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उपराष्ट्रपति जगदीप धनकड़ ने क्यों कहा प्रेस की स्वतंत्रता के लिए प्रेस को भी जिम्मेदार होना होगा 

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न्यूज़ डेस्क 

पत्रकार का काम किसी राजनीतिक दल का हितकारी होना नहीं है। न ही पत्रकार का यह काम है कि वह किसी सेट एजेंडा के तहत चले या कोई विशेष नैरेटिव चलाये। उन्होंने सकारात्मक समाचारों को महत्व देने की जरूरत पर बल देते हुए कहा कि प्रेस की स्वतंत्रता तभी हो सकती है, जब प्रेस जिम्मेवार हो। ये शब्द हैं उपराष्ट्रपति जगदीप धनकड़ के। भोपाल में  माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के चतुर्थ दीक्षांत समारोह में उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ये बाते कही हैं उन्होंने यह भी कहा कि स्वतंत्र प्रेस लोकतांत्रिक राष्ट्र की रीढ़ है।उन्होंने कहा कि प्रेस की स्वतंत्रता के साथ प्रेस का ज़िम्मेदार होना भी महत्वपूर्ण है। सकारात्मक समाचार को तरजीह देना आवश्यक है। इससे समाज में हो रहे सकारात्मक बदलाव को गति प्राप्त होती है।         
        उपराष्ट्रपति धनखड़ विश्वविद्यालय के कुलाध्यक्ष भी हैं। उन्होंने विश्वविद्यालय के भोपाल के बिशनखेड़ी में नवीन परिसर का लोकार्पण करते हुए कहा कि यह संस्थान पत्रकारिता जगत में अपना उत्कृष्ट योगदान निरंतर जारी रखेगा। पत्रकारिता व्यवसाय नहीं समाजसेवा है। पत्रकार लोकतंत्र के प्रहरी हैं। व्यावसायिक लाभ, व्यक्तिगत हित से ऊपर उठकर सेवा-भाव से काम करें।
                   उपराष्ट्रपति धनखड़ ने उपाधि प्राप्तकर्ता समस्त विद्यार्थियों को उज्ज्वल भविष्य की शुभकामनाएं देते हुए विश्वास व्यक्त किया कि प्राप्त ज्ञान का उपयोग सभी विद्यार्थी लोक कल्याण के लिए करेंगे। उन्होंने आह्वान किया कि राष्ट्रकवि, लेखक एवं पत्रकार पंडित माखनलाल चतुर्वेदी की सोच के अनुरूप देशहित को सर्वाेपरि रखकर राष्ट्र निर्माण के संकल्प के साथ भारत की विकास यात्रा में अपना सशक्त योगदान दें।
                          दीक्षांत समारोह में पारंपरिक परिधान और अंगवस्त्र के प्रति उपराष्ट्रपति ने प्रसन्नता की और कहा कि भारत के उत्तर, दक्षिण, पूर्व, पश्चिम – चारों दिशाओं की झलक देखने को मिलती है। यह देश के लिए बहुत बड़ा सार्थक संदेश है। आज भारत आर्थिक, शैक्षणिक, शोध हर क्षेत्र में नये कीर्तिमान स्थापित कर रहा है। यह गौरव का विषय है। आज ऐसा वातावरण है कि हर व्यक्ति जो चाहे वह निखार स्वयं में ला सकता है और भारत को विश्वगुरु बनाने में योगदान दे सकता है।
                  उपराष्ट्रपति ने कहा कि किसी मुद्दे पर सहमति हो या ना हो विचार-विमर्श आवश्यक है। आपका अपना मत और विवेक है, आप सहमत-असहमत हो सकते हैं। लेकिन, विमर्श से मना नहीं कर सकते। राज्यसभा के सभापति की हैसियत से मैं लगातार इस ओर प्रयास कर रहा हूं कि वहां क्या होना चाहिए – डायलॉग, डिबेट, डिस्कशन, डिलेबरेशन – परंतु हो क्या रहा है? डिस्टरबैंस, डिस्टरप्शन।
                   संविधान सभा में तो तीन साल तक ऐसा कभी नहीं हुआ था। उन्होंने तो बहुत ही गंभीर मुद्दों का सामना किया था, उनका समाधान ढूंढा विचार-विमर्श से।धनखड़ ने कहा कि पत्रकारिता की वर्तमान दशा और दिशा गहन चिंता और चिंतन का विषय है। हालात विस्फोटक हैं और, अविलंब निदान होना चाहिए। आप प्रजातंत्र की बहुत बड़ी ताकत हैं और अपनी ताकत से सभी को सजग कर सकते हैं।
                      उन्होंने चिंता व्यक्त की कि लोकतंत्र का यह वाचडॉग, अब व्यावसायिक हितों के आधार पर काम करने लगा है। जब आप जनता के वॉचडॉग हो तो किसी व्यक्ति का हित आप नहीं कर सकते, आप सत्ता का केंद्र नहीं बन सकते। सेवा भाव से काम करना होगा। आवश्यकता है – सच्चाई, सटीकता और निष्पक्षता, इनके बिना कुछ होगा नहीं।

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