आरक्षण मामले पर पटना हाईकोर्ट ने बिहार सरकार को बड़ा झटका दिया है। जातीय गणना के बाद बिहार सरकार ने आरक्षण की सीमा बढ़ाए जाने का प्रावधान किया था, जिसे पटना हाईकोर्ट ने रद्द कर दिया है।हाई कोर्ट के फैसले से अब पूर्व-निर्धारित आरक्षण की सीमा ही बिहार में लागू रहेगी।
क्या था बिहार सरकार का फैसला?
बिहार सरकार के फैसले के मुताबिक, राज्य सरकार की सीधी भर्तियों (नौकरियों) में 65% सीटें आरक्षित कोटे की कर दी गई थीं, जबकि ओपन मेरिट कैटगरी में महज 35% सीटें बची थीं। आरक्षित 65% में से अति पिछड़ा वर्ग (EBC) के लिए 25%, पिछड़ा वर्ग (BC) के लिए 18%, अनुसूचित जाति (SC) के लिए 20% और अनुसूचित जनजाति (ST) के लिए 2% सीटें आरक्षित रखने का प्रावधान था।
पटना हाई कोर्ट ने क्या कहा?
पटना हाई कोर्ट का मानना है कि आरक्षण की जो सीमा (50%) पहले से ही निर्धारित है, उसे बढ़ाया नहीं जा सकता है। यह मामला संवैधानिक है, इसलिए इस मामले पर आगे सुनवाई होगी।सुनवाई के बाद ही इस मामले पर कोई अंतिम फैसला लिया जाएगा। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार पटना हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस ने माना कि बिहार सरकार का फैसला, नियमावली के खिलाफ है।हालांकि बिहार सरकार इस मामले को सुप्रीम कोर्ट लेकर जा सकती है, जहां इस मामले में सुनवाई होगी।
संवैधानिक बेंच करेगी फैसला!
बिहार में जो गणना हुई, उसे जातिगत जनगणना की बजाय, जातिगत सर्वे कहा गया था. इस मामले को राजनीतिक रंग दिया गया. इस पर कोर्ट ने कहा कि ये ‘राइट टू इक्विलिटी’ यानी बराबरी के अधिकार का उल्लंघन है।हाई कोर्ट ने कहा कि अगर आरक्षण की सीमा बढ़ाने की जरूरत पड़ेगी तो ये संवैधानिक बेंच ही तय करेंगी।इससे यह साफ हो गया है कि ये मामला सुप्रीम कोर्ट की बेंच के पास जाएगा,जहां संवैधानिक बेंच इस मामले में फैसला करेगी कि बिहार सरकार द्वारा आरक्षण की सीमा बढ़ाई जा सकती है या नहीं।
कहां है पेच, क्या करेगी सरकार?
सुप्रीम कोर्ट के वकील अश्विनी दुबे ने कहा कि अब इस मामले में बिहार सरकार ऊपरी अदालत जा सकती है, जो कि उनका अधिकार है।लेकिन बेसिक सवाल यह है कि जो आरक्षण बढ़ाया गया था, वो संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 16 से विपरीत था।इंदिरा साहनी केस में यह तय कर दिया गया है कि किसी भी परिस्थिति में तीन कैटेगरी SC, ST और OBC के लिए इसे 50% से ज्यादा नहीं किया जा सकता।