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ढहता लोकतंत्र : संसद में पेश 83 फीसदी विधेयक को संसदीय समिति के पास नहीं भेजा गया !

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अखिलेश अखिल 
क्या हमारा लोकतंत्र ढलान पर है ? क्या संसदीय परंपरा और संसदीय व्यवस्था के तहत अब काम नहीं किये जाते ? क्या संसद की गरिमा गिरती ही जा रही है ? क्या संसद अब सत्ता पक्ष और विपक्ष का केवल युद्ध मैदान रह गया है ? क्या संसद अब जनता के लिए कम और राजनीतिक स्वार्थ सीधी का केंद्र हो गयी है। ऐसे से बहुत से सवाल पिछले कई सालों से उठ रहे हैं।    
वैसे तो संसदीय गरिमा का छरण और लोकतंत्र के ढलान की कहानी तो बहुत पहले ही शुरू हो गई थी लेकिन 13 वी लोकसभा के बाद इसमें काफी गिरावट देखने को मिली है। अब संसद की वह मर्यादा नहीं रह गई जो कभी हुआ करती थी। अब संसद में वैसे नेता नहीं मिलते जो कभी मिलते थे। संसद के भीतर एक दूसरे पर जमकर हमला करने वाले नेता संसद से बाहर निकट ही ठहाका लगाते थे और जनता के मुद्दे पर एक दूसरे का गला लगाते थे। लेकिन अब ऐसा नहीं है। अब तो दुश्मनी का खेल है। जो सरकार के खिलाफ आबाज  उठाये वह सरकार के निशाने पर और पार्टी के भी निशाने पर। यहाँ तक की जो कारोबारी सरकार के साथ खड़े हैं ,उसके निशाने पर भी। इस लोकतंत्र को आप जिस रूप में परिभाषित कीजिये लेकिन सच यही है कि मौजूदा दौर में संसद अपनी गरिमा को खोती  जा रही है। संसद के भीतर के तंत्र कमजोर होते जा रहे हैं या फिर उसकी महत्ता को कमतर किया जा रहा है।              
 अभी हालिया मानसून सत्र से जुड़े कुछ कहानी को आपके सामने रखने की जरूरत है। इससे यह पता चल जायेगा कि संसदीय तंत्र की अब क्या दशा है ?राज्यसभा अध्यक्ष जगदीप घनखड़ ने 18 अगस्त को गृह मामलों के स्थाई पैनल को तीन विधेयकों की समीक्षा के लिए भेजा। पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च के आंकड़ों के अनुसार, पिछले चार सालों में समीक्षा के लिए भेजे जाने वाले कुल विधेयकों की संख्या 37 है। पैनल को भेजे गए 37 बिलों में से छह स्वास्थ्य परिवार कल्याण मंत्रालय से हैं और पांच गृह मंत्रालय से हैं। 
      पीआरएस के आकंडों के मुताबिक, 17वीं लोकसभा में संसद में कुल 210 विधेयक को पेश किया गया, लेकिन इनमें से केवल 37 विधेयक को ही संसदीय समिति की समीक्षा के लिए भेजा गया। यानी संसद में पेश जाने वाले विधेयकों में सिर्फ 17 प्रतिशत को ही समीक्षा के लिए भेजा गया। यानी कि संसद में पेश 83 फीसदी विधेयक को संसदीय समिति की समीक्षा के लिए नहीं भेजा गया। 
     जिसमें सहायक प्रजनन तकनीक(विनियमन) विधेयक 2020, विद्युत (संशोधन) विधेयक 2022, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023, भारतीय न्याय संहिता 2023,भारतीय साक्ष्य विधेयक 2023,जैविक विविधता (संशोधन) 2021 और भारतीय विमानपत्तन आर्थिक नियामक प्राधिकरण (संशोधन) विधेयक 2021 शामिल हैं।        इसके अलावा बिजली (संशोधन) विधेयक 2022, फैक्टरिंग विनियमन (संशोधन) विधेयक 2020, वन (संरक्षण) संशोधन विधेयक 2023, औद्योगिक संबंध संहिता 2019, दिवाला और दिवालियापन संहिता (दूसरा संशोधन) विधेयक 2019, अंतर-सेवा संगठन (कमान, नियंत्रण और अनुशासन) विधेयक 2023, जन विश्वास (प्रावधानों का संशोधन) विधेयक 2022 और संबद्ध और स्वास्थ्य देखभाल पेशे विधेयक 2018 को भी पैनल में भेजा गया है। 
                       बता दें 17वीं लोकसभा के दौरान पेश किए जाने वाले 210 विधेयकों में से वित्त मंत्रालय के विनियोग (धन) विधेयक और वित्त विधेयक को मिलाकर कुल 62 कानून बने।  दूसरी तरफ गृह मंत्रालय की तरफ से 25 कानून बने और कानून मंत्रालय ने 16 विधेयकों का पास करवा कर  कानून बनाया। इसके अलावा स्वास्थ्य मंत्रालय ने 15 कानून बनाए और केंद्रीय जनजातीय मामलों के मंत्रालय ने नौ कानून बनाए। लेकिन आठ केंद्रीय मंत्रालयों ने एक-एक विधेयक और नौ मंत्रालयों ने दो-दो विधेयक संसद में पेश किए। 
                  पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च के मुताबिक 16वीं लोकसभा में 25 प्रतिशत बिल को संसदीय समितियों को भेजा गया। वहीं 15 वीं लोकसभा में 71 प्रतिशत और 14 वीं लोकसभा में 60 प्रतिशत बिल को समीक्षा के लिए भेजा गया। 

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