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सुलभ इंटरनेशनल के संस्थापक और टॉयलेट मैन के रूप में दुनिय भर में चर्चित रहे बिहार के बिंदेश्वरी पाठक को भी आज पदविभूषण सम्मान से सम्मानित किया गया। पाठक आज हमारे बीच नहीं हैं लेकिन बेजोड़ कल्पना की सराहना आज पीरी दुनिया कर रही है।
भारत देश 26 जनवरी को अपना 75वां गणतंत्र दिवस मना रहा है। इस अवसर पर भारत सरकार ने 5 पद्म विभूषण, 17 पद्म भूषण और 110 पद्म श्री सम्मान की घोषणा की है। पद्म विभूषण पाने वाले लोगों में से एक नाम है बिहार के दिवंगत डॉ. बिंदेश्वर पाठक। यह जो मूलतः बिहार के वैशाली जिले के रहने वाले हैं। सुलभ शौचालय की शुरुआत करने के लिए बिंदेश्वर पाठक को जाना जाता है। इन्हें भारत का टॉयलेट मैन नाम दिया गया है। बिंदेश्वर पाठक ने सुलभ इंटरनेशनल नामक संस्था की स्थापना की। इनके प्रयासों के कारण सुलभ शौचालय की कल्पना को साकार किया गया।
बिंदेश्वर पाठक का जन्म 2 अप्रैल 1943 को बिहार के एक रूढ़िवादी ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके जन्म के समय समाज में छुआछूत की परंपरा थी। हाथों से मैला ढोने की परंपरा चल रही थी। एक खास समाज के लोग यह काम करते थे। लोग उस समाज को नीच दृष्टिकोण से देखते थे। समाज की ऐसी हालत देखकर बिदेश्वरी पाठक ने यह संकल्प लिया कि वो इस परंपरा को समाप्त करेंगे। इस काम को पूरा करने में उन्हें कई मुश्किलें आई, लेकिन इनके प्रयास ने इसे साकार कर दिखाया।
महज 6 वर्ष की उम्र में बिंदेश्वर पाठक को मेहतर समाज के लिए काम करने का विचार आया। उन्होंने अपने कई इंटरव्यू में बताया था कि जब वह मात्र छह साल के थे, तब उन्होंने एक महिला मेहतर को छू दिया था। उनके ऐसा करने पर उनकी दादी ने उन्हें दंडित किया था। साथ ही जिस घर में उनका जन्म हुआ था उस घर में उस दौरान शौचालय नहीं था। घर की महिलाओं को शौच के लिए बाहर जाना पड़ता था। बिंदेश्वर पाठक इन सब बातों से बड़े दुखी हुए और उन्होंने निश्चय किया कि वह स्वच्छता के क्षेत्र में कुछ अलग काम करेंगे।
बिंदेश्वर पाठक के जीवन की दो बड़ी घटनाओं ने उन पर काफी प्रभाव डाला था। एक बार एक मल साफ करने वाले लड़के पर सांड ने हमला कर दिया। लड़का इस हादसे में बुरी तरह घायल हो गया था, लेकिन छुआछूत के कारण कोई उसे बचाने नहीं गया। अंत में उस लड़के की मौत हो गई थी। दूसरी घटना में एक नई दुल्हन को जब उसकी सास ने मल साफ करने के लिए कहा तो वह रोने लगी। इन दोनों घटनाओं से उन्होंने इस समाज को बदलने के लिए काम करने का संकल्प लिया था। उन्होंने कड़ी मेहनत से ये कर दिखाया।