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राजभर से चिराग पासवान तक आए साथ, यूपी बिहार के गणित से समझें बीजेपी का दलित और ओबीसी दांव

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बीरेंद्र कुमार झा

लोकसभा चुनाव के लिए विपक्षी कवायद के जवाब में बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए ने भी मैदान संभाल लिया है।सबसे बड़ी लड़ाई ओबीसी और दलित समुदायों के बीच पैठ बनाने और समर्थन जुटाने को लेकर है। बीजेपी ने उत्तर भारत में प्रभावी सामाजिक समीकरण वाले ओबीसी और दलित समुदाय में पैठ वाले दलों और नेताओं को जुटाकर अपनी ताकत बढ़ाने शुरू कर दी है। इसकी पहली बड़ी झलक मंगलवार को होने वाली एनडीए की बैठक में नजर आएगी।

राजनीतिक समीकरण

विपक्ष वह सत्तापक्ष दोनों जब मंगलवार को बड़ी बैठकों के जरिए अपनी ताकत दिखा रहे होंगे,तब उनके सामने होगा 2024 का चुनावी एजेंडा।यहां उनकी रणनीति के केंद्र में ओबीसी और दलित समुदाय,जिसकी आबादी और ताकत सत्ता का खेल बनाने और बिगाड़ने में सबसे महत्वपूर्ण होती है।

ये उत्तर प्रदेश और बिहार में तो इस लड़ाई के केंद्र में होंगे ही, जहां नए राजनीतिक समीकरण ने आकार लेना शुरू कर दिया है।इन दोनों राज्यों में ओबीसी की आबादी लगभग 52 प्रतिशत है।ऐसे में इस समूह का समर्थन सबसे ज्यादा मायने रखता है। दलित समुदाय की आबादी बिहार मैं 16% और उत्तर प्रदेश में लगभग 22% हैं।

नेताओं की वापसी का क्रम

बिहार में बीजेपी ने पिछला लोकसभा चुनाव जेडीयू और एलजेपी के साथ मिलकर लड़ा था और आज की 40 लोकसभा सीटों में से 39 सीटों पर इसने जीत हासिल की थी। उत्तर प्रदेश में बीजेपी के गठबंधन को 64 सीटें मिली थी। तब से अब तक कई दल बीजेपी गठबंधन से बाहर हुए लेकिन अब कुछ दल और इसके नेता फिर से बीजेपी खेमे में वापसी कर रहे हैं ।स्थानीय क्षेत्रीय सामाजिक समीकरणों के लिहाज से यह नेता काफी महत्वपूर्ण है। बिहार में जीतन राम मांझी और उपेंद्र कुशवाहा एनडीए में लौट आए हैं। चिराग पासवान की भी मवापसी हो गई है। नागमणि जैसे नेता भी बीजेपी के साथ आ गए हैं।

उत्तर प्रदेश में पैठ बनाने की कोशिश

उत्तर प्रदेश में भी बीजेपी के साथ अब पुराने सहयोगी अपना दल व संजय निषाद की निषाद पार्टी के साथ ओमप्रकाश राजभर की सुभाषपा साथआ गई है। दारा सिंह चौहान भी एसपी छोड़कर बीजेपी में शामिल हो गए हैं।इससे बीजेपी को राजभर, निषाद,केवट, मछुआरा ,कुर्मी व दलित वर्ग में पैठ मजबूत करने में मदद मिलेगी।

बीजेपी नेताओं का दावा है कि यह तो शुरुआत है, अभी ओबीसी व दलित समुदाय से आने वाले कुछ और नेता एनडीए के मंच पर खड़े होंगे। इसके पीछे उनका तर्क विकास का एजेंडा है जो प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में बीते 9 साल में इन वर्गों तक पहुंचा है।

विपक्षी एकता को लेकर बीजेपी सतर्क

बीजेपी विपक्षी एकता को लेकर पूरी तरह से सतर्क है।आरजेडी और जेडीयू के साथ आने से बिहार के समीकरण तो बदले ही हैं, दूसरे राज्यों में भी विपक्षी एकता को पंख लगे हैं।समाजवादी पार्टी भी इसके साथ हैं । इससे बिहार के साथ उत्तर प्रदेश की राजनीति खासी प्रभावित होगी ।जेडीयू के साथ छोड़ने से बिहार में बीजेपी के सामाजिक समीकरण गड़बड़ाया है। इससे बिहार में तो चिंता बढ़ी ही है। उत्तर प्रदेश में भी इसका असर पड़ सकता है।

पिछला चुनाव में दलित आरक्षित सीट और एनडीए

बिहार में पिछले लोकसभा चुनाव में कुल 40 सीटों में से दलित वर्ग की आरक्षित सभी 6 सीटों पर एनडीए ने जीत हासिल की इसमें बीजेपी ने एक एलजेपी ने 3 और जेडीयू ने 2 सीटें जीती थी। राज्य में पिछले विधानसभा चुनाव में 39 दलित विधायकों में बीजेपी के 10, जेडीयू के 8 हम से 3 वीआईपी के 1, आरजेडी के 8 ,कांग्रेस के 4, सीपीआई एमएल के 3 सीपीआई के 1 व अन्य के1 विधायक शामिल थे।

उत्तर प्रदेश में पिछले लोकसभा चुनाव में 17 आरक्षित सीटों में से बीजेपी को 15 और बीएसपी को 2 पर जीत मिली थी। विधानसभा में दलित वर्ग के आरक्षित 84 सीटों में से बीजेपी ने 64 सीटें जीती थी जबकि बीएसपी को 1 एसपी को 18 और जनसत्ता पार्टी को 1 सीट मिली थी।

 

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