विकास कुमार
इंडिया गठबंधन की तरफ से मिल रही चुनौती का जवाब देने के लिए मोदी सरकार ने अपने पिटारे से वन नेशन वन इलेक्शन का मुद्दा निकाला है। चुनावी साल में वन नेशन, वन इलेक्शन की सुगबुगाहट फिर से तेज हो गई है। मोदी सरकार ने एक देश-एक चुनाव पर रिपोर्ट तैयार करने की जिम्मेदारी पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को दी है। वन नेशन- वन इलेक्शन का मतलब है- देश में सभी चुनाव एक साथ हो। आईडीएफसी इंस्टीट्यूट के एक सर्वे के मुताबिक 77 फीसदी मतदाता लोकसभा और विधानसभा चुनाव के वक्त एक ही पार्टी को वोट करती है। बस इसी बात को आधार बनाकर मोदी सरकार वन नेशन वन इलेक्शन को लागू करना चाहती है। वहीं, वन नेशन वन इलेक्शन के लिए कमेटी के गठन के बाद यह भी माना जा रहा है कि संसद के विशेष सत्र में इसपर विस्तार से चर्चा हो सकती है।
वन नेशन वन इलेक्शन को लेकर मोदी सरकार भले ही जल्दबाजी दिखाए,लेकिन कई सवालों का जवाब ढूंढना आसान नहीं है। वन नेशन- वन इलेक्शन का प्रस्ताव अगर पास होता है, तो कई राज्यों की विधानसभा को भंग करना पड़ेगा। कोविंद कमेटी यह देखेगी कि क्या ऐसा करना सही है? क्या यह संवैधानिक अधिकारों का तो हनन नहीं है? क्योंकि पूर्ण बहुमत नहीं होने पर ही राज्यपाल समय से पहले विधानसभा भंग करने की सिफारिश कर सकता है। अगर राज्य यह तर्क देता है कि समय से पहले पूर्ण बहुमत की सरकार को गिराना गलत है तो वन नेशन- वन इलेक्शन को लागू करना मुश्किल हो सकता है।
भविष्य में लोकसभा भंग होने पर क्या सभी विधानसभा को भी भंग किया जाएगा? अगर नहीं तो क्या एक देश-एक चुनाव का साइकिल मेंटेन रह पाएगा? अगर चुनाव के तुरंत बाद ही किसी पार्टी को बहुमत नहीं मिलती है, तो उस स्थिति में क्या होगा? इन सवालों का भी जवाब तलाशना होगा।
वन नेशन वन इलेक्शन अगर लागू होगा तो निकाय और एमएलसी चुनाव का क्या होगा? क्योंकि निकाय और एमएलसी चुनाव को लेकर कुछ भी नहीं कहा जा रहा है,जानकारों का कहना है कि कोविंद कमेटी के लिए इन बड़े सवालों का जवाब ढूंढना आसान नहीं होगा।
मोदी सरकार बिना सोचे समझे जल्दबाजी में फैसले लागू करने के लिए जानी जाती है। नोटबंदी,जीएसटी जैसे बड़े फैसले भी इसी तरह से लिए गए थे जिससे आज तक देश की इकोनॉमी उबर नहीं पाई हैं ऐसे में वन नेशन वन इलेक्शन को जल्दबाजी में लागू करने से मोदी सरकार को बचना चाहिए।