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चाहे ‘ भारत’ कहे चाहे ‘ इंडिया’ हम नहीं देंगे दखल,नामकरण पर बोला था सुप्रीम कोर्ट

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बीरेंद्र कुमार झा
इस देश को इंडिया या भारत में से क्या कहकर संबोधित किया जाना चाहिए ?यह सवाल पहली बार नहीं उठा है। वर्षों पहले भी इससे जुड़ी है याचिका सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हुई थी। उस दौरान शीर्ष अदालत ने नाम चुनने को किसी व्यक्ति का निजी फैसला बताया था। साथ ही इस मामले में दखल देने से इनकार कर दिया था। हालांकि कुछ साल बाद फिर जब इंडिया नाम को हटाने की याचिका न्यायालय पहुंची तो शीर्ष अदालत ने सरकार को इस पर अपना रुख स्पष्ट करने का सुझाव दिया था।

देश के नामकरण से जुड़ा पहला याचिका

वर्ष 2016 के मार्च महीना में भारत के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश टीएस ठाकुर के सामने एक्टिविस्ट निरंजन भटवाल की एक याचिका पहुंची थी।इसमें संविधान के अनुच्छेद 1 में दर्ज शब्दावली पर सफाई की मांग की गई थी।याचिकाकर्ता का कहना था कि इंडिया भारत का शाब्दिक अनुवाद नहीं है।याचिका में कहा गया था कि इतिहास और ग्रंथों में इसे भारत कहा गया है।

साथ ही उन्होंने यह भी कहा था कि इंडिया अंग्रेजों की तरफ से कहा गया था। उन्होंने मांग की थी कि देश के नागरिकों को यह बात साफ होना चाहिए कि उन्हें अपने देश को क्या कहना चाहिए।

क्या बोला था कोर्ट

याचिका पर सुनवाई कर रहे तत्कालीन सीजेआई टीएस ठाकुर ने कहा था की कोई भी नागरिकों को यह निर्देश नहीं दे सकता है उन्हें अपने देश को क्या कहना चाहिए। सीजेआई ठाकुर ने कहा था कि अगर आप इस देश को भारत करना चाहते हैं तो आगे बढ़ें और इसे भारत कहें, अगर कोई इस देश को इंडिया करना पसंद करता है तो उसे इंडिया कहने दीजिए। हम दखल नहीं देंगे।

नामकरण से जुड़ी दूसरी याचिका

वर्ष 2020 में सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन सीजेआई एसए बोबडे के सामने भी एक देश के नामकरण से जुड़ी एक दूसरी याचिका पहुंची थी। इस याचिका में भारत के संविधान के अनुच्छेद 1 से इंडिया शब्द हटाने की मांग की गई थी।साथ ही कहा गया था कि देश के नाम में एक समानता होनी चाहिए। सीजेआई बोबडे ने इस याचिका पर विचार नहीं किया।

उन्होंने याचिकाकर्ता से कहा था कि भारत और इंडिया दोनों ही नाम संविधान में दिए हुए हैं। इंडिया को संविधान में पहले ही भारत कहा गया है। इसके अलावा उन्होंने याचिकाकर्ता को सुझाव दिया की इस याचिका को रिप्रेजेंटेशन के तौर पर बदलकर केंद्रीय मंत्रालय को भेजा जा सकता है।

 

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