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मध्यप्रदेश चुनाव :फरारी और बलात्कार केस को लेकर कैलाश विजयवर्गीय की बढ़ी मुश्किलें !

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न्यूज़ डेस्क 

बीजेपी के बड़े नेता और पार्टी के महासचिव कैलाश विजयवर्गीय को पार्टी ने इस बार इंदौर एक से अपना उम्मीदवार खड़ा किया है। लेकिन उनकी मुश्किलें अब बढ़तरी जा रही है। अपने नामांकन में उन्होंने को मामले का जिक्र नहीं किया जिससे कांग्रेस अब हमलावर हो गई है। मामला अब हाई कोर्ट तक पहुँच गया है।        
कांग्रेस प्रत्याशी संजय शुक्ला के वकील मिश्रा का तर्क है कि बलात्कार के मामले में सुप्रीम कोर्ट में याचिका विजयवर्गीय ने खुद लगाई। ऐसे में इस प्रकरण से वे अनभिज्ञ तो हो ही नहीं सकते। उसे छिपाकर निर्वाचन आयोग के निर्देशों की अवहेलना की गई है, इसलिए नामांकन निरस्त किया जाना चाहिए।     
 बता दें कि पश्चिम बंगाल में भाजपा के प्रभारी रहे कैलाश पर एक महिला ने बलात्कार, छल, अमानत में खयानत सहित अन्य गंभीर धाराओं को लेकर जिला कोर्ट में मुकदमा दर्ज करने का आवेदन किया था। कोर्ट के निर्देश पर अलीपुर पुलिस ने मुकदमा दर्ज किया, जिसकी विजयवर्गीय ने अपील हाई कोर्ट में की, जिसे खारिज कर दिया गया। सुप्रीम कोर्ट में अपील की, जहां से निचली अदालत को फिर से आदेश पर विचार करने के निर्देश दिए गए। केस अब तक लंबित है, खत्म नहीं हुआ है।             
    30 अक्टूबर को क्षेत्र-1 से भाजपा प्रत्याशी कैलाश ने नामांकन दाखिल कर शपथ पत्र पेश किया। इसमें पांच प्रकरणों का उल्लेख किया गया, लेकिन इस गंभीर मामले की जानकारी नहीं दी गई। इसके अलावा छत्तीसगढ़ की दुर्ग पुलिस ने भी विजयवर्गीय को स्थायी फरार घोषित कर स्थायी गिरफ्तारी वारंट जारी कर रखा है। विजयवर्गीय ने इसकी जानकारी भी नहीं दी। इस पर कांग्रेस प्रत्याशी संजय शुक्ला के प्रस्तावक दीपू यादव के हस्ताक्षर से विधि सलाहकार सौरभ मिश्रा ने भारत निर्वाचन आयोग, राज्य निर्वाचन पदाधिकारी, जिला निर्वाचन अधिकारी और विधानसभा-204 के रिटर्निंग अधिकारी ओम नारायण सिंह को मामले की मय दस्तावेज शिकायत दर्ज कराई। सिंह ने आपत्ति को खारिज कर दिया। इस पर शुक्ला के वकील मिश्रा का कहना है कि न्याय के लिए अब हम हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाएंगे।
                    सामूहिक बलात्कार और धमकी देने के मामले में कैलाश विजयवर्गीय को सुप्रीम कोर्ट ने झटका दिया था। न्यायाधीश एमआर शाह व संजीव खन्ना की खंडपीठ ने विजयवर्गीय की अपीलों को निस्तारित करते हुए आदेश दिया। न्यायालय ने कहा कि मजिस्ट्रेट कोर्ट मामले का परीक्षण कर विवेकाधिकार का प्रयोग करे और तय करे कि एफआईआर दर्ज करने का आदेश देना है या नहीं या फिर सीधे प्रसंज्ञान लेकर अपने स्तर पर जांच की जाए। मजिस्ट्रेट कोर्ट को यह भी विकल्प दिया कि कोई भी निर्णय लेने से पहले अब तक सामने आए दस्तावेजों के आधार पर प्रारंभिक जांच (पी.ई.) के लिए मामला पुलिस के पास भी भेजा जा सकता है, ताकि पता चल सके कि परिवाद के आधार पर अपराध बनता है या नहीं। कोर्ट ने मजिस्ट्रेट कोर्ट के एफआईआर दर्ज करने के आदेश को रद्द कर दिया, वहीं कलकत्ता हाईकोर्ट की ओर से मजिस्ट्रेट कोर्ट को दिए नए सिरे से कार्यवाही करने के आदेश को यथावत रखा है।
                      तथ्यों के अनुसार पुलिस के कैलाश विजयवर्गीय व दो अन्य के खिलाफ एफआईआर दर्ज नहीं करने पर परिवादिया ने पश्चिम बंगाल के अलीपोर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट न्यायालय में परिवाद दायर किया। नवंबर 2020 में मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट ने परिवाद खारिज कर दिया।
परिवादिया इसके खिलाफ कलकत्ता हाईकोर्ट पहुंची, जहां से परिवाद खारिज करने का आदेश रद्द कर पुन: कार्यवाही के लिए मामला मजिस्ट्रेट कोर्ट को लौटा दिया गया। इसके बाद मजिस्ट्रेट कोर्ट ने एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया। 2021 में विजयवर्गीय ने सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की। कोर्ट ने एफआईआर दर्ज करने का आदेश रद्द कर मामला फिर से मजिस्ट्रेट कोर्ट को लौटा दिया।

                        मजिस्ट्रेट कोर्ट में दायर परिवाद में कहा गया था कि विजयवर्गीय, प्रदीप जोशी व जिष्णु वसु याचिकाकर्ता पर बेहाला महिला थाने में दर्ज एफआईआर वापस लेने के लिए दबाव बना रहे थे। नवंबर 2018 में इसी मामले पर चर्चा के लिए उसे विजयवर्गीय के अपार्टमेंट पर बुलाया, जहां विजयवर्गीय, जोशी और वसु ने परिवादिया से बलात्कार किया। इस बारे में पुलिस अधिकारियों तक शिकायत की गई, लेकिन एफआईआर दर्ज नहीं हुई।
                        नामांकन में पेश शपथ पत्र में कैलाश ने पश्चिम बंगाल के पांच मामलों की जानकारी दी। बचे मामलों पर कलाकारी करते हुए एक टीप लिखी। वे भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव रहते हुए विभिन्न प्रदेशों में चुनावी दौरे करते हैं। राजनीतिक वैमनस्यता से कोई जांच प्रचलित हो, जिसकी जानकारी अभी नहीं है। 

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