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बद्रीनाथ धाम उत्तराखंड के चार प्रसिद्ध धामों में से एक है। बद्रीनाथ का मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है। बद्रीनाथ धाम भगवान विष्णु के 24 अवतारों में से एक नर और नारायण ऋषि की तपोभूमि मानी जाती है। आदि गुरु शंकराचार्य ने इस धाम की स्थापना की थी। पौराणिक कथाओं के अनुसार, इस स्थान पर भगवान विष्णु ने कठोर तप किया था। तप के दौरान देवी लक्ष्मी ने बद्री यानी बेर का पेड़ बनकर विष्णु जी को छाया दी थी। देवी लक्ष्मी पर प्रसन्न होकर ही भगवान विष्णु ने इस स्थान को बद्रीनाथ के नाम से प्रसिद्ध का वर दिया था।
कपाट खोलने की व्यवस्था किसने बनायी?
आदिगुरु शंकराचार्य ने बद्रीनाथ की प्राण प्रतिष्ठा के बाद कपाट खोलने से लेकर पूजन की जो व्यवस्था बनाई थी, उसका आज तक अक्षरश: पालन होता है। मंदिर की 3 चाबियां अलग-अलग लोगों के पास होती है। इन तीनों चाबी को लगाने पर ही पट खुलते हैं। एक चाबी उत्तराखंड के टिहरी राज परिवार के राज पुरोहित के पास होती है, जो नौटियाल परिवार से संबंध रखते हैं। दूसरी बद्रीनाथ धाम के हक हकूकधारी मेहता लोगों के पास होती है और तीसरी हक हकूकधारी भंडारी लोगों के पास। मंदिर के दरवाजे खुलते ही सबसे पहले रावल (पुजारी) प्रवेश करते हैं।

घी में लिपटी होती है भगवान की प्रतिमा
कपाट खुलने पर सबसे पहले रावल प्रवेश करते हैं। वे गर्भगृह में जाते हैं। सबसे पहले भगवान की मूर्ति से घृत कंबल को हटाया जाता है। यह वस्त्र माणा गांव की कुंवारी लड़कियों द्वारा कपाट बंद होते वक्त तैयार किया जाता है। कपाट बंद होते समय ही भगवान की मूर्ति में घी का लेप लगाया जाता है। इसलिए कपाट खोलने के बाद सबसे पहले इसे हटाया जाता है। मान्यता है कि अगर मूर्ति घी में पूरी तरह लिपटी है, तो उस साल देश में खुशहाली रहेगी। घी कम है तो सूखा या अत्यधिक बारिश के हालात रह सकते हैं।
ध्यान मुद्रा में स्थापित है भगवान की प्रतिमा
धर्म ग्रंथों के अनुसार, भगवान नर-नारायण ने बद्री वन में ही तपस्या की थी। मंदिर में भगवान विष्णु की एक मीटर ऊंची प्रतिमा है। ये ध्यान मुद्रा में है। यहां कुबेर देव, लक्ष्मी-नारायण की प्रतिमाएं भी स्थापित हैं। मंदिर में विष्णु जी के पांच स्वरूपों की पूजा की जाती है, इन्हें पंचबद्री कहते हैं। बद्रीनाथ के मुख्य मंदिर के अलावा अन्य चार स्वरूप भी मंदिर में ही हैं- श्री योगध्यान बद्री, श्री भविष्य बद्री, श्री वृद्घ बद्री, श्री आदि बद्री।