बीरेंद्र कुमार झा
भारत की आजादी के बाद भी कई रियासतें ऐसी थी जो कि खुद को स्वतंत्र राज्य मानती थी।इस मामले में सबसे अड़ियल हैदराबाद का निजाम था।हैदराबाद को भारत में शामिल करने के लिए सेना का सहारा लेना पड़ा था। अंत में 17 सितंबर 1948 को हैदराबाद भारत का अभिन्न अंग बन गया।सेना के इस अभियान को ऑपरेशन पोलो नाम दिया गया था।
हैदराबाद विलय पर राजनीति
हैदराबाद के विलय को लेकर अब बीजेपी और बीआरएस में एक विवाद छिड़ा हुआ है।बीजेपी इस दिन को राष्ट्रीय मुक्ति दिवस के रूप में मनाना चाहती है ,जबकि बीआरएस और एआईएमआईएम का कहना है की इस दिन को राष्ट्रीय एकीकरण दिवस के रूप में मनाया जाना चाहिए।दरअसल उस वक्त की हैदराबाद रियासत आज के तेलंगाना,कर्नाटक और महाराष्ट्र के कुछ हिस्सों में फैली हुई थी। 7 वें निजाम अमीर उस्मान अली खान ने भारत में रियासत का विलय करने से इनकार कर दिया था।हिंदूवादी संगठनों का कहना है कि निजाम पाकिस्तान की मदद से एक हैदराबाद को एक मुस्लिम राज्य बनाना चाहता था,जबकि इसकी अधिकांश प्रजा हिंदू थी।भारतीय सेना ने उसपर आक्रमण कर उसे भारत में मिला लिया। इस प्रकार इस दिन लोगों को मुस्लिम शासक से मुक्ति मिली।इसलिए इसे मुक्ति दिवस के रूप में मनाना चाहिए।वर्ष 2022 में पहली बार केंद्र सरकार ने इसे मुक्ति दिवस के रूप में मनाने का ऐलान किया और गृह मंत्री ने सिकंदराबाद में एक कार्यक्रम किया।इस वर्ष भी सिकंदराबाद परेड ग्राउंड में गृह मंत्री अमित शाह की उपस्थिति में यहां एक रैली का अयोजन कर मुक्ति दिवस को मनाने का कार्यक्रम है। तेलंगाना के मुख्यमंत्री चंद्रशेखर राव इस दिवस पर कोई कार्यक्रम नहीं करते थे,लेकिन चुनाव को देखते हुए इस बार वे भी एनटीआर स्टेडियम में एकीकरण दिवस मनाने जा रहे हैं।
क्या था ऑपरेशन पोलो
इतिहासकार डॉक्टर एसएन प्रसाद ने अपनी किताब ‘ ऑपरेशन पोलो – पुलिस एक्शन अगेंस्ट हैदराबाद 1948’ में लिखा है कि निजाम ने 26 जून 1947 को एक शाही पत्र जारी किया था ,जिसमें लिखा था कि वह ना तो भारत के साथ जाना चाहते हैं और ना ही पाकिस्तान के साथ।वह अपना स्वतंत्र राज्य चाहते हैं गौरतलब है की अंग्रेजों के शासन के समय से ही हैदराबाद का अपना अलग सिक्का, नोट, स्टांप और सेना हुआ करता था। हैदराबाद का निजाम चाहते थे कि हैदराबाद को डोमिनियन स्टेट का दर्जा मिले और हैदराबाद ब्रिटिश कामनवेल्थ का सदस्य बने रहे ।हालांकि ब्रिटिश सरकार भारत की नई सरकार को नाखुश नहीं करना चाहती थी और ना ही भारत की राजनीति में ज्यादा दखल देना चाहती थी, ऐसे में उसने निजाम की अर्जी को अस्वीकार कर दिया।
पाकिस्तान से संपर्क साधने लगा निजाम
भारत की तरफ से केएम मुंशी हैदराबाद के निजाम के साथ भारत में विलय का समझौता करने आए थे, लेकिन इसके कुछ महीने के बाद ही हैदराबाद में खूब मार – काट मच गई।वामपंथियों ने निजाम के खिलाफ संघर्ष छेड़ दिया। वे जमींदारों और महाजनों से देश की मुक्ति चाहते थे। इस दौरान निजाम सरकार बौखला गई और उसने भारत के साथ अबतक हुए समझौते का उल्लंघन करना शुरू कर दिया।हैदराबाद में 2 लाख रजाकरो कि सेना थी जिसने गैर मुस्लिम इलाकों में अत्याचार करना शुरू कर दिया,लेकिन निजाम उस्मान अली इस पर कोई करवाई करने की जगह आंखें मूंदे बैठा रहा।इसके बाद निजाम ने पाकिस्तान से संपर्क साधा।निजाम के इस हरकत से सरदार पटेल को बहुत दुख हुआ और उन्होंने शक्ति से निजाम से निपटने का फैसला कर लिया।
कहा जाता है कि पंडित नेहरू नहीं चाहते थे कि हैदराबाद विलय मामले में किसी प्रकार का बल प्रयोग हो।लेकिन हैदराबाद रियासत का रुख उग्र था।कासिम रिजवी हिंसा का रास्ता चुन रहा था।इसके बाद सरदार पटेल को लगा कि बिना सैनिक कार्रवाई के हैदराबाद हाथ में नहीं आएगा ।उधर हैदराबाद ने इस मामले में दखल देने के लिए अमेरिका और संयुक्त राष्ट्र संघ को भी चिट्ठी लिखी थी। अमेरिकी राष्ट्रपति ने इस मामले में किसी भी प्रकार से दखल से इनकार कर दिया।
क्यों कहा गया इसे ऑपरेशन पोलो
13 सितंबर 1948 को भारतीय सेना ने हैदराबाद के निजाम के विरुद्ध सैन्य अभियान शुरू कर दिया। हैदराबाद में सबसे अधिक पोलो ग्राउंड होने के कारण सेना के इस अभियान का नाम ऑपरेशन पोलो दिया गया। मेजर जनरल जे एन चौधरी के नेतृत्व में 36 हजार जवान हैदराबाद में प्रवेश कर गए।एयरफोर्स ने बीदर और गुलबर्गा में हवाई बमबाजी की।सेना का यह ऑपरेशन चार दिनों तक चला। इसके बाद निजाम और रजाकर सेना भाग खड़ी हुई। 108 घंटे का ऑपरेशन के बाद आज ही के दिन निजाम ने अपनी हार स्वीकार कर ली और हैदराबाद भारत का अभिन्न अंग बन गया। बताया जाता है कि इस संघर्ष में भारत के 32 लोग मारे गए थे वहीं हैदराबाद के निजाम और रजाकर सेना के के कम से कम 490 लोग मारे गए थे।