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मेघालय में हंग विधान सभा की सम्भावना बढ़ी ,13 दलों के जमघट से हलकान जनता

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अखिलेश अखिल
60 सदस्यीय मेघालय विधान सभा का चुनाव 27 फरवरी को होने जा रहे हैं। दर्जनभर से ज्यादा पार्टियां यहाँ खम ठोक रही है लेकिन आश्चर्य यही है कि जीत को लेकर सबके अपने दावे हैं और समीकरण भी। पहली बार मेघालय में कोई भी दल गठबंधन में नहीं है। सब अकेले चुनाव लड़ रहे हैं और सभी दल जीत के प्रति आशान्वित भी हैं। देश का यह पहला ऐसा चुनाव है जो बहुत सिखाती भी है और पार्टियों को चिढ़ाती भी हैं। जो हालत है उसे देखकर यही कहा जा सकता है कि कोई भी दल अकेले सरकार बनाने की स्थिति में नहीं नहीं है। परिणाम हंग विधान सभा की दिख रही है। बाद में लाभ हानि के मुताबिक़ मिलन होगा और सरकार बनेगी।

एक-दूसरे के खिलाफ ही चुनाव लड़ रहे सहयोगी दल

मेघालय के इस चुनाव में सभी दल बिना सहयोगी के लड़ रहे हैं। पिछले चुनाव में छह पार्टियों के गठबंधन को जनादेश मिला था। हालांकि कहने के लिए इस गठबंधन में सभी नामी पार्टियां शामिल थी लेकिन किसी ने भी मेघालय का दिल जीत नहीं सका। सबने मिलकर सरकार बनायी लेकिन आपस में लड़ते भी रहे। जिन 6 पार्टियों का गठबंधन था उनमे बीजेपी थी और एनपीपी के साथ ही यूडीपी ,मेघालय डेमोक्रेटिक अलायंस ,पीपुल्स डेमोक्रेटिक अलायंस के साथ ही हिल स्टेट पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी के साथ ही एक निर्दलीय का भी सहयोग था। लेकिन इस बार सब अलग हैं। सब अपने तरीके से मैदान में हैं और सबके अपने दावे भी।

दर्जन भर पार्टियां मैदान में

इस बार 13 पार्टियां चुनावी मैदान में है। कुल 375 उम्मीदवारों की गूंज से मेघालय जैसा छोटा राज्य दहल रहा है। स्थानीय जनता मौन है लेकिन पार्टियां अपने तेवर में है। मैदान में बीजेपी सभी सीटों पर चुनाव लड़ रही है तो कांग्रेस भी सभी सीटों पर उम्मीदवार खड़ा कर रखी है। उधर मैदान में टीएमसी भी 56 सीटों पर लड़ रही है तो संगमा परिवार की एनपीपी भी 57 सीटों से लड़ रही है। यूडीपी 46 सीटों पर लड़ रही है। बाकी दल भी अपने हिसाब से मैदान में है। मेघालय में जदयू भी तीन सीटों पर मैदान में है।

संगमा और बीजेपी एक दूसरे पर हमलावर

बता दें कि पिछले चुनाव में एनपीपी के साथ बीजेपी का मजबूत गठबंधन था लेकिन इस बार यह गठबंधन टूट गया है। दोनों दल अलग है और दोनों एक दूसरे पर हमलावर है। पिछले दिनों बीजेपी नेता अमित शाह ने एनपीपी नेता कोनार्ड संगमा पर जमकर हमला किया और यहां तक भी कह दिया कि वे भ्रष्टाचार में लिप्त हैं और इसी वजह से उन्हें अलग कर दिया गया। उधर संगमा भी बीजेपी पर हमलावर हैं। लड़ाई मजेदार हो गई है। सरकार चला चुकी दोनों पार्टियां आज एक दूसरे की दुश्मन है। स्थानीय जनता इस लड़ाई का मजा ले रही है।

दरअसल मेघालय की असली लड़ाई दो हिलो की लड़ाई है। मेघालय गारो और खासी हिल्स में बंटा हुआ है। इन्ही दोनों हिल्स पर दो प्रमुख जनजातियां रहती है। गारो और खासी मेघालय की प्रमुख जनजातियां हैं और इन्ही जनजातियों को अपने पाले में करने की राजनीतिक लड़ाई जारी है।

सत्ता समीकरण

यह भी बता दें कि मेघालय में लम्बे समय तक यूनाइटेड डेमोक्रेटिक पार्टी यानी यूडीपी का दखल रहा है और अक्सर उसकी पार्टी की स्थिति किंग मेकर की रही है। इसके साथ ही इस राज्य में कुछ ऐसे परिवार या राजवंश है जिनकी पहुँच जनजातियों में ज्यादा रही है। इन राजवंशो में संगमा ,लिंगदोह ,और दखार परिवार हैं जिनकी पहुँच गारो और खासी में भी। चुनावी समीकरण में ये परिवार अहम् भूमिका निभाते हैं और इनके बिना किसी की जीत संभव नहीं। कांग्रेस चुकी लम्बे समय तक सत्ता में रही है इसलिए उसकी पहुँच भी इन जनजातियों में कम नहीं है। कई राजवंशी भी कांग्रेस के समर्थक रहे हैं। लेकिन बीजेपी की इंट्री के बाद सत्ता समीकरण भी बदल गए। याद रहे गारो हिल्स में संगमा परिवार का बर्चस्व ज्यादा ही रहा है और आज भी गारो हिल्स संगमा परिवार के प्रति समर्पित है।

इस चुनाव में सबके अपने दावे हैं लेकिन किसी एक पार्टी को जीत पाना असंभव सा है। एनपीपी के प्रति लोगो का रुझान आज भी जारी है और कांग्रेस भी नए तरीके से नयी ऊर्जा के साथ मैदान में है। पिछले पांच साल में बीजेपी ने भी अपना कैडर खड़ा किया है लेकिन एनपीपी के सामने यह कैडर आज भी कमजोर है। उधर एनसीपी का भी कुछ इलाको में दखल बढ़ा है। ऐसे में इस राज्य को लेकर कोई भविष्यवाणी नहीं की जा सकती। इतना तो तय है कि विधान सभा हंग होगा और बाद में कई दल मिलकर सरकार बनाएंगे।

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