बीरेंद्र कुमार झा
बिहार में जातिगत जनगणना के जो आंकड़े आए हैं,उसमें राजनीतिक समीकरणों के भी बदलने की दिशा तय कर दी है।मोटे तौर पर आंकड़ा अनुमान के मुताबिक ही है।लेकिन कुछ जातियों की आबादी में बड़ा अंतर भी दिखा है। देश में जातिगत जनगणना आखिरी बार 1931 ईस्वी में हुई थी और आज भी उसे ही आधार मानते हुए राजनीतिक विश्लेषक चर्चा करते हैं, लेकिन अब बिहार में नई गणना ने जो आंकड़े पेश किए हैं, उससे तस्वीर कुछ बदलती नजर आ रही है। दरअसल कई जातियों की संख्या में खासा वृद्धि हुआ है ,तो वहीं ब्राह्मण राजपूत और कायस्थ जातियों की आबादी काफी घट गई है।
यादव ,कोयरी, कानू जैसी जातियों की बढ़ी संख्या
राज्य की सबसे अधिक आबादी वाली यादव बिरादरी की संख्या 14 % है जो 1931 ईस्वी में 11%व ही थी। ओबीसी वर्ग की सबसे बड़ी संख्या वाली यादव बिरादरी की आबादी में इजाफा होना एमवाय समीकरण के मजबूत होने का संकेत है। इसके अलावा कोयरी समुदाय की आबादी 4.2% बढ़ गई है जो 1931 में 4.1% थी।इसके अलावा तेली बिरादरी की बात करें तो वह 90 साल पहले की ही तरह 2.8 प्रतिशत पर है ।ओबीसी में आने वाले कानू समुदाय की संख्या फिलहाल 2.2 % है जो पहले एक डिसमिल 1.6% थी।इसके अलावा बढ़ई की संख्या में भी इजाफा हुआ है।
मल्लाह या निषाद बिरादरी की आबादी भी तेजी से बढ़ी है।1931 में इसकी संख्या 1.5 प्रतिसत थी, जो बढ़कर दो प्रतिशत हो गई है।इस तरह कई समुदाय ऐसे हैं जिनकी आबादी चुनावी नजरिया से निर्णायक तौर पर बढ़ी है।
ब्राह्मण,राजपूत,कायस्थ और बनिया की संख्या में कमी
वहीं ब्राह्मण, राजपूत,कायस्थ और बनिया जैसे समुदायों की आबादी कम हुई है। ब्राह्मणों की आबादी 90 साल पहले बिहार में 4.5 फ़ीसदी थी, लेकिन अब उसकी संख्या 3.6 पहुंची गई है।इसी तरह राजपूत भी 4. 7% से घटकर 4.2 % ही रह गए है। कायस्थों की आबादी तो घटकर लगभग आधी रह गई है। 1931में यह आंकड़ा 2.2% था जो घटकर 0.61% हो गया है।
बिहार में क्यों कम हुई सवर्णों की आबादी
समाजशास्त्रियों के अनुसार रोजगार की तलाश में पलायन और बच्चे कम पैदा होने के चलते सवर्ण बिरादरियों की संख्या कम हुई है।जानकार मानते हैं कि स्वर्ण बिरादरियों में रोजगार के लिए पलायन की प्रवृत्ति अधिक है और उनकी प्रवृत्ति नौकरियां करने का रहा है। इसके चलते बिहार जैसे राज्य में उनकी आबादी कम हुई है। इसके अलावा एक वजह यह भी है की पहली पीढ़ी के पलायन के बाद दूसरी या तीसरी पीढ़ी अपने पैतृक गृहों से करीब-करीब नाता ही तोड़ लेती है। इसके चलते भी ग्रामीण इलाकों में सवर्ण कम हो रहे हैं।