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हेट स्पीच विवाद : सुप्रीम कोर्ट पीठ ने क्यों कहा कि सरकार नपुंसक हो गई है —

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अखिलेश अखिल
देश के भीतर चल रहे कई मामलों की सुनवाई अभी सुप्रीम कोर्ट चल रही है। इन्ही मामले में एक है हेट स्पीच से जुड़ा मामला। नेताओं के बदलते बोल से समाज में काफी घृणा का माहौल तो खड़ा होता ही है ,एक दूसरे के प्रति अविश्वास का माहौल भी खड़ा होता जा रहा है। ऐसे में जब यह मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा तो अदालत तल्ख़ हो गया। अदालत ने सरकार पर तल्ख़ टिप्पणी की और कहा कि क्या सरकारें नपुंसक हो गई कि ख़ामोशी से सब कुछ देख रही है? जस्टिस केएम जोसेफ और जस्टिस नागरत्ना की पीठ ने कहा कि सरकार हेट स्पीच देने वालों के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं करती ?हमारी चिंता का वजह है कि राजनेता सत्ता के लिए धर्म के इस्तेमाल को चिंता का विषय बनाते हैं। कोर्ट ने कहा कि धर्म को राजनीति से मिलना ही हेट स्पीच है। बेंच ने नफरती भाषण देने वालों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने में विफल रहने को लेकर महाराष्ट्र सहित विभिन्न राज्य प्राधिकरणों के खिलाफ एक अवमानना याचिका पर सुनवाई करते हुए इस तरह की टिप्पणियां की है।

देश के भीतर चल रहे जुलुस और प्रदर्शन पर जस्टिस बीवी नागरत्ना ने कहा कि ये लोगों का अधिकार है लेकिन उस जुलुस में क्या कहा जाता है और क्या किया जाता है इस पर ध्यान देने की जरूरत है। कोर्ट ने कहा कि इज्जत सबसे प्यारी लगती है। ऐसे बयान दिए जाते हैं कि पकिस्तान चले जाओ –लेकिन सच्चाई यह है कि उन्होंने इस देश को चुना है। कोर्ट ने कहा कि हर रोज कुछ तत्व टीवी और सार्वजानिक मंचो पर दूसरों को बदनाम करने के लिए भाषण देते हैं। यह ठीक नहीं।

कोर्ट ने तल्ख़ शब्दों में कहा हम अवमानना की याचिका पर सुनवाई कर रहे हैं ,क्योंकि राज्य समय पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं कर रहे। ऐसा इसलिए है क्योंकि राज्य नाकाम और शक्तिहीन हो गए हैं। अगर राज्य चुप है तो इसका जिम्मा हमारे पर क्यों नहीं होना चाहिए ?

सुनवाई के दौरान कोर्ट ने अटल बिहारी वाजपेयी और पंडित नेहरू की भी चर्चा की। कोर्ट ने कहा कि कभी हमारे पास नेहरू और वाजपेयी जैसे वक्ता हुआ करते थे। दूर -दराज के लोग भी उन्हें सुनने आते थे। अब लोगो की भीड़ फ़ालतू तत्वों को सुनने के लिए आती है। अब कोर्ट इस मसले पर 28 अप्रैल को अगली सुनवाई करेगी।

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने समाचार रिपोर्टों के आधार पर याचिका दायर करने पर आपत्ति जताई। मेहता ने खंडपीठ में शामिल न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना के समक्ष तर्क दिया कि पाशा उस जानकारी का उल्लेख कर रहे हैं जो केवल महाराष्ट्र से संबंधित है और याचिकाकर्ता, जो केरल से है, को महाराष्ट्र के बारे में पूरी तरह से पता है और कहा कि याचिका केवल महाराष्ट्र तक ही सीमित है। उन्होंने तर्क दिया कि याचिकाकर्ता मजिस्ट्रेट की अदालत से घृणा अपराधों की रिपोर्ट करने के लिए सीआरपीसी के तहत सहारा लेने की मांग कर सकता है, इसके बजाय उन्होंने कोर्ट के समक्ष अवमानना याचिका दायर की है, जो समाचार लेखों पर आधारित है।

पीठ ने कहा कि जब उसने आदेश पारित किया, तो उसे देश में मौजूदा परिस्थितियों की जानकारी थी। “हम समझते हैं कि क्या हो रहा है, इस तथ्य को गलत नहीं समझा जाना चाहिए कि हम चुप हैं।”

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