बीरेंद्र कुमार झा
केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने सिंधु जल संधि को दुनिया की सबसे पवित्र समझौता करार दिया। साथ ही उन्होंने संधि के नियमों का उल्लंघन करने के लिए पाकिस्तान की आलोचना की।
सिंधु जल संधि को लेकर पाकिस्तान का अंतर्राष्ट्रीय अदालत का दरवाजा खटखटाना दोहरा चरित्र
केंद्रीया मंत्री गजेंद्र शेखावत ने कहा कि देश बंटवारे के बाद पानी के बंटवारे को लेकर भारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु जल संधि पर हस्ताक्षर किए गए थे। तीन जंग के बाद भी भारत ने इस संधि की पवित्रता को बरकरार रखा है, जो भारत के चरित्र को दिखाता है। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान ने हाल ही में भारत के अधिकारों को चुनौती दी और मामले में तीसरे पक्ष के दखल की मांग की। विश्व बैंक ने भी इस संधि को स्वीकृति दी है लेकिन पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय अदालत का दरवाजा खटखटाया है। उसका यह दोहरा रवैया संधि के विरुद्ध है।
सिंधु जल संधि क्या है?
सिंधु जल संधि दो देशों के बीच पानी के बंटवारे की वह व्यवस्था है जिस पर 19 सितम्बर, 1960 को तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान ने कराची में हस्ताक्षर किए थे।इसमें छह नदियों ब्यास, रावी, सतलुज, सिंधु, चिनाब और झेलम के पानी के वितरण और इस्तेमाल करने के अधिकार शामिल हैं। इस समझौते के लिए विश्व बैंक ने मध्यस्थता की थी।
सिंधु बेसिन की सभी नदियों का स्रोत भारत में है
भारत द्वारा इस समझौते पर इसलिए हस्ताक्षर किया गया क्योंकि सिंधु बेसिन की सभी नदियों के स्रोत भारत में हैं (सिंधु और सतलुज हालांकि चीन से निकलती हैं)। समझौते के तहत भारत को सिंचाई, परिवहन और बिजली उत्पादन के लिए इन नदियों का उपयोग करने की अनुमति दी गई है, जबकि भारत को इन नदियों पर परियोजनाओं का निर्माण करने के लिए काफी बारीकी से शर्तें तय की गईं कि भारत क्या कर सकता है और क्या नहीं कर सकता है।