अखिलेश अखिल
कांग्रेस हिंदी पट्टी के तीन राज्यों में जो करती दिख रही है उसे संयोग माना जाए या फिर कोई प्रयोग है ? कई जानकार इसे संयोग भी मान रहे हैं जबकि कुछ लोग यह भी कह रहे हैं कि यह सब को संयोग नहीं। यह कांग्रेस की रणनीति है। और लम्बे समय के बाद कांग्रेस इस रणनीति को भी आजमा रही है। अगर यह रणनीति सफल हो गई तो कांग्रेस की बांछे खिल सकती है और सफल नहीं हुआ तो जैसा चल रहा है ,चलता ही रहेगा। लेकिन कांग्रेस के इस खेल में बीजेपी को पटखनी देने की चाल है और यह चाल अब बीजेपी को भरे भी पड़ सकती है।
अभी दो दिन पहले ही कांग्रेस ने अचानक एक बड़ा निर्णय लेते हुए उत्तरप्रदेश इकाई का अध्यक्ष अजय राय को बना दिया। जैसे ही इस खबर की चर्चा हुई वाराणसी समेत पूरे पूर्वांचल में बहस शुरू हो गई। कांग्रेस के ही कई लोगों ने इस पर टिप्पणी भी की और कुछ लोगों ने बड़ा निर्णय बताया। लेकिन जैसे ही अजय राय ने गद्दी संभाली ,शाम होते होते खेल का मजमा ही बदल गया। बनारस हमारे देश का सांस्कृतिक और धार्मिक शहर है। यह भोले नाथ का घर है और बाबा विश्वनाथ सबके आराध्य भी। अजय राय भी इसी बनारस के हैं। रोज बाबा भोले नाथ को पूजते हैं और बनारस के चौक चौराहों पर राजनीतिक चिंतन मनन भी करते हैं। लेकिन मामला अब यही तक का तो है नहीं। मामला तो राजनीतिक है और यूपी में कांग्रेस की पैठ बढ़ाने की है।
अजय राय जाती से भूमिहार ब्राह्मण है। उनकी पानी राजनीति है और अपने दायरे भी। लेकिन असल कहानी इस बात को लेकर बनती है कि क्या कांग्रेस एक भूमिहार ब्राह्मण पर दाव लगाकर यूपी में क्या कुछ पाना चाहती है ? यही से राजनीति शुर होती है और कांग्रेस की रणनीति का खेल दीखता है। जानकार कह रहे हैं कि यूपी में भूमिहार ब्राह्मणो की आबादी भले ही दो से तीन प्रतिशत है लेकिन यह समाज काफी दवंग है और खेतिहर भी। समाज में इनकी पहुँच पहचान है और पहुँच भी। नौकरशाही में इनकी पहुँच है और समाज के उन वर्गों में भी इनकी पैठ है जो हार जीत को प्रभावित करते रहे हैं। तो सवाल है कि क्या भूमिहार ब्राह्मण पर दाव लगाकर कांग्रेस अपने पुराने अजेंडे पर वापस आने की कोशिश कर रही है ? जानकार कह रहे हैं कि कोशिश यही है कि यूपी के ब्राह्मणो और सवर्णो को एक साथ एक मंच पर खड़ा किया जाए। और शायद अजय राय यह सब करने में सक्षम हो सकते हैं।
अजय राय की पहुँच भूमिहारों में तो है ही ,समाज के अन्य ब्राह्मणो के साथ ही क्षत्रियों में भी है। पूर्वांचल के तमाम सवर्ण जातियां अजय राय को जानती है और पहचानती भी है। इन जातियों के युवा वर्ग बड़ी राय के समर्थक है और बीजेपी के खिलाफ भी। ऐसे में अजय राय सवर्ण समाज को एक मंच पर लेकर कांग्रेस को कज्बूती दे सकते ऐन और ऐसा हुआ तो बीजेपी की परेशानी बढ़ सकती है।
यूपी में सवर्णो की आबादी करीब 13 फीसदी के करीब हैं। इनमे ब्राह्मणो की आबादी ज्यादा है। यह बात और है कि पुराने जमाने के सभी ब्रह्म पिछले कुछ सालों से बीजेपी के साथ खड़े रहे हैं लेकिन जिस तरह से यूपी की योगी सरकार मेब्रह्मणो की उपेक्षा की गई है उससे ब्राह्मण समाज नाराज होकर अलग जा चुके हैं। यही हाल कुछ इलाकों के क्षत्रियों की भी है। ऐसे में माना जा रहा है कि अगर क्षत्रिय समाज के लोग अजय राय के साथ नहीं भी आते हैं तो भूमिहार ब्राह्मण और अन्य तमाम ब्राह्मणो का समर्थन अजय राय को मिल सकता है और कांग्रेस को एक बड़ा वोट बैंक मिल सकता है। भूमिहार ब्राह्मण समेत अन्य ब्राह्मणो की आब्दी यूपी में करीब आठ से नौ फीसदी के करीब है और इस वोट बैंक को अजय राय अपने साथ ला खड़ा करते हैं तो कांग्रेस को अपना परंपरागत वोट बैंक मिल जायेगा। इससे बीजेपी की परेशानी तो बढ़ेगी ही कांग्रेस की ताकत भी बढ़ेगी।
कांग्रेस की राजनीति अभी तक ब्राह्मणों ,दलितों और मुसलमानो के बीच ही घूमती रही है। लेकिन यह सब दो दशक पहले की बात है। इस बीच में कांग्रेस के ये सारे वोट बैंक ख़त्म हो गए ,दुरी पार्टियों में शिफ्ट कर गए और कांग्रेस आधारहीन होती चली गई। जिस यूपी और बिहार से चुनाव जीतकर कांग्रेस सत्ता तक पहुँच जाती थी आज यही दोनों राज्य कांग्रेस के सबसे कमजोर राज्य हैं।
लेकिन कांग्रेस ने दाव तो बिहार में भी खेला है। बिहार की हालत अभी यूपी से बेहतर है। वहां कांग्रेस के पास 19 विधायक है। लेकिन मजे की बात देखिये बिहार में भी कांग्रेस के अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद ही है। वे भी जाति से भूमिहार ब्राह्मण ही हैं और कुछ इलाकों में उनकी ख़ास पहुँच भी है। उधर झारखंड में भी पार्टी अध्यक्ष राजेश ठाकुर ही है जो जाती से भूमिहार ब्राह्मण है ही है।
अब इन तीन राज्यों को एक साथ समेत कर देखिये तो साफ़ हो जाता है कि अगर बाकी ब्राह्मणो को छोड़ भी दिया जाए तो इन तीनो राज्यों में ही भूमिहार ब्राह्मणो की आबादी करीब दस फीसदी है। और अगर ये तीनो भूमिहार अध्यक्ष अपने साथ अन्य ब्राह्मणो को साथ लाने में कामयाब हो जाते हैं तो कांग्रेस के वोट बैंक में बड़ा इजाफा हो सकता है। तीनो राज्य एक दूसरे से सटे हुए ऐन और एक ही आकार विचार वाले भी है। एक ही रहन सहन है और एक ही खान पान। इन तीनो राज्यों के बीच रोटी और बेटी का सम्बन्ध है और तीनो राज्यों के सामाजिक सरोकार भी एक ही है। तीनो राज्य गरीबी ,बेरोजगारी और पलायन के दर्द से गुजर रहे हैं ऐसे में इन तीनो राज्यों के पार्टी अध्यक्ष एक होकर कोई बड़ा जातीय अभियान चालये औरकांग्रेस के साथ सभी वर्गों को जोड़े तो पार्टी की हालत काफी सुधर सकती है और लोकसभा चुनाव में एक बड़ा बदलाव देखने को मिल सकता हैं।
तीन प्रमुख राज्यों में कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष भूमिहार ब्राह्मण ! क्या यह संयोग है या प्रयोग ?
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