बीरेंद्र कुमार झा
अयोध्या से जुड़े सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले को आए 4 साल से ज्यादा समय व्यतीत हो चुके हैं और अब वहां रामलला का भव्य मंदिर बनकर तैयार है, जहां रामलला की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा 22 जनवरी 2024 को होना है । इसे लेकर एक तरफ सत्तापक्ष और विपक्ष अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकने में लगा हुआ है , तो वही दुसरी तरफ भारत के मुख्य न्यायाधीश धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ ने इस फैसले से जुड़ा एक किस्सा साझा किया है, जहां सभी जजों ने तय किया था कि फैसला लिखने वाले किसी भी जज के नाम का जिक्र अयोध्या से जुड़े ऐतिहासिक फैसले में नहीं किया जाएगा। उन्होंने बताया कि तभी यह तय कर लिया गया था कि यह फैसला किसी जज का फैसला नहीं,बल्कि यह फैसला कोर्ट का फैसला होगा।
जजों ने सर्वसम्मति से तय किया था कि यह फैसला न्यायालय का फैसला होगा
इस संबंध में फैसला सुनाने वाले पीठ का हिस्सा रहे न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ ने एक एजेंसी के साथ दिए साक्षात्कार में अयोध्या से जुड़े फैसले में किसी न्यायाधीश का नाम का उल्लेख न करने के बारे में खुलकर बताया। उन्होंने बताया कि जब न्यायाधीश एक साथ बैठे, जैसा कि वह किसी घोषणा से पहले करते हैं, तो सर्वसम्मति से यह निर्णय लिया गया कि अयोध्या मसले पर दिया जाने वाला यह फैसला अदालत का फैसला होगा।
दरअसल वे इस सवाल का जवाब दे रहे थे कि फैसला लिखने वाले न्यायाधीश का नाम सार्वजनिक नहीं क्यों किया गया? भारत के मुख्य न्यायाधीश ने डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि जब 5 न्यायाधीशों की पीठ फैसले पर विचार करने के लिए बैठी, जैसा कि हम सभी निर्णय सुनाए जाने से पहले करते हैं,तो हम सभी ने सर्वसम्मति से निर्णय लिया की यह फैसला अदालत का फैसला होगा,और इसलिए फैसला लिखने वाले किसी भी न्यायाधीश के नाम का इसमें उल्लेख नहीं किया गया।
जजों की सर्वसम्मति दिखाने के लिए किया ऐसा
भारत के मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि इस मामले में संघर्ष का एक लंबा इतिहास है देश के इतिहास के आधार पर विविध दृष्टिकोण है और जो लोग इस पीठ का हिस्सा थे,उन्होंने यह फैसला किया कि यह फैसला अदालत का फैसला होगा। अदालत एक स्वर से बोलेगी और ऐसा करने के पीछे का विचार यह स्पष्ट संदेश देना था कि हम सभी न केवल अंतिम परिणाम में,बल्कि फैसले के बताए गए कारणों में भी एक साथ हैं।उन्होंने कहा कि शीर्ष अदालत की पीठ ने 2019 में कहा था कि हिंदुओं की इस आस्था को लेकर कोई विवाद नहीं है कि भगवान राम का जन्म संबंधित स्थल पर हुआ था और प्रतीकात्मक रूप से वह संबंधित भूमि के स्वामी हैं।
फैसले का आधार आस्था और विश्वास नहीं,संदर्भित तथ्य था
भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने बताया कि तब अदालत ने कहा था कि उनका आस्था और विश्वास से कोई लेना-देना नहीं है तथा इसके बजाय मामले को तीन पक्षों सुन्नी मुस्लिम वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और एक हिंदू समूह और रामलाल विराजमान के बीच भूमि पर स्वामित्व विवाद के रूप में लिया गया है।उच्चतम न्यायालय की 1045 पन्नों की फैसले का हिंदू नेताओं और समूहों ने व्यापक स्वागत किया था, जबकि मुस्लिम पक्ष ने कहा था कि वह फैसले को स्वीकार करेगा भले ही यह त्रुटिपूर्ण है।