बीरेंद्र कुमार झा
अयोध्या के राम मंदिर में रामलला के प्राण प्रतिष्ठा समारोह को लेकर जहां बीजेपी पूरे उत्साह में है, वही इंडिया गठबंधन इसे लेकर काफी उहापोह की स्थिति में है।इंडिया गठबंधन के कई बड़े नेताओं द्वारा 22 जनवरी को अयोध्या में आयोजित होने वाले श्री रामलला प्राण प्रतिष्ठा समारोह में नहीं जाने की घोषणा के बाद अब कांग्रेस की उलझने काफी बढ़ गई है।कांग्रेस नेतृत्व अब यह तय नहीं कर पा रहा है की मंदिर ट्रस्ट के द्वारा निमंत्रण देने के बावजूद सोनिया गांधी, अधीर रंजन चौधरी या मल्लिकार्जुन खड़गे जैसे वरिष्ठ नेता को इस प्राण प्रतिष्ठा समारोह में शामिल होना चाहिए या नहीं। विपक्षी गठबंधन इंडिया के घटक दल मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के नेता सीताराम येचुरी और टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी ने साफ कर दिया है कि वे इस कार्यक्रम में शामिल नहीं होंगे। एनसीपी नेता शरद पवार ने भी अब वहां नहीं जाने का मन बना लिया है। ऐसे में कांग्रेस के लिए दुविधा की बात यह है कि अगर सोनिया गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे जैसे नेता रामलला के इस प्राण प्रतिष्ठा समारोह में शामिल होते हैं, तो उसे कांग्रेस के अल्पसंख्यक वोट बैंक के नाराज होने के साथ-साथ, इंडिया गठबंधन के घटक दलों के नाराज होने का खतरा है और अगर पार्टी इस समारोह से किनारा करती है तो इसके हिंदुत्व विरोधी होने का ठप्पा और गहरा हो जाएगा, जिसका असर लोकसभा चुनाव में पड़ सकता है।
विपक्षी गठबंधन इंडिया के कई बड़े नेता रह सकते हैं समारोह से दूर
अयोध्या के राममंदिर में 22 जनवरी को रामलला की प्राण प्रतिष्ठा होनी है, जिसके लिए श्री राम मंदिर तीर्थ ट्रस्ट की तरफ से पहले राजनेताओं, उद्योगपति, सीने स्टार और खिलाड़ी जैसे सेलिब्रिटी को न्योता भेजा गया था।बाद में न्योते को लेकर विपक्ष ने पीएम मोदी और बीजेपी पर हमला बोला था। इंडिया गठबंधन के दलों ने आरोप लगाया था कि विपक्ष के नेताओं को निमंत्रण नहीं दिया जा रहा है, जबकि राम मंदिर का निर्माण चंदे के पैसे से हुआ है। इसके बाद विपक्ष के कई नेताओं को भी ट्रस्ट की तरफ से निमंत्रण दिया गया है।ट्रस्ट ने जिन राजनेताओं को निमंत्रण दिया है उसमे कांग्रेस की नेता सोनिया गांधी, मल्लिकार्जुन खड़गे, अभिरंजन चौधरी, सीपीएम नेता सीताराम येचुरी, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, लालू यादव, टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी,तथा एनसीपी नेता शरद पवार शामिल है।समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव को अभी न्योता नहीं मिला है, हालांकि उसके सांसद डिंपल यादव ने बयान दिया कि वह राम मंदिर में दर्शन जरूर करेगी।अखिलेश यादव भी वहां में जाने के संकेत दे रहे हैं।इस बीच सीपीएम नेता सीताराम येचुरी ने बताया कि वह किसी भी धार्मिक कार्यक्रम में शामिल नहीं होंगे ,जबकि ममता बनर्जी ने इसे राजनीतिक कार्यक्रम बताते हुए,अयोध्या आने से इनकार कर दिया।एनसीपी नेता शरद पवार ने भी अयोध्या के रामलीला प्राण प्रतिष्ठा समारोह में नहीं जाने का मन बना लिया है।वहीं कुछ मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक नीतीश कुमार और लालू यादव के भी इस समारोह में शामिल नहीं होने की संभावना है।
समझ से पहले राहुल ने क्या नया यात्रा का प्लान
रामलाल के प्राण प्रतिष्ठा समारोह में कांग्रेस की ओर से कौन शामिल होगा,अभी तक पार्टी की ओर से इस पर कोई जवाब नहीं आया। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह अपनी उम्र और सेहत की वजह से इस कार्यक्रम में शामिल नहीं होंगे।ऐसे में सबकी निगाहें सोनिया गांधी, मल्लिकार्जुन खड़गे और अधीर रंजन चौधरी पर टिकी हुई है।सांसद शशि थरूर और गांधी परिवार के करीबी माने जाने वाले सैम पित्रोदा ने ऐसे बयान दिए जिससे यह संकेत मिलता है कि कांग्रेस इस आयोजन से दूरी बना सकती है।शशि थरूर ने कहा कि वे धर्म को व्यक्तिगत विशेषता के रूप में देखते हैं न कि राजनीतिक दुरुपयोग के लिए। उन्होंने आरोप लगाया कि बीजेपी मंदिर निर्माण का राजनीतिक लाभ लेना चाहती है। कुछ ऐसे ही विचार सैम पित्रोदा ने भी व्यक्त किये। उन्होंने कहा कि कभी कभार मंदिर जाना तो ठीक है,लेकिन उसे में स्टेज नहीं बना सकते हैं।उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यक्रम में शामिल होने पर भी आपत्ति जताई है। उन्होंने कहा कि पीएम मंदिरों में समय बिता रहे हैं।यह बात मुझे परेशान करती है कि वह भारत के प्रधानमंत्री हैं ना कि किसी पार्टी के। इस बीच कांग्रेस ने राम मंदिर की प्राणप्रतिष्ठा से एक सप्ताह पहले ही राहुल गांधी ने न्याय यात्रा घोषणा कर दी। जब 17 दिसंबर से राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा महोत्सव शुरू होगा, तब राहुल गांधी नॉर्थ ईस्ट में पदयात्रा कर रहे होंगे। बहुत संभव है कि सोनिया गांधी, मल्लिकार्जुन खड़गे और अधीर रंजन चौधरी जैसे बड़े नेता भी इस यात्रा में शामिल होकर अयोध्या के राम मंदिर में आयोजित होने वाले प्राण प्रतिष्ठा समारोह में शामिल होने से बचने का बहाना ढूंढ ले।
मुस्लिम वोटरों के छिटकने का डर
जब से राम मंदिर का मुद्दा राजनीति में आया है,कांग्रेस इससे बचकर ही रहती रही है। राहुल गांधी और प्रियंका गांधी सॉफ्ट हिंदुत्व की नीति पर चलते हुए कई मंदिरों में नजर आए, लेकिन वह राम मंदिर पर खामोशी रहे।सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद जब राम मंदिर का श्रेय बीजेपी और हिंदू संगठनों ने खुलकर लेना शुरू किया, तब कांग्रेस के नेता ताला खुलवाने का श्रेय राजीव गांधी को देते नजर आए। हालांकि कांग्रेस के केंद्रीय नेताओं ने हमेशा राम मंदिर पर संभल कर ही बयान दिया।दरअसल कांग्रेस पिछले एक दशक से मुस्लिम वोटरों को अपने पक्ष में लाने के लिए मशक्कत कर रही है। यूपी बिहार समेत पूरे देश में 1989 तक मुस्लिम वोटर कांग्रेस के पक्ष में रहे। तब कांग्रेस लंबे समय तक केंद्र और राज्यों की सत्ता में बनी रही। बाद में उसका यह वोट बैंक आरजेडी, समाजवादी पार्टी, डीएमके जैसी क्षेत्रीय दलों की ओर खींचा गय। दक्षिण के राज्यों कर्नाटक और तेलंगाना की पिछले विधानसभा चुनाव में एक बार फिर मुसलमान ने कांग्रेस को वोट किया और वह सत्ता में वापस लौटने में सफल रही।अभी तक के चुनावी सर्वे में कांग्रेस को दक्षिणी भारत के राज्यों में बढ़त मिलती नजर आ रही है,जिसमें अल्पसंख्यकों की भूमिका प्रमुख है।यही बात कांग्रेस पार्टी के लिए धर्म संकट है कि अगर वह राम मंदिर के प्राणप्रतिष्ठा समारोह में जाती है तो, उसका मुस्लिम वोट बैंक खिसक सकता है।