अखिलेश अखिल
वैसे बीजेपी का दवा तो यही है कि वह आगामी विधान सभा चुनाव में राजस्थान में सरकार बनाने जा रही है लेकिन सीएम कौन होगा इस बारे में बीजेपी के नेता कुछ भी नहीं बोल रहे हैं। राजस्थान की राजनीति में दो दशक से ज्यादा समय से वसुंधरा राजे के इर्द गिर्द ही बीजेपी की राजनीति चलती रही लेकिन इस बार वसुंधरा राजे पार्टी के चुनाव प्रचार में कही दिखाई नहीं पड़ती। जो वसुंधरा के साथ के लोग है वे काफी नाराज है और जो वसुंधरा खेमे के विरोधी है वे भी यह सब देखकर चुप है कि अब आगे क्या होगा कोई नहीं जानता। कहने वाले तो अब साफ़ तौर पर कह रहे हैं कि मौजूदा बीजेपी ने वसुंधरा राजे को साइड लाइन कर दिया है। न तो उसके चेहरे पर बीजेपी चुनाव लड़ने जा रही है और न ही उन्हें कोई बड़ी जिम्मेदारी दी जा रही है। बीजेपी के कुछ लोग भी यही चाहते हैं कि वसुंधरा की राजनीति अब ख़त्म होनी चाहिए। लेकिन क्या इतना सब होने के बाद भी वसुंधरा चुप रहेंगी ? असंभव है।
राजस्थान चुनाव के लिए बीजेपी सभी 200 विधानसभा क्षेत्रों को कवर करते हुए विभिन्न क्षेत्रों में ‘परिवर्तन यात्राएं’ निकाल रही है, हालांकि, पार्टी कार्यकर्ताओं को पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की ‘भारी कमी खल रही है’ और वे समझ नहीं पा रहे हैं कि ‘कोई प्रमुख चेहरा’ अभियान का नेतृत्व क्यों नहीं कर रहा है। उन्हें लग रहा है कि पार्टी राज्य में चेहरा विहीन हो गई है।
बीजेपी कार्यकर्ताओं का कहना है कि राजे भीड़ खींचने वाली थीं और अपनी रैलियों के दौरान कार्यकर्ताओं में प्रेरणा और उत्साह लाती थीं। इन कार्यकर्ताओं ने बताया कि वे अलग-अलग स्थानों पर इन यात्राओं में शामिल होने से कतरा रहे हैं। उनका दावा है कि उनका तथाकथित स्थानीय नेताओं से कोई संबंध नहीं है क्योंकि पार्टी में एक चेहरा नहीं बल्कि कई चेहरे हैं जो आगे बढ़कर नेतृत्व लेने की कोशिश कर रहे हैं।
दरअसल, राज्य के कई हिस्सों में इन यात्राओं में पार्टी नेताओं को शर्मिंदगी का सामना करना पड़ा क्योंकि रैलियों में भीड़ नहीं थी, बल्कि खाली कुर्सियां ही सुर्खियां बन रही थीं। विभिन्न शहरों में पार्टी कार्यकर्ताओं ने एक स्वर में पुष्टि की कि पार्टी चेहरे की कमी के कारण कठिन समय का सामना कर रही है।
पोखरण विधानसभा से गुलाब सिंह कहते हैं, ”जब पूर्व सीएम वसुंधरा राजे रैलियां निकालती थीं तो चारों ओर उत्साह होता था और महिलाएं भी शामिल होती थीं। आजकल महिलाओं की भागीदारी कम है। साथ ही राजे के बाद पार्टी में कोई मजबूत चेहरा नहीं रहा है जिसे पार्टी कार्यकर्ता अपना नेता मान सकें। इसलिए वरिष्ठ नेताओं को इस मोर्चे पर सोचना चाहिए और एक चेहरा लाना चाहिए जिसके पास पार्टी कार्यकर्ता अपने स्थानीय मुद्दों पर चर्चा कर सकें। उन्होंने कहा, वर्तमान में, पीएम मोदी को चुनावों का चेहरा बनाया गया है, लेकिन हम हर स्थानीय मुद्दे के लिए उन तक नहीं पहुंच सकते हैं और इसलिए जमीनी स्तर पर चुनौती आती है।
बाड़मेर विधानसभा से एक अन्य नेता ने कहा कि गहलोत सरकार पहले ही महिलाओं की 50 फीसदी आबादी को मुफ्त मोबाइल फोन देकर टैप कर चुकी है, भारी भीड़ आ रही है। हालांकि, बीजेपी ने अभी तक राजस्थान में ऐसी कोई पहल शुरू नहीं की है। भले ही बीजेपी सरकार ने ‘लाडली बहना’ योजना के तहत महिलाओं को 3,000 रुपये देने की घोषणा की है, लेकिन राजस्थान में अभी तक ऐसी कोई घोषणा नहीं की गई है जो महिला मतदाताओं को लुभा सके।’
उन्होंने कहा, “जब वसुंधरा राजे यात्राएं निकालती थीं, तो महिलाएं अपने आप उनके साथ जुड़ती थीं। वह था राजे और महिला मतदाताओं का जुड़ाव, जिसका वर्तमान में मौजूदा हालात में अभाव दिख रहा है। इसलिए ऐसा लगता है कि महिला मतदाताओं को गहलोत सरकार ने लालच दिया है।” हिंडौन सिटी के एक अन्य कार्यकर्ता अमन शर्मा ने कहा, “पूर्वी राजस्थान में बीजेपी पहले से ही कमजोर है और यात्रा को यहां खराब प्रतिक्रिया मिली है। इसका कारण- रेगिस्तानी राज्य में चेहरे की कमी है। पार्टी कार्यकर्ताओं को यह समझ नहीं आ रहा है कि वे कहां जाएं या उन्हें किस नेता के साथ जाना चाहिए।”


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