बीरेंद्र कुमार झा
जम्मू कश्मीर को स्पेशल स्टेटस देने वाले अनुच्छेद 370 को खत्म किए जाने के खिलाफ दाखिल याचिका पर सुप्रीम कोर्ट 2 अगस्त से रोजाना सुनवाई करेगा। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली बेंच ने कहा है इस मामले में पक्षकार 27 जुलाई तक लिखित दलील पेश करें। उस दिन सुप्रीम कोर्ट एक वकील याचिका कर्ता की तरफ से और दूसरा वकील सरकार की तरफ से नियुक्त करेगा,जी दस्तावेज को कंपाइल करेगा।सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इसके बाद कोई दस्तावेज पेश करने पर उसे स्वीकार नहीं किया जाएगा।सुप्रीम कोर्ट के 5 जजों की संविधान पीठ इस मामले में सुनवाई करेगा। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस ने कहा है कि सुनवाई मंगलवार, बुधवार और गुरुवार को होगी। सोमवार और शुक्रवार को इस मामले की सुनवाई नहीं की जाएगी क्योंकि इस दिन अन्य मामले सुप्रीम कोर्ट के सामने होंगे,जिसकी सुनवाई होगी।
दो याचिकाकर्ता ने ली याचिका वापस
सुनवाई के दौरान सीनियर एडवोकेट राजू रामचंद्रन दो याचिकाकर्ता आईएएस अफसर शाह फैजल और शहला रशीद की ओर से पेश हुए और कहा कि यह दोनों याचिकाकर्ता अपने नाम याचिकाकर्ता से वापस लेना चाहते हैं। इस पर सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने केंद्र सरकार की ओर से पेश होते हुए कहा कि उन्हें इस बात से कोई एतराज नहीं है अगर कोई याचिकाकर्ता अर्जी से नाम वापस लेना चाहता है। इसके बाद बेंच ने शाह और राशिद के याचिकाकर्ता की लिस्ट से हटाने की इजाजत दे दी।
केंद्र सरकार ने दाखिल किया हलफनामा
आज की सुनवाई से पूर्व केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपने पक्ष में एक हलफनामा दाखिल किया। इस हलफनामे में कैन सरकार की ओर से कहा गया है कि संविधान के अनुच्छेद 370 को निरस्त किए जाने के बाद जम्मू कश्मीर में अभूतपूर्व शांति प्रगति और समृद्धि देखने को मिली है आतंकी कार्रवाई अब अतीत की बात हो चुकी है।
मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ समेत पांच जजों की बेंच करेगी सुनवाई
2 अगस्त से चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली 5 जजों की बेंच मामले की की सुनवाई करेगी। इस बेंच में चीफ जस्टिस के अलावा जस्टिस एसके कॉल, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवाई और जस्टिस सूर्यकांत शामिल है।
2919 से पेंडिंग है मामला
अनुच्छेद 379 का यह मामला 2019 से पेंडिंग है।सबसे पहले मामले में एम एल शर्मा की ओर से अर्जी दाखिल कर 370 निरस्त करने के फैसले को चुनौती दी गई थी। इसके बाद जम्मू कश्मीर के वकील साकिर शब्बीर की ओर से दाखिल की गई।फिर नेशनल कांफ्रेंस के नेता की ओर से अर्जी दाखिल की गई। उनकी दलील में कहा गया कि राज्य के स्टेटस में बदलाव किया गया है और लोगों का अधिकार उनसे पूछे बिना छीन लिया गया है। इस मामले में राष्ट्रपति ने जो आदेश पारित किया है वह गैर संवैधानिक है।इसके अलावा भी मामले में अर्जी दाखिल की गई है।
23जनवरी 2020 की हुई थी सुनवाई
23 जनवरी 2020 को दिनेश द्विवेदी संजय पारेख और जफर अहमद साहू ने मामले को लार्जर बेंच भेजने की गुहार लगाई थी। वहीं केंद्र सरकार की तरफ से अटार्नी जनरल और सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि मामले को लार्जर बेंच रेफर करने की जरूरत नहीं है,क्योंकि पहले इससे संबंधित मामले में कोई विरोधाभास नहीं है ।अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा था कि जम्मू-कश्मीर के संविधान की धारा 3 में जो घोषणा है उससे साफ है कि वह भारत का अभिन्न अंग है ।पहले जम्मू कश्मीर के महाराजा ने पाकिस्तान से एग्रीमेंट किया था और पाकिस्तान में उसका उल्लंघन किया। ट्रकों में भरकर कबिलाइयों को यहां भेजा था ताकि कश्मीर पर कब्जा किया जा सके।इसके बाद इसी परिस्थिति में महाराजा ने भारत सरकार से एग्रीमेंट किया और भारत में रहने का फैसला किया। सुप्रीम कोर्ट का पहले के दो में कोई विरोधाभास नहीं है ।ऐसे में इस मामले की लार्जर बेंच में भेजने की जरूरत नहीं है।
2 मार्च 2020 को अपने अहम फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि मामले की सुनवाई 5 जजों की संवैधानिक बेंच ही करेगा और मामले को लार्जर बेंच नहीं भेजा जाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि वह याचिकाकर्ता की उस दलील से सहमत नहीं है जिसमें कहा गया है कि इस फैसले में पहले दिए दो फैसलों में विरोधाभास है। इस मामले में दिए गए दोनों ही फैसले में कोई विरोधाभासी टिप्पणी नहीं है। ऐसे में हम ऐसा कोई आधार नहीं देख रहे जिसके कारण मामले को लांच किया जाए।