बीरेंद्र कुमार झा
जम्मू कश्मीर से आर्टिकल 370 हटाने के खिलाफ इस समय सुप्रीम कोर्ट में लगातार सुनवाई चल रही है। इस दौरान केंद्र सरकार ने 1947 के उस दौर की घटनाक्रम का सिलसिलेबार ब्यौरा दिया, जब जम्मू कश्मीर का भारत में आधिकारिक तौर पर विलय हुआ था। केंद्र सरकार का पक्ष रख रहे सॉलिसिटर जेनरल तुषार मेहता ने कहा कि सरदार पटेल जम्मू कश्मीर को विशेष दर्जा दिए जाने के पूरी तरह से खिलाफ थे।उन्होंने तो कश्मीर में अनुच्छेद 370 को लागू किए जाने को पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू का देन बताया था। तुषार मेहता ने अदालत में कहा कि जम्मू कश्मीर में नेहरू के दूत के तौर पर काम कर रहे गोपाल स्वामी आयंगर ने उनके निर्देश पर ही आर्टिकल 370 को जोड़ने का फैसला लिया था।
जम्मू- काश्मीर के महाराज हरि सिंह ने बिना शर्त किया था भारत में विलय
उन्होंने जम्मू कश्मीर के विलय की पूरी क्रोनोलॉजी बताते हुए कहा कि अक्टूबर 1947 में विलय पर फैसला होने से पहले ही पाकिस्तान ने जम्मू कश्मीर पर हमला कर दिया था। ऐसी स्थिति को पटेल पहले ही भांप चुके थे। उन्होंने 3 जुलाई 1947 को डोगरा महाराज हरि सिंह को पत्र लिखा था कि उन्हें बिना कोई देर किए भारत का हिस्सा बन जाना चाहिए। इसकी वजह यह है कि कश्मीर भौगोलिक रूप से और परंपरागत तौर पर भी भारत से जुड़ाव रखता है। तुषार मेहता ने कहा कि पाकिस्तान के हमले के बाद महाराजा हरि सिंह ने विलय पत्र हस्ताक्षर किए थे और फिर जब भारतीय सेवा ने कश्मीर का रुख किया तो पाकिस्तान पीछे हटा।
जम्मू कश्मीर के भारत में विलय के बाद आपसी बातचीत से जम्मू कश्मीर पर अपनी पकड़ बढ़ाने के जिन्ना ने नेहरू और माउंटक्बेटन को दिया था निमंत्रण
कश्मीर के महाराज हरि सिंह ने जब भारत के साथ कश्मीर के विलय पत्र हस्ताक्षर कर दिए तो जिन्ना ने जवाहरलाल नेहरू को कश्मीर मुद्दे पर बात करने के लिए लाहौर बुलाया था। कई किताबों का हवाला देते हुए सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि माउंटबेटन जिन्ना का आमंत्रण स्वीकार करना चाहते थे। उनकी सलाह पर नेहरू भी राजी थे।लेकिन पटेल इसके खिलाफ थी। उन्होंने कहा था कि पाकिस्तान हमलावर है और हम उसकी ही शर्त पर उससे बात नहीं कर सकते।सहमति न बन पाने पर यह मसाला महात्मा गांधी के पास ले जाया गया।उन्होंने नेहरू पटेल और वी पी मेनन से बात की। इसी में इसका एक कूटनीतिक हल यह निकल गया कि नेहरू पाकिस्तान नहीं जाएंगे, बल्कि माउंट वेटेन अकेले लाहौर जा सकते हैं।
1947 से पहले 62 देशी रियासतों का अलग-अलग संविधान था
1947 से पहले 62 देशी रियासतों का अलग-अलग संविधान था, ऐसे में यह कोई आधार नहीं हो सकता कि
यही नहीं केन्द्र सरकार की ओर से अदालत में यह भी तर्क दिया गया कि जम्मू कश्मीर को विशेष राज्य माना जाए। आर्टिकल 370 पर फिलहाल सुनवाई जारी है और दोनों पक्षों की ओर से कोर्ट में ऐतिहासिक तथ्यों के साथ तर्क पेश किया जा रहे हैं। जियो