अखिलेश अखिल
कब बाजी पलट जाए यह कौन जानता है ? मोदी ने तो शरद पवार और उद्धव ठाकरे तो चलता ही कर दिया था लेकिन जनता के सामने भला किसी का जोर तो चलता नहीं ! लोकतंत्र में जनता ही मालिक है। वह सब जानती है। समय के साथ वह किसी को हीरो भी बना देती है तो समय आते ही हीरो को जीरो पर भी ला देती है।
आज मोदी का कुछ यही हाल है। नैतिकता तो यही कहती है कि मोदी को सबसे पहले अपने पद से तुरंत ही इस्तीफा दे देना चाहिए क्योंकि जनता ने उनके खिलाफ ही अपना जनादेश दिया है। लेकिन राजनीति में नैतिकता कैसी ?राजनीति अगर नैतिकता का वरण करने लगे तो राजनीति के लक्ष्य को भला कौन पा सकता है। और राजनीति का लक्ष्य तो सत्ता है।
खैर इन बातो के अभी क्या मतलब ! हम चर्चा कर रहे हैं शरद पवार की। जिस बुढ़ापे में शरद पवार ने अप्न्मे बिखड़े और कमजोर हुए संगठन के साथ राजनीति की नई पारी को अंजाम दिया है उसे देखकर आज मोदी को भी ईर्ष्या हो रही होगी।
एनसीपी की टूट के बावजूद जिस तरह से शरद पवार ने महाराष्ट्र में लोकसभा चुनाव में अग्रिम मोर्चे पर कमान संभाली और पार्टी को आठ सीटों पर जीत दिलाते हुए राज्य की राजनीति में अपने कद को और ऊंचा किया उसे देखकर आज सब करे सब विषमित हैं। अब लोकसभा चुनाव के परिणाम आ चुके हैं।
कहने के लिए भले ही बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बन कर उभरी है लेकिन अब उसमे वह ताकत नहीं बची। एनडीए के पास सरकार बनाने का भले ही बहुमत है लेकिन इंडिया भी कोई कमजोर अब नहीं रहा। शरद पवार अब आगे जो कुछ भी कर सकते हैं करेंगे ही ताकि इंडिया की सरकार को स्थापित किया जा सके ,जानकार भी मान रहे हैं कि वे इंडिया सरकार के असली शिल्पकार हो सकते हैं।
उनकी अगुवाई वाली राकांपा ने विपक्षी गठबंधन ‘‘इंडिया’ के साझेदारों के साथ बनी सहमति के तहत राज्य में 10 सीटों पर चुनाव लड़ा था और उनमें से आठ पर जीत हासिल की।चुनावी लड़ाई के धुरंधर 83 वर्षीय नेता पवार राष्ट्रीय स्तर पर भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) विरोधी गठबंधन के रचनाकारों में से एक हैं और राज्य में महा विकास आघाडी (एमवीए) के प्रमुख वास्तुकार हैं।
लोकसभा चुनाव में अपने प्रदर्शन से राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरदचंद्र पवार) को राज्य में एक नया जीवनदान मिल गया है जहां अक्टूबर में विधानसभा चुनाव होने हैं।
चुनावी राजनीति में 50 साल से ज्यादा का अनुभव रखने वाले पूर्व केंद्रीय मंत्री ने नए चुनाव चिह्न ‘तुरही बजाता आदमी’ पर अपनी पार्टी राकांपा (एसपी) के प्रचार अभियान की अगुवाई की, रणनीतिक बैठकें कीं और लोकसभा चुनावों के लिए सावधानीपूर्वक उम्मीदवारों का चयन किया।
वर्ष 2019 में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) विधानसभा चुनाव से पहले एनसीपी के कई बड़े नेताओं को अपने पाले में ले आयी थी लेकिन पवार उन्हें फिर से पार्टी में लाने में कामयाब रहे और सातारा में भारी बारिश के बीच उनका भाषण एक निर्णायक क्षण साबित हुआ था।
अविभाजित एनसीपी ने राज्य विधानसभा चुनावों में 50 से अधिक सीटें जीतीं और बाद में उद्धव ठाकरे की अगुवाई में एमवीए का हिस्सा बन गयी जिन्होंने शिवसेना में बगावत के बाद जून 2022 में इस्तीफा दे दिया था।
पिछले साल जुलाई में दिग्गज नेता पवार को उस समय झटका लगा था जब उनके भतीजे अजित पवार की अगुवाई में एनसीपी में बगावत हो गयी थी और उनके साथ कुछ नेताओं ने भाजपा से हाथ मिलाया और राज्य सरकार का हिस्सा बन गए।कभी शरद पवार के करीबी माने जाने वाले पूर्व केंद्रीय मंत्री प्रफुल्ल पटेल ने भी उनका साथ छोड़ दिया और विरोधी गुट में शामिल हो गए।
एनसीपी में दो फाड़ के बाद करीब 40 विधायक और कई विधान परिषद सदस्य अजित पवार गुट में शामिल हो गए और विरोधी गुट ने पार्टी के नाम और चिह्न के लिए कानूनी व राजनीतिक लड़ाई लड़ी।
पिछले एक साल में अजित पवार और प्रफुल्ल पटेल ने ऐसे बयान दिए जिससे शरद पवार और उनकी विचारधारा के बारे में भ्रम पैदा हुआ। उन्होंने कहा कि शरद पवार बीजेपी नीत गठबंधन में शामिल होना चाहते थे लेकिन उन्होंने अंतिम क्षण में कदम पीछे खींच लिए।
लेकिन अजित पवार के पुणे जिले में परिवार के गढ़ बारामती में राकांपा (एसपी) सांसद और चचेरी बहन सुप्रिया सुले के खिलाफ अपनी पत्नी सुनेत्रा को खड़ा करने से यह संकेत मिल गया कि उन्हें अपने चाचा का आशीर्वाद प्राप्त नहीं है।अजित पवार के तीखे हमलों के बावजूद राज्यसभा सदस्य शरद पवार ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। उन्होंने अपनी बेटी सुप्रिया सुले के लिए जोरशोर से प्रचार किया और एमवीए प्रत्याशियों के लिए रैलियों को संबोधित करने के लिए पूरे राज्य में घूमे।
सत्तारूढ़ गठबंधन में होने के बावजूद अजित पवार को केवल पांच लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ने का मौका मिला। इनमें से परभणी सीट राष्ट्रीय समाज पक्ष के महादेव जानकर को दे दी गयी। अजित पवार नीत राकांपा ने केवल रायगढ़ सीट पर जीत दर्ज की।
एनसीपी में फूट के बाद शरद पवार ने घोषणा की थी कि वह पूरे राज्य की यात्रा करेंगे और पार्टी को आगे ले जाने के लिए जमीनी स्तर से एक नया नेतृत्व खड़ा करेंगे।
शरद पवार विपक्ष के उन वरिष्ठ नेताओं में से एक हैं जिन्होंने 2024 के लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भाजपा को हराने के लिए भाजपा विरोधी दलों के बीच एकता का आह्वान किया था।अब ‘इंडिया’ गठबंधन के लोकसभा चुनाव में शानदार प्रदर्शन करने और भाजपा को बहुमत हासिल करने से रोकने के बाद विपक्षी नेता चुनावों के बाद भाजपा के खिलाफ राजनीतिक संभावनाओं को तलाशने में मार्गदर्शन के लिए पवार की ओर जरूर देखेंगे।