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रेलवे की भूमि अधिग्रहण प्रक्रिया पर कैग ने उठाए सवाल ,कहा 1140 करोड़ रुपये की लगी चपत 

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न्यूज़ डेस्क 

रेलवे द्वारा की गई भूमि अधिग्रहण प्रक्रिया पर नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक ने गंभीर सवाल उठाये हैं। कैग ने कहा है कि जिस तरह की प्रक्रिया अपनाई गई है उससे रेलवे को 1140 करोड़ की देनदारियों से बचा जा सकता था लेकिन ऐसा नहीं किया गया। 
    कैग द्वारा 27 मार्च को संसद में जारी की रिपोर्ट के अनुसार साल 2015 से 2021 के बीच रेलवे द्वारा की गई भूमि अधिग्रहण प्रक्रिया को बड़ी अनियमितताओं से भरा पाया है। कैग के अनुसार इससे रेलवे ने 141.7 करोड़ रुपए की बर्बादी की है। इसके साथ ही कई अन्य अनियमिता पर लगाम लगा कर रेलवे 1,140 करोड़ रुपये की देनदारियों से बच सकता था। कैग की रिपोर्ट में कहा गया कि नागालैंड में दीमापुर-कोहिमा नई लाइन परियोजना बजट में वृद्धि से प्रभावित हुई है और देरी से भरी हुई है। समय पर इसके निर्माण से रेलवे 1,140 करोड़ रुपये तक के खर्च से बच सकता था। इस परियोजना से रेलवे बजट भी प्रभावित हुआ। 850 करोड़ रुपए की प्रारंभिक अनुमानित लागत साल 2022 में सात गुना बढ़कर 6,663.20 करोड़ रुपए हो गई है। जबकि मार्च 2020 तक पहले इस रेलवे लाइन को पूरा करने का लक्ष्य रखा गया था जिसे अब मार्च 2026 तक बढ़ा दिया गया है। रिपोर्ट के अनुसार मार्च 2022 तक, केवल 25 फीसदी काम ही पूरा हो सका।
               रिपोर्ट के अनुसार मार्च साइट का सर्वेक्षण और पुनर्सर्वेक्षण, भूमि अधिग्रहण में अनुचित जल्दबाजी, मुआवजे के भुगतान में अनियमितताएं, सुरंग निर्माण में परिहार्य देनदारियां, सिग्नलिंग सामग्री की जल्दबाजी में खरीद, महंगी निर्माण सामग्री की खरीद जैसी कई कारण थे जिनकी वजह से कैग ने रेलवे पर सवाल उठाया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि रेलवे 14 सुरंगों के प्रस्तावित निर्माण पर 879.05 करोड़ रुपये की देनदारी से बच सकता था, अगर उसने लचीले ओएचई के बजाय फिक्स्ड ओवरहेड इक्विपमेंट या रिजिड ओवरहेड कंडक्टर रेल सिस्टम का इस्तेमाल किया होता।
                 वहीं गुरुग्राम स्थित पीएसयू राइट्स द्वारा परियोजना के लिए किए गए स्थान सर्वेक्षण को संरेखण के निर्माण में कठिनाई के आधार पर छोड़ दिया गया था। रेलवे ने स्वीकार किया कि राइट्स द्वारा जमा की गई प्री-कंस्ट्रक्शन रिपोर्ट की ठीक से समीक्षा नहीं की गई और बाद में काम दूसरी कंपनी मेसर्स आयसा को दे दिया गया। कैग ने रेलवे को उसके आकस्मिक ²ष्टिकोण के कारण 5.44 करोड़ रुपए के निष्फल व्यय करार दिया।
              एक अन्य उदाहरण में कैग ने 11.44 करोड़ रुपए की बर्बादी का खुलासा किया। रिपोर्ट के अनुसार सिविल इंजीनियरिंग कार्यों की प्रगति 25 फीसदी भी नहीं थी, पूरे प्रोजेक्ट के लिए 11.44 करोड़ मूल्य की सिग्नलिंग सामग्री का अधिग्रहण किया गया था। इस मामले में ऑडिटर ने कहा, अनुचित और जल्दबाजी में की गई खरीद के कारण 11.44 करोड़ रुपए की रुकावट हुई और सामग्री बेकार पड़ी रही।
          रिपोर्ट के अनुसार एक अन्य उदाहरण में, 11 मामलों में ठेकेदारों को 3 से 58 महीने तक के कई एक्सटेंशन दिए गए थे, मुख्य रूप से साइट यानी जमीन की मंजूरी नहीं मिली थी इस कारण, सात अनुबंध समझौतों में, जिनमें मूल्य भिन्नता का भुगतान शामिल था, मुख्य कारण ड्राइंग के अनुमोदन और साइटों की निकासी में देरी थी।

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