न्यूज़ डेस्क
एक तरफ दुनिया आबादी लगातार बढ़ती जा रही है लेकिन दूसरा सच यही है कि हर 40 दिन में दुनिया की एक भाषा नखत्म होती जा रही है। ये जानकारी विजुअल कैपिटलिस्ट के डाटा सेक् मिल रही है। बता दें कि मौजूदा समय में दुनिया भर में 7168 भाषाएं बोली जाती है और उनमे से 43 फीसदी भाषा समाप्ति की तरफ बढ़ रही है।
अधिकांश लुप्तप्राय भाषाएं स्वदेशी समुदायों में जुड़ी हुई हैं, जिससे उनसे जुड़ी संस्कृति और ज्ञान के नष्ट होने का खतरा भी बना हुआ है। यदि विलुप्ति की वर्तमान दर जारी रही तो अगले 100 साल में 90 प्रतिशत भाषाएं खत्म हो जाएंगी।
वर्तमान में 8.8 करोड़ से अधिक लोग लुप्तप्राय भाषाएं बोलते हैं। लुप्तप्राय भाषाओं का मतलब है कि बच्चे न तो इन्हें सीखते हैं और न ही इनका प्रयोग करते हैं। ओशिनिया क्षेत्र में लुप्तप्राय भाषाओं का घनत्व सबसे अधिक है, जहां 733 भाषाएं खतरे में हैं। वहीं अफ्रीका में 428 भाषाएं लुप्तप्राय हैं, जिनमें से कई भूमध्य रेखा के आसपास की हैं। विस्थापन, सूखा और संघर्ष कुछ प्रमुख कारण हैं जिनकी वजह से भाषाओं के खतरे में पड़ने की आशंका है। उत्तरी और मध्य अमरीका में 222 भाषाओं पर विलुप्ति का संकट गहरा है।
एथेनोलॉग डाटा के अनुसार लगभग 89 लाख से की आबादी के साथ पापुआ न्यू गिनी दुनिया में सबसे अधिक भाषाओं का घर है। विविधताओं से भरे इस देश में कुल 840 भाषाएं बोली जाती हैं। भाषाओं की संख्या के मामले में इंडोनेशिया दूसरे स्थान पर है। नाइजीरिया, भारत और अमरीका शीर्ष पांच देशों में शामिल हैं। जबकि दुनिया की 23 सबसे प्रमुख भाषाएं ही अब वैश्विक आबादी के 50 प्रतिशत से अधिक लोगों द्वारा बोली जाती हैं।
माओरी भाषा का सच ये है कि 1970 के दशक में सिर्फ पांच फीसदी स्कूली बच्चे माओरी भाषा (खासतौर से न्यूजीलैंड के उत्तरी द्वीप में बोली जाने वाली) बोलते थे। संरक्षण प्रयासों से अब यह प्रतिशत 25 हो गया है।
उसी तरह ओलेलो हवाई भाषा के बारे में कहा जाता है कि 1970 के दशक में हवाई भाषा ओलेलो हवाई बोलते थे। स्थानीय सरकार की ओर से सुनिश्चित करने के बाद कि इसे स्कूलों में पढ़ाया जाए, 2023 में बोलने वालों की संख्या बढ़कर 18,700 हो गई।