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 केंद्रीय एजेंसियों को झारखंड में भी शराब कारोबार में बड़े घोटाले की आशंका

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बीरेंद्र कुमार झा

प्रवर्तन निदेशालय ईडी ने छत्तीसगढ़ शराब घोटाले में जिन लोगों को किंगपिन के रूप में चयनित किया है ,झारखंड के भी शराब कारोबार पर उन्हीं लोगों का अप्रत्यक्ष रूप से कब्जा था। इसके मद्देनजर केंद्रीय जांच एजेंसियों द्वारा झारखंड में भी शराब के व्यापार में बड़े पैमाने पर घोटाले की आशंका जताई जा रही है। झारखंड के अधिकारियों ने गड़बड़ी की स्थिति में खुद को बचाने के लिए कानूनी प्रावधान भी कर लिया है। उत्पाद नीति की धारा 57 में किसी भी और असंवैधानिक कार्य के लिए लाइसेंसी या उसके कर्मचारी को दंडित करने का प्रावधान था, लेकिन निगम के अधिकारियों को दंड के प्रावधान से अलग कर दिया गया था ।राज्यपाल ने इस पर आपत्ति जताई थी।

 

छत्तीसगढ़ के घोटालेबाज ही झारखंड के शराब वितरण में भी शामिल

ईडी ने छत्तीसगढ़ शराब घोटाले की जांच के दौरान यह पाया कि शराब के व्यापार में लगे लोगों और अधिकारियों की मदद से शराब के कारोबार की समानांतर व्यवस्था कायम की गई थी। समानांतर व्यवस्था कायम करने और ईसे चलाने के मामले में ईडी ने 3 लोगों को दोषी माना है इसमें छत्तीसगढ़ स्टेट मार्केटिंग कॉरपोरेशन लिमिटेड के प्रबंध निदेशक अरुण पति त्रिपाठी,होलोग्राम छापने वाली प्रिज्म होलोग्राम एंड फिल्म सिक्योरिटीज लिमिटेड नामक कंपनी और खुदरा दुकान चलाने के लिए मेन पावर सप्लाई करने वाली कंपनी मेसर्स सुमित फेलिसिटीज लिमिटेड का नाम शामिल है।इन्हीं तीनों की महत्वपूर्ण भूमिका झारखंड की उत्पाद नीति और शराब के व्यापार में भी है। उत्पाद विभाग ने नए उत्पाद नीति के लिए छत्तीसगढ़ स्टेट मार्केटिंग कॉरपोरेशन लिमिटेड के साथ किया था,जिसे बाद में भगा दिया गया। इसके निदेशक अरुणपति त्रिपाठी ही थे। राज्य में होलोग्राम छापने का काम भी प्रिज्म होलोग्राम एंड फिल्म सिक्योरिटीज लिमिटेड को दिया गया था।सरकार ने तो इस कंपनी पर मेहरबानी की और उत्पाद भवन में ही उसे दफ्तर भी दे दिया।इस राज्य में भी मैन पावर सप्लाई का काम मेसर्स सुमित फेलिसिटी लिमिटेड को ही मिला है।इस तरह छत्तीसगढ़ शराब घोटाले के तीनों महत्वपूर्ण और झारखंड में स्थापित हो गए।

घोटालेबाज छतीशगढ़ में चला रहे थे समांतर व्यवस्था

ईडी ने छत्तीसगढ़ शराब घोटाले की जांच में पाया कि राजनीतिक सहयोग से इन तीनों का नियंत्रण अनवर ढेवर करता था और कमीशन की वसूली करता था। अरुण त्रिपाठी फ्रिज और सुमित फैसिलिटी के सहयोग से छत्तीसगढ़ में हुए शराब के व्यापार को दो हिस्से में बांटा है। नियम संगत शराब की बिक्री को ईडी ने अकाउंटेंट सेल और गलत तरीके से सरकारी संसाधनों का इस्तेमाल कर की गई शराब की बिक्री को अनअकाउंटेड सेल के रूप में चिन्हित किया है। दोनों ही तरह की शराब की बिक्री शराब सरकार द्वारा संचालित खुदरा दुकानों में ही हुई ।ईडी ने अकाउंटेंट सेल की श्रेणी में शराब की बोतलों को शामिल किया है। जिन पर सरकार के माध्यम से उपलब्ध कराए गए होलोग्राम लगाकर खुदरा दुकानों में बेचा गया, वहीं अनअकाउंटेड सेल की श्रेणी में शराब की बोतलों को शामिल किया है जिन बोतलों को प्रिज्म द्वारा होलोग्राम छापकर सीधे शराब बनाने वाले कंपनियों को दे दिया जाता था। इसके बाद शराब बनाने वाली कंपनियां ऐसे होलोग्राम लगी बोतलों को सीधे सरकार की खुदरा दुकानों तक पहुंचा दिया करती थी। सरकार के पास इसका लेखा जोखा नहीं रहता था।शराब दुकानों में मैन पावर सप्लाई करने वाली कंपनी अपने कर्मचारियों को ट्रेनिंग दे रखा था कि फैक्ट्री से सीधे दुकान पहुंचने वाले शराब की बिक्री पर ज्यादा ध्यान दें। इससे सरकार को राजस्व का भारी नुकसान हुआ, जबकि सरकारी संसाधनों का इस्तेमाल अनएकाउंटेड सेल का पूरा पैसा शराब की समानांतर व्यवस्था कायम करने वाले लोगों के पास गया और इसे अफसरों और राजनीतिज्ञों में बांटा गया।

 

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