विकास कुमार
जातिगत जनगणना के आंकड़े को लेकर पूरे देश में नई बहस छिड़ गई है। इंडिया गठबंधन के नेता जहां इसे गेमचेंजर बता रहे हैं,वहीं एनडीए गठबंधन के नेता इसे समाज को बांटने की साजिश करार दे रहे हैं। इन दोनों विपरीत धाराओं के बीच जन सुराज के सूत्रधार प्रशांत किशोर की अपनी राय है। पीके का कहना है कि जातिगत जनगणना का समाज की बेहतरी से कोई लेना-देना नहीं है। उन्होंने कहा कि जातिगत जनगणना को अंतिम दांव के रूप में खेला गया है ताकि समाज के लोगों को जातियों में बांटकर एक बार फिर किसी तरह चुनाव की नैया पार लग जाए। पीके का कहना है कि नीतीश कुमार 18 सालों से सत्ता में हैं पर अब क्यों जातिगत जनगणना करवा रहे हैं। नीतीश कुमार को क्या 18 सालों से इसकी याद नहीं आ रही थी।
जातिगत जनगणना को लेकर नीतीश कुमार ने 9 पार्टियों के नेताओं की बैठक बुलाई थी। इस बैठक में जाति आधारित गणना के आंकड़ो पर चर्चा हुई है। बैठक में सामाजिक और आर्थिक सर्वेक्षण के आंकड़े नहीं रखे गए। बीजेपी ने सामाजिक और आर्थिक सर्वे का आंकड़ा सार्वजनिक नहीं करने का विरोध किया है। वहीं नीतीश कुमार ने भरोसा दिया है कि सामाजिक और आर्थिक सर्वे को विधानसभा सत्र के दौरान रखा जाएगा,हालांकि सरकार को सामाजिक और आर्थिक सर्वे का आंकड़ा भी सार्वजनिक करना चाहिए ताकि पता चल सके कि बिहार में अलग अलग जातियों की आर्थिक स्थिति क्या है।