अखिलेश अखिल
बीजेपी के भीतर वरुण गांधी के सरकार के खिलाफ होते तीखे बोल को लेकर पिछले महीने भर से मीडिया और राजनीतिक गलियारों में कई तरह के कयास लगाए जा रहे हैं और कहा जा रहा है कि बीजेपी की राजनीति में हाशिये पर चले गए वरुण गाँधी बीजेपी छोड़ सकते हैं। कई लोग यह भी मान रहे हैं कि वरुण अपने परिवार की स्वाभाविक पार्टी कांग्रेस में लौट सकते हैं और कई लोग यह भी कह रहे हैं कि वरुण को कांग्रेस में लाकर यूपी की राजनीति को साध सकती है कांग्रेस। तमाम तरह की बातें की जाती है।
लेकिन आज भारत जोड़ो यात्रा के दौरान राहुल गांधी का एक बड़ा बयान सामने आया है। उन्होंने कहा है कि वरुण गांधी को तो वे गले लगा सकते हैं लेकिन उनकी विचारधारा को स्वीकार नहीं कर सकते। वे वरुण की विचारधारा के खिलाफ हैं। राहुल ने आगे कहा कि वे”आरएसएस दफ्तर नहीं जा सकते। इसके लिए उनकी गर्दन काटनी होगी। उन्होंने कहा कि मेरे परिवार की एक विचारधारा है जबकि वरुण ने दूसरी विचारधार चुनी है। मैं उस विचारधारा को नहीं अपना सकता। ”
भारत जोड़ो यात्रा के दौरान ही राहुल ही कुछ दिनों पहले कहा था कि वरुण उनके भाई हैं। लेकिन उनकी विचारधारा दूसरी है। जिस पार्टी की राजनीति वे कर रहे हैं उसमे भारत जोड़ो यात्रा में वे शामिल होते हैं तो उनकी परेशानी बढ़ सकते हैं।
ऐसे में राहुल गांधी के दोनों बयानों को जोड़कर देखे तो साफ़ लगता है कि दोनों भाइयों के बीच कुछ चल रहा है। जिस राह पर अभी वरुण चलते दिख रख रहे हैं और जिस तरह से बीजेपी सरकार की नीतियों पर हमलावर है उससे यह बात तो कही जा सकती है कि आर बीजेपी छोड़कर वरुण गाँधी आगे बढ़ते हैं तो राहुल उन्हें गले लगाने से नहीं चूकेंगे। उधर कुछ इसी तरह की वरूण गाँधी भी करते भी दिख रहे हैं। उन्होंने पिछले दिनों कहा था कि देश के भीतर हर रोज नफरत फैलाने की राजनीति की जाती है और मीडिया का एक वर्ग हर रोज हिन्दू -मुसलमान करते रहता है। लगता है कि इस देश में कोई और मुद्दा ही नहीं है।
वरुण ने यह भी कहा था कि जिस तरह की राजनीति आज कुछ लोग कर रहे हैं उस राजनीति में मेरी कोई रूचि नहीं। यह देश संविधान से चलता है और प्रेम। सद्भाव और आपसी जुड़ाव से ही देश को आगे बढ़ाया जा सकता है। वरुण ने कहा था कि उन्हें न तो कांग्रेस की नीतियों से परहेज है और न ही नेहरू की नीतियों से।
बता दें कि बीजेपी की मौजूदा राजनीति में वरुण और उनकी सांसद माँ मेनका हाशिये पर है। दोनों के पास न कोई मंत्री पद है न ही कोई संगठन की जिम्मेदारी। एक समय वरुण सबसे कम उम्र के बीजेपी कार्यकारिणी के सदस्य हुआ करते थे। वे बंगाल के प्रभारी भी थे। उनकी यह भी इच्छा थी कि पिछले यूपी चुनाव में पार्टी उन्हें अहम जिम्मेदारी देगी। लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हो पाया। वरुण के साथ ही मेनका भी धीरे -धीरे हासिये पर चली गई।
लेकिन पिछले दिनों मेनका गांधी मुखर होकर सामने आयी। उन्होंने साफ़ कर दिया कि वे अगला लोकसभा चुनाव भी लड़ेंगी और यह भी बता दिया कि पार्टी उन्हें टिकट दे या नहीं दे। मेनका और वरुण पीलीभीत और सुल्तान पुर की राजनीति करते हैं और वही से ये सांसद भी है।
अब राहुल के बयान का क्या अर्थ लगाया जाए ? इसके अर्थ कई तरह के हो सकते हैं लेकिन एक बात तो तय है कि वरुण को लेकर राहुल जितनी बातें आज कर रहे हैं इससे पहले उन्होंने कभी नहीं की थी। उधर लम्बे समय के बाद वरुण ने भी कांग्रेस और नेहरू की नीतियों का सपोर्ट किया है। ऐसे में दो बाते साफ़ हो जाती है। वरुण जिस तरह से मोदी सरकार पर हमलावर हैं उसके बाद बीजेपी अब उन्हें टिकट नहीं दे सकती है लेकिन वरुण चुनाव उसी जगह से लड़ेंगे यह भी तय है। जहां तक राहुल की बात है उससे तो यही लगता है कि वरुण बीजेपी को छोड़ते हैं तो राहुल को ख़ुशी होगी और पार्टी में वरुण का स्वागत भी। ऐसा हुआ तो देश की राजनीति की सबसे बड़ी खबर तो यही होगी कि गांधी परिवार का एकीकरण हुआ। देश इसका इन्तजार भी कर रहा है।