विकास कुमार
आपने ये खबर जरूर सुनी होगी कि उचित कीमत नहीं मिलने से किसानों ने सौ कट्टे लहसुन को नदी में फेंक दिया। हद तो ये हो गई कि इंदौर में मात्र 71 पैसे में एक किलो लहसुन बिका। क्या आपने आज तक बाजार में कभी एक रुपए किलो लहसुन खरीदा है? आपका जवाब नहीं में ही होगा। ऐसे में सवाल ये उठता है कि आखिर किसानों को लहसुन की सही कीमत क्यों नहीं मिलती? वहीं जब उसी लहसुन को कारोबारी खरीद लेते हैं तो वह अच्छा मुनाफा कमाते हैं, लेकिन किसानों को मुनाफा तो छोड़िए लागत मूल्य भी नहीं मिल पाता है।
इसी तरह की एक खबर महाराष्ट्र से भी आई। यहां सोलापुर के एक किसान को 800 किलो प्याज के लिए केवल दो रुपए का चेक मिला। पुणे जिले के पुरंदर तालुका के कुंभारवलन के एक किसान को 100 किलो बैंगन के लिए केवल 66 रुपए का चेक मिला। बैंगन की इतनी कम कीमत मिलने से आक्रोशित किसान ने अपने 11 बीघे में उगाई फसल को उखाड़ फेंका। ऐसी खबरें तो समुद्र में पानी के एक बूंद जैसी है। बिहार,उत्तर प्रदेश,मध्य प्रदेश,महाराष्ट्र,राजस्थान,ओडिसा,पश्चिम बंगाल और दक्षिण भारत के करोड़ों किसान इसी मार को लंबे अरसे से चुपचाप झेल रहे हैं। किसानों को यहां बाजार के दानवों के रहमो करम पर सरकार ने मरने के लिए छोड़ दिया है। उचित कीमत नहीं मिलने से करोड़ों किसान साल दर साल कर्ज के बोझ में फंसते जा रहे हैं। इसका नतीजा ये है कि किसानों ने लाखों की तादाद में आत्महत्या कर अपनी दुर्दशा का इजहार किया है।
2 जनवरी 2020 को NCRB (नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो) ने किसानों की आत्महत्या पर एक रिपोर्ट जारी किया था। सरकार ने अपने आंकड़ों में किसानों की आत्महत्या का पूरा लेखा जोखा पेश किया था। 1991 में नई आर्थिक सुधारों को अपनाने के बाद से लेकर अब तक लाखों किसानों ने आत्महत्या कर ली है। साल 2013 से लेकर साल 2017 तक किसानों के आत्महत्या के आंकड़े NCRB ने जारी किया है।
वर्ष | कृषि क्षेत्र में कुल आत्महत्या | आत्महत्या करने वाले किसानों की संख्या | आत्महत्या करने वाले खेतिहर मज़दूरों की संख्या |
2013 | 11,772 | 5,650 | 6,122 |
2014 | 12,360 | 5,650 | 6,710 |
2015 | 12,602 | 8,007 | 4,595 |
2016 | 11,379 | 6,270 | 5,109
|
2017 | 10,655 | 5,955 | 4700 |
कुल | 58,768 |
(Source-NCRB)
सरकार के आंकड़ों के मुताबिक भी 2013 से 2017 के बीच 58,768 किसानों ने आत्महत्या कर ली है।ये संख्या भारत के शहीद हुए सैनिकों से कहीं ज्यादा है। आधिकारिक तौर पर साल 1995 से 2013 तक 2 लाख 70 हजार किसानों ने आत्महत्या कर ली है।
‘साल 2021 में हर दो घंटे में एक कृषि श्रमिक ने की है आत्महत्या’
साल दर साल सरकार किसानों की तरक्की के हसीन सपने दिखाते रही, लेकिन देश के लाचार किसान मौत का विकल्प चुनते रहे। साल 2021 में हालात ये हो गए कि हर दो घंटे में एक कृषि श्रमिक ने आत्महत्या की है।कोरोना महामारी के दौरान जब सभी सेक्टर औंधे मुंह गिर गए तब केवल कृषि क्षेत्र ने ही सकारात्मक वृद्धि दर्ज की थी। अफसोस की बात ये है कि कृषि के विकास से किसानों को कोई फायदा नहीं मिल पाया। साल 2021 में कृषि श्रमिकों की आत्महत्या की दर 2019 के मुकाबले 29 फीसदी और 2020 के मुकाबले 9 फीसदी अधिक रही। एनसीआरबी के अनुसार साल 2021 में कुल 5,563 कृषि श्रमिकों ने आत्महत्या कर ली।
‘किसान बनते जा रहे हैं मजदूर’
सरकारी एजेंसी के मुताबिक अब ज्यादा से ज्यादा किसान आमदनी के लिए मजदूर बनते जा रहे हैं। यह जानकारी 2021 में जारी नेशनल सैंपल सर्वे के आकलन दस्तावेज में भी दर्ज की गई है। सर्वेक्षण के अनुसार, कृषि परिवार की कुल औसत आय में सबसे अधिक 4,063 रुपए की हिस्सेदारी मजदूरी से प्राप्त हुई थी। एनसीआरबी की ताजा रिपोर्ट के अनुसार सबसे अधिक 1424 आत्महत्या की घटनाएं महाराष्ट्र में दर्ज की गई हैं। इसके बाद कर्नाटक में 999 और आंध्र प्रदेश में 584 कृषि श्रमिकों ने आत्महत्या की है।
‘सैनिक से ज्यादा किसान हुए शहीद’
पाकिस्तान और चीन के साथ हुए युद्ध में भारत के सैनिकों की शहादत की संख्या के बारे में राज्यसभा में जानकारी दी गई थी। 5 दिसंबर 2001 को राज्यसभा में ये जानकारी भारत सरकार ने जारी की थी….
युद्ध | किस देश के साथ | शहीद भारतीय सैनिकों की संख्या | कुल शहीद सैनिकों की संख्या |
1947-48 | भारत-पाकिस्तान | 1104 | 1104 |
1962 | भारत-चीन | 3250 | 3250 |
1965 | भारत-पाकिस्तान | 3264 | 3264 |
1971 | भारत-पाकिस्तान | 3843 | 3843 |
ऑपरेशन पवन | श्रीलंका में अभियान | 1157 | 1157 |
12,618 |
(Source- राज्यसभा में जारी आंकड़े)
यानी आजादी के बाद से भारत ने जंग और ऑपरेशन में 12,618 सैनिकों की कुर्बानी दी है, जबकि 1995 से लेकर अब तक लाखों किसानों ने आत्महत्या कर ली है।इस आंकड़े से भारत के करोड़ों किसानों के ऊपर मंडरा रहे संकट का अंदाजा लगाया जा सकता है।
आखिर समस्या की जड़ क्या है?
किसानों की आत्महत्या की सबसे बड़ी वजह कर्ज के जाल में फंसना है। खेती किसानी के लिए किसान बैंकों और महाजनों से कर्ज लेते हैं किंतु प्राकृतिक आपदाओं या मानव जनित आपदाओं के कारण किसान कर्ज चुका नहीं पाते हैं। जब किसान कर्ज चुका पाने में नाकाम होते हैं तो ग्लानि के कारण आत्महत्या कर लेते हैं।
फसल की उचित कीमत नहीं मिल पाना भी किसानों की आत्महत्या का एक बड़ा कारण है। जलवायु परिवर्तन की वजह से अतिवृष्टि और अनावृष्टि की सबसे ज्यादा मार हमारे देश के किसानों पर ही पड़ी है।इससे या तो फसल की पैदावार कम हो जाती है या फिर खड़ी फसल खेत में ही बर्बाद हो जाती है। इससे किसानों पर अलग बोझ पड़ता है और इस बोझ की वजह से भी किसान आत्महत्या का रास्ता चुनते हैं। परिवार में बंटवारे की वजह से भू जोत भी घटती जा रही है। इससे भी किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ा है। सरकार की नीतियों की वजह से भी किसानों को उनकी फसल की सही वक्त पर सही कीमत नहीं मिल पा रही है। इसकी सबसे बड़ी मार छोटे और सीमांत किसानों पर पड़ी है। एनसीआरबी के अनुसार, आत्महत्या करने वाले किसानों में 72 फीसदी छोटे और सीमांत किसान हैं।
समस्या का समाधान क्या है?
किसानों को संकट से उबारने के लिए उनकी फसलों की सही कीमत मिलनी चाहिए। फसल की बर्बादी पर सरकार को उचित मुआवजा दिया जाना चाहिए। इसके अलावा जिला,तालुका और तहसील स्तर पर ‘किसान बाजार’ बनाया जाना चाहिए ताकि आम आदमी सीधे किसानों से उनके उत्पाद खरीद सके। इससे किसानों की आमदनी में इजाफा होगा।सरकार को जल्द से जल्द स्वामीनाथन कमेटी की रिपोर्ट लागू करना चाहिए और किसानों को सस्ते ब्याज दरों पर कर्ज मुहैया कराना चाहिए।
क्या KCR का तेलंगाना मॉडल कर रहा है काम?
किसानों की स्थिति को सुधारने के लिए केसीआर के तेलंगाना मॉडल को दूसरे राज्यों को भी अपनाना चाहिए। रायतु बंधु योजना,मुफ्त बिजली और सिंचाई परियोजनाओं के जरिए तेलंगाना के किसानों की स्थिति बदली है। तेलंगाना के मुख्यमंत्री केसीआर ने राज्य में 7 हजार अनाज क्रय केंद्र स्थापित किए हैं। इन केंद्रों पर किसानों की चावल की फसल की खरीद की जा रही है। सरकारी एमएसपी पर चावल खरीदने से किसानों की आमदनी में इजाफा हुआ है। इसलिए ये कहना उचित होगा कि तेलंगाना मॉडल से किसानों की तकदीर और तस्वीर बदली जा सकती है।