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अंतरिक्ष में इसरो की एक और लंबी छलांग: लॉन्च की नेविगेशन सैटेलाइट, जानें क्या है इसकी खासियत

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न्यूज डेस्क
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने अंतरिक्ष में उपग्रह भेजने के मामले में सोमवार को एक नई उड़ान भरी। इसरो के वैज्ञानिकों ने ओडिशा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र के दूसरे लॉन्च पैड से भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान (जीएसएलवी) के जरिए एक नौवहन उपग्रह NVS-01 को सफलतापूर्वक लॉन्च किया।

भारतीय रॉकेट जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (GSLV) ने श्रीहरिकोटा से सोमवार सुबह दूसरी पीढ़ी के नैविगेशन सैटेलाइट कोड एनवीएस-01 का साथ सफलतापूर्वक प्रक्षेपण किया। 51.7 मीटर लंबा और 420 टन वजनी जीएसएलवी रॉकेट पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण खिंचाव से मुक्त होकर सुबह 10.42 बजे आसमान में उठा। दिलचस्प बात यह है कि पहली बार, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के स्पेस एप्लिकेशन सेंटर, अहमदाबाद द्वारा विकसित एक स्वदेशी रूबिडियम परमाणु घड़ी को एनवीएस-01 में उड़ाया जा रहा है।

क्या है नाविक पीढ़ी?

इंडियन रीजनल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम (IRNSS) का परिचालन नाम NavIC है। इसे भारतीय नक्षत्र के साथ नेविगेशन के लिए बनाया गया है। यह भारत और भारतीय मुख्य भूमि के आसपास लगभग 1500 किमी तक फैले क्षेत्र में सटीक रीयल- टाइम लोकेशन और समय सेवाएं प्रदान कर रहा है। वर्तमान में आईआरएनएसएस तारामंडल में सात उपग्रहों में से प्रत्येक का नाम नाविक रखा गया है। इनका वजन बहुत कम लगभग 1,425 किलोग्राम है। ये सभी हल्के पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (PSLV) इसरो के वर्कहॉर्स लॉन्च रॉकेट पर सवार होंगे।

NVS-O1 उपग्रह की खासियत क्या है?

उपग्रह में रुबिडियम परमाणु घड़ी होगी, जो भारत द्वारा विकसित एक महत्वपूर्ण तकनीक है। इसरो के बयान के मुताबिक, स्पेस एप्लिकेशन सेंटर-अहमदाबाद द्वारा स्वदेशी रूप से विकसित अंतरिक्ष-योग्य रूबिडियम परमाणु घड़ी एक महत्वपूर्ण तकनीक है, जो केवल कुछ देशों के पास है।

दूसरी पीढ़ी के उपग्रह L5 और S फ्रीक्वेंसी सिग्नल के अलावा एक तीसरी फ्रीक्वेंसी, L1 सिग्नल भेजेंगे। यह सिग्नल चेतावनी योग्य उपकरणों में बेहतर उपयोग के लिए सहायक होंगे। बता दें कि L1 फ्रीक्वेंसी ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम (GPS) में सबसे अधिक उपयोग की जाने वाली फ्रीक्वेंसी में से एक है। यह क्षेत्रीय नेविगेशन सिस्टम के उपयोग को बढ़ाएगी। दूसरी पीढ़ी के उपग्रहों का 12 वर्ष से अधिक का लंबा मिशन जीवन होगा। मौजूदा उपग्रहों का मिशन जीवन 10 वर्ष ही है।

NVS-01 में परमाणु घड़ी का महत्व

मौजूदा उपग्रहों में से कई ने उनमें लगी परमाणु घड़ियों के विफल होने के बाद लोकेशन डेटा देना बंद कर दिया था। एक उपग्रह-आधारित पोजिशनिंग सिस्टम परमाणु घड़ियों का उपयोग करके ही किसी सिग्नल को भेजने और वापस आने में लगने वाले समय को सटीक रूप से मापकर वस्तुओं का स्थान निर्धारित करता है। घड़ियों की विफलता का अर्थ है कि उपग्रह अब सटीक लोकेशन देने के लायक नहीं हैं।

इसरो के अनुसार, वर्तमान में केवल चार इंडियन रीजनल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम (आईआरएनएसएस) उपग्रह स्थान सेवाएं प्रदान करने में सक्षम हैं। अन्य उपग्रहों का उपयोग केवल संदेश सेवा के लिए किया जा सकता है जैसे आपदा चेतावनी या मछुआरों के लिए संभावित मछली पकड़ने के क्षेत्र की जानकारी प्रदान करना।

रीजनल नेविगेशन सिस्‍टम के फायदे

दुनिया में चार तरह के ग्लोबल सैटेलाइट-बेस्ड नेविगेशन सिस्‍टम हैं- अमेरिका का GPS, रूस का GLONASS, यूरोप का गैलीलियो और चीन का बायडू। भारत इकलौता देश है जिसके पास रीजनल सैटेलाइट-बेस्ड नेविगेशन सिस्‍टम है। जापान में फोर-सैटेलाइट सिस्‍टम है जो पूरे देश में GPS सिग्‍नल को बेहतर कर सकता है, काफी कुछ भारत के GAGAN की तरह। एक बार पूरी तरह ऑपरेशनल होने के बाद NavIC के ओपन सिग्‍नल 5 मीटर तक एक्यूरेट पोजिशन बता पाएंगे। रिस्‍ट्रक्‍टेड सिग्‍नल और सटीक जानकारी देंगे। इसकी तुलना में GPS सिग्‍नल करीब 20 मीटर तक एक्यूट पोजीशन बताते हैं। NavIC के सिग्नल 90 डिग्री के एंगल पर आते हैं। इससे घने इलाकों, जंगलों और पहाड़ों में मौजूद डिवाइस तक आसानी से सिग्‍नल पहुंचते हैं।​

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