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Sengol: क्या है सेंगोल, जिसे नए संसद भवन में स्थापित करेगी सरकार, जानें भारत की सत्ता के प्रतीक ‘राजदंड’ का कितना है महत्व

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विकास कुमार
28 मई को भारत के नए संसद भवन का उद्घाटन किया जाएगा। इससे पहले गृह मंत्री अमित शाह ने एक ऐतिहासिक परंपरा को फिर से स्थापित करने की बात कही है। उन्होंने ऐलान किया है कि नए संसद भवन में सेंगोल स्थापित किया जाएगा। अमित शाह ने कहा कि स्वतंत्रता के एक ‘महत्वपूर्ण ऐतिहासिक’ प्रतीक ‘सेंगोल’ की प्रथा को फिर से शुरू किया जाएगा। यह अंग्रेजों से भारतीयों को सत्ता के हस्तांतरण का प्रतीक था। पीएम मोदी नए संसद भवन के उद्घाटन से पहले तमिलनाडु से सेंगोल प्राप्त करेंगे और वह इसे नए संसद भवन के अंदर रखेंगे। सेंगोल स्पीकर की सीट के पास रखा जाएगा। इस पवित्र सेंगोल को किसी संग्रहालय में रखना अनुचित है। सेंगोल की स्थापना के लिए संसद भवन से अधिक उपयुक्त, पवित्र और उचित स्थान कोई हो ही नहीं सकता। इसलिए जब संसद भवन देश को समर्पित किया जाएगी, उसी दिन प्रधानमंत्री मोदी बड़ी विनम्रता के साथ तमिलनाडु से आए अधीनम से सेंगोल को स्वीकार करेंगे। इस सेंगोल का बहुत बड़ा महत्व है। पीएम मोदी को जब इस बारे में पता चला तो उन्होंने इस बारे में और जानकारी हासिल करने को कहा।

आइए सेंगोल के इतिहास पर एक नजर डालें। सेंगोल तमिल भाषा के शब्द ‘सेम्मई’ से निकला हुआ शब्द है, इसका अर्थ होता है धर्म, सच्चाई और निष्ठा। सेंगोल राजदंड भारतीय सम्राट की शक्ति और अधिकार का प्रतीक हुआ करता था। 14 अगस्त 1947 को पौने ग्यारह बजे के करीब जवाहरलाल नेहरू ने माउंटबेटन से इस सेंगोल को स्वीकार किया था। यह अंग्रेजों से सत्ता के हस्तांतरण का संकेत था। सेंगोल को इलाहाबाद के एक संग्रहालय में रखा गया था और इसे नए संसद भवन में स्थापित किया जाएगा। सेंगोल जिसे दिया जाता है उससे न्यायसंगत और निष्पक्ष शासन देने की अपेक्षा की जाती है। भारत को स्वर्ण राजदंड मिलने के बाद इसे संविधान सभा में भी ले जाया गया था।


अंग्रेजों से भारतीयों को सत्ता के हस्तांतरण के समारोह पर चर्चा के दौरान, वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन ने जवाहरलाल नेहरू से एक सवाल किया।माउंटबेटन ने प्रतीकात्मक समारोह के बारे में जानकारी ली। इसके लिए नेहरू ने सी. राजगोपालाचारी से सलाह मांगी। राजाजी ने चोल वंश के सत्ता हस्तांतरण के मॉडल से प्रेरणा लेने का सुझाव दिया। दरअसल, चोल वंश में एक राजा से दूसरे राजा को सत्ता सौंपते वक्त शीर्ष पुजारियों का आशीर्वाद दिया जाता था। राजाजी के अनुसार, चोल काल में एक राजा से उसके उत्तराधिकारी को सेंगोल का प्रतीकात्मक हस्तांतरण शामिल था। सेंगोल को अधिकार और शक्ति के प्रतीक माना गया।


चोल काल के दौरान, राजाओं के राज्याभिषेक समारोहों में सेंगोल का अत्यधिक महत्व था। यह एक राजदंड के तौर पर कार्य करता था जिसमें बेहतरीन नक्काशी और जटिल सजावट होती थी। सेंगोल को अधिकार का एक पवित्र प्रतीक माना जाता था। जो एक शासक से दूसरे शासक को सत्ता के हस्तांतरण के रूप में सौंपा जाता था। सेंगोल चोल राजाओं की शक्ति, सच्चाई और संप्रभुता के प्रतीक के रूप में उभरा।

अब नए संसद भवन में लोकसभा अध्यक्ष के आसन के पास इस सेंगोल को स्थापित किया जाएगा। ये सेंगोल इतिहास को वर्तमान और भविष्य के साथ जोड़ने का काम करेगा।

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