटनीतिक गलियारे में माना जाता है कि भारत और अमेरिका के रिश्ते पर चीन की नजर रहती है। चीन इसे अमेरिका के साथ जारी ट्रेड वार की प्रतिद्वंदिता के रूप में देखता है। एशिया में चीन के बाद भारत के पास ही हर मोर्चे पर दूसरे नंबर की क्षमता है। हालांकि अमेरिका, चीन और भारत के रिश्ते में आपसी विश्वास का संकट भी है। विदेश मंत्रालय के कई पूर्व राजनयिक इस विश्वास के संकट की संभावना से इनकार नहीं करते।
एक पूर्व विदेश सचिव कहते हैं कि इस समय अमेरिका और चीन का लक्ष्य अलग-अलग है। इसका असर दोनों देशों की अर्थव्यवस्था पर पड़ रहा है। दोनों बड़े देश अपनी-अपनी गोलबंदी में जुटे हैं। चीन की सऊदी अरब समेत कई देशों से करीबी बढ़ रही है। यह अमेरिका को पसंद नहीं आ रहा है। अमेरिकी अर्थव्यवस्था की तरह ही चीन के भी बाजार और अर्थव्यवस्था पर भारी दबाव है। वहां बेरोजगारी और घरेलू समस्या बढ़ रही है। और इन सभी का एक बड़ा कारण अमेरिका और चीन की आपसी दूरी है। लेकिन यदि दोनों देशों में पहले की तरह आपसी रिश्ते फिर पटरी पर आ गए तो फिर भू-राजनैतिक परिस्थिति बदल जाएगी।
बताते हैं कि इस स्थिति से केवल भारत ही सावधान नहीं है, बल्कि चीन भी है। अमेरिका को भी चीन और भारत के संबंधों को लेकर चिंता है। मसलन, शी जिनपिंग के इस कार्यकाल में भारत और चीन के बीच में तालमेल घटा है। यह स्थिति भारत और अमेरिका के लिए एक अवसर की तरह है। हालांकि इसका भारत पर भी असर पड़ रहा है। भारत और अमेरिका के बीच में इसके कारण विश्वसनीय, सहयोग और साझीदारी के रिश्ते आगे बढ़ रहे हैं। लेकिन यदि कल भारत और चीन में संबंध ठीक हो गए तो इससे अमेरिका को भी झटका लगना तय है। बताते हैं कि इससे अमेरिका के रणनीतिकार भी सशंकित हैं। इसका एक बड़ा कारण यह भी है कि रूस से रिश्ते की कीमत पर अमेरिका की तमाम इच्छाओं को भारत ने ठंडे बस्ते में डाल दिया था।