बीरेंद्र कुमार झा
राजस्थान में लंबे इंतजार के बाद शनिवार को भजनलाल शर्मा कैबिनेट का विस्तार किया गया, जिसमें 12 कैबिनेट मंत्री और 10 राज्य मंत्रियों को शपथ दिलाई गई।। किसी राज्य में मंत्रिमंडल का विस्तार एक सामान्य प्रक्रिया है,जिसके तहत राजस्थान मे भजनलाल शर्मा कैबिनेट का शनिवार को विस्तार हुआ, लेकिन इन दिनों एक खास प्रवृत्ति देखी जा रही है जिसमें चुनाव जीतने की प्रत्याशा में राज्य के मुख्यमंत्री अपने चाहते लोगों को बिना चुनाव जीते ही मंत्री परिषद में शामिल कर लेते हैं। राजस्थान में भी भजनलाल शर्मा के कैबिनेट विस्तार में सुरेंद्रपाल सिंह टीटी नाम के एक व्यक्ति को राज्य मंत्री ( स्वतंत्र प्रभार) के रूप में शपथ दिलवाकर इस प्रवृत्ति को आगे बढ़ने का काम किया गया है। हालांकि कांग्रेस पार्टी सुरेंद्रपाल सिंह टीटी के बिना चुनाव लड़े मंत्री बनाए जाने को लेकर भारतीय जनता पार्टी पर हमलावर हो रही है।
क्या है संविधान में प्रावधान
किसी राज्य में मुख्यमंत्री या मंत्री बनने से संबंधित विवरण भारतीय संविधान के अनुच्छेद 164 में दिया गया है।इसके अंतर्गत अनुच्छेद 164 (4 ) में यह स्पष्ट रूप से वर्णित है कि कोई व्यक्ति बिना चुनाव लड़े , यहां तक। कि चुनाव में हार जाने के बावजूद मुख्यमंत्री या मंत्री बन सकता है, लेकिन उसे 6 महीने के अंदर विधानसभा की सदस्यता प्राप्त करनी होगी। दरअसल संविधान निर्माताओं की इस संदर्भ में यह सोच थी कि किसी खास स्थिति या कारणवश अगर कोई बहुत ही योग्य व्यक्ति जिसकी सेवा की उस राज्य को जरूरत हो वह चुनाव के माध्यम से विधानसभा का सदस्य नहीं बन सकता है, तो अनुच्छेद (164 4) के जरिए सरकार उसे अपने मंत्रिमंडल में शामिल कर के जिससे राज्य 6 महीने तक उसकी योग्यता का लाभ उठा सके और इस बीच वह कहीं ना कहीं से चुनाव जीतकर या अगर उस राज्य में विधान परिषद है तो उसका सदस्य बनकर विधानसभा के मंत्री पद की सामान्य शर्तों को पूरा कर बाकी समय तक राज्य की सेवा कर सके।लेकिन आजकल अक्सर इसका दुरुपयोग होने लगा है। हाल के दिनों में पश्चिम बंगाल में नंदीग्राम से चुनाव हारने के बावजूद टीएमसी सुप्रीमो ममता बनर्जी ने पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री का पद संभाला और इसके बाद भवानीपुर के विधायक ने सिर्फ इसलिए भवानीपुर का सीट रिक्त कर दिया, क्योंकि यहां से ममता बनर्जी को चुनाव में खड़ा होना था। इसी प्रकार झारखंड में हुए चुनाव में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने अपने चहेते हफीजुल हुसैन को चुनाव पूर्व ही मंत्री बना दिया था और अब राजस्थान में भी भजनलाल शर्मा ने सुरेंद्रपाल सिंह टीटी को चुनाव पूर्व मंत्री के रूप में शपथ दिलाई है।मंत्री बन जाने से ऐसे लोगों के लिए चुनाव जीतना थोड़ा आसान हो जाता है,क्योंकि स्थानीय लोगों में उनके प्रति मंत्री होने को लेकर एक सद्भावना पनप जाती है, जो अन्य उम्मीद्वारों की तुलना में चुनाव जीतने के लिए इन्हें अतिरिक्त बल प्रदान करता है।
5 जनवरी को करणपुर सीट से चुनाव लड़ने वाले हैं सुरेंद्रपाल सिंह टीटी
हाल में संपन्न राजस्थान विधानसभा चुनाव में वहां की मौजूदा 200 सीटों में से 199 सीटों के लिए ही 25 नवंबर को मतदान हुआ था, जिसका परिणाम 30 दिसंबर को घोषित किया गया था।करणपुर गंगानगर सीट पर कांग्रेस प्रत्याशी और तत्कालीन विधायक गुरमीत सिंह के निधन के कारण चुनाव स्थगित कर दिया गया था।अब इस सीट पर 5 जनवरी को मतदान और वोटो की गिनती 8 जनवरी को होना है। भारतीय जनता पार्टी ने सुरेंद्रपाल सिंह टीटी को इस करणपुर सीट पर विजय हासिल करने की प्रत्याशा में ही अपने मंत्री परिषद में शामिल किया है।
कांग्रेस ने सुरेंद्रपाल सिंह को मंत्री बनाए जाने की आलोचना की
सुरेंद् पाल सिंह टीटी को बिना चुनाव लड़े मंत्री परिषद में शामिल करने की घटना की कांग्रेस पार्टी त्रिपुरा आलोचना कर रही है राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कहा कि यह बीजेपी असलकमन के अहंकार को दिखाता है।उन्होंने एक्स पर लिखा कि करणपुर में 5 जनवरी को होने वाले मतदान को लेकर आचार संहिता के प्रभावित होने के बावजूद वहां से बीजेपी प्रत्याशी को मंत्री बनाकर आचार संहिता का स्पष्ट उल्लंघन एवं वहां के मतदाताओं को प्रभावित करने का प्रयास है। निर्वाचन आयोग को इस पर संज्ञान लेकर अविलंब कार्रवाई करनी चाहिए।
राजस्थान के पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट ने भी इस मुद्दे को लेकर सवाल उठाया है। उन्होंने एक्स पर पोस्ट किया कि बीजेपी ने आचार संहिता के बीच अपने प्रत्याशी को मंत्री पद देकर करणपुर के मतदाताओं को प्रलोभन देने जैसा काम किया है।करणपुर के स्वाभिमानी जनता इस अलोकतांत्रिक और अमर्यादित कदम के पीछे की राजनीति को समझ रही है। निर्वाचन आयोग को भी मामले में संज्ञान लेकर उचित कार्रवाई करनी चाहिए।
बीजेपी ने किया पार्टी के फैसले का बचाव
इस मसले पर बीजेपी की ओर से पूर्व नेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ ने अपने पार्टी के फैसले का बचाव करते हुए कहा कि सुरेंद्रपाल सिंह टीटी को राज्य मंत्री के रूप में दिलाई गई शपथ संविधान के प्रावधानों के अनुरूप है ही है। उन्होंने एक्स पर पोस्ट किया कि संविधान के अनुच्छेद 164 (4) प्रावधान के तहत किसी भी व्यक्ति को बिना निर्वाचित हुए 6 माह तक मंत्रीपद धारण करने का अधिकार है। इस संवैधानिक प्रावधान के अनुसार मुख्यमंत्री की सलाह पर महामहिम राज्यपाल द्वारा किसी भी व्यक्ति को मंत्री पद की शपथ दिलाई जा सकती है।उसके बाद 6 महीने के अंदर उसे विधानमंडल का सदस्य निर्वाचित होना जरूरी है।
अगर सुरेंद्रपाल सिंह टीटी 5 जनवरी को होने वाले करणपुर विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ते हैं तो एक निर्वाचन आयोग द्वारा लगाए गए आचार संहिता का उल्लंघन होता है। इस स्थिति में एक तरफ संविधान और दूसरी तरफ आचार संहिता को लेकर टकराव की स्थिति बनेगी। ऐसे में देखना दिलचस्प होगा कि आगे होता है क्या!