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‘मोदी की गारंटी’ : 2047 के झूठे लॉलीपॉप

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प्रकाश पोहरे (प्रधान संपादक- मराठी दैनिक देशोन्नति, हिंदी दैनिक राष्ट्रप्रकाश, साप्ताहिक कृषकोन्नति)

पिछले दस सालों में देश ने यही समीकरण देखा है कि बीजेपी का मतलब ‘सिर्फ और सिर्फ नरेंद्र मोदी’ ही है। लोकसभा चुनाव 2024 के लिए बीजेपी का ‘घोषणा पत्र’ 17 अप्रैल 2024 को प्रकाशित हुआ। 76 पन्नों के इस घोषणापत्र में चूंकि मोदी की 53 तस्वीरें हैं, इसलिए यह कहना गलत नहीं होगा कि यह मोदी का ही ‘फोटो एलबम’ प्रकाशित हुआ है। और इसका शीर्षक भी ‘मोदी की गारंटी’ ही है। पिछले दस वर्षों में मोदी की लगभग सभी घोषणाएँ निरर्थक रही हैं। हालाँकि, उन्होंने इस घोषणापत्र में नई 24 ‘गारंटियाँ’ देकर समग्र विकास का एक अलग मॉडल स्थापित करने का दावा किया है।

इसमें कहा गया है कि भारत को दालों, खाद्य तेल और सब्जियों के उत्पादन में ‘आत्मनिर्भर’ और ‘गरीब की थाली को सुरक्षित’ बनाने के प्रयास किए जाएंगे। दालें और सब्जियाँ, ये पदार्थ क्या पृथ्वी या समुद्र के पेट में खनिज तेल की तरह बनते हैं? अगर ये कृषि फसलें हैं, तो फिर पिछले दस सालों में महाराष्ट्र से लेकर गुजरात होते हुए पंजाब-हरियाणा तक के किसान एमएसपी की गारंटी, आरक्षण और अपनी मांगों को लेकर लगातार सड़कों पर क्यों उतर रहे हैं? क्या उनके खेतों में दालें और सब्जियां नहीं उगतीं?

पहले जीएसटी की गड़बड़ी, फिर नोटबंदी जैसे ‘तुगलकी’ फैसले और फिर कोरोना काल, इन संकटों ने इस देश में मध्यम वर्ग को बढ़ने की बजाय कम कर दिया है और वह गरीबी रेखा के नीचे चला गया है। कई लोगों की नौकरियाँ चली गईं। मोदी युग में यदि कोई ‘गिनीपिग’ रहा है, तो वह मध्यम वर्ग ही है। मोदी ने अपने प्रथम कार्यकाल से पहले हर साल दो करोड़ नौकरियां पैदा करने का दावा किया था, लेकिन असल में सत्ता में आने के बाद उन्होंने हर साल एक करोड़ नौकरियां भी पैदा नहीं की हैं। इसके अलावा नोटबंदी के बाद लागू की गई गलत जीएसटी और फिर कोरोना संकट ने बेरोजगारों की संख्या को और बढ़ा दिया। फिर भी तीसरी बार सत्ता मिलने पर मोदी मध्यम वर्ग को ‘उच्च मूल्य वाली नौकरियों’ की गारंटी दे रहे हैं। दरअसल, मोदी युग में ‘विश्वविद्यालय अनुदान आयोग’ (यूजीसी) बंदर बन गया है। ‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020’ (एनईपी) का बवाल अभी भी खत्म नहीं हुआ है। सरकार की अनावश्यक भूलों के कारण विश्वविद्यालय और महाविद्यालय संकट में हैं। परिणामस्वरूप विश्वविद्यालयों एवं महाविद्यालयों में उच्च शिक्षा का स्तर कायम रहने के बजाय उसमें गिरावट आयी है।

कोरोना काल के बाद सभी सेवाएं महंगी हो गई हैं। महंगाई कई गुना बढ़ गई है, लेकिन मोदी सरकार ने इस पर कोई ठोस कदम नहीं उठाया है। पिछले दस वर्षों में इतना सब कुछ होने के बाद हम इस ‘गारंटी’ पर कैसे भरोसा कर सकते हैं? पिछले दस सालों में बेरोजगारी 80 फीसदी तक पहुंच गई है। इस देश के गृह मंत्री सार्वजनिक रूप से कहते हैं कि अगर युवाओं को नौकरी नहीं मिलती है, तो उन्हें ‘पकौड़े तलने’ चाहिए, फिर भी युवाओं को ‘गारंटी’ दी जा रही है।

मोदी सरकार ने अब तक एक करोड़ ग्रामीण महिलाओं को ‘लखपति दीदी’ बनाने का दावा किया है। खुद को ‘मोदी का परिवार’ मानने वाले मोदी और बीजेपी नेताओं ने ‘नारी शक्ति का सशक्तिकरण’ के बजाय सिर्फ ‘डेलीगेट’ करने का काम किया है। कठुआ, उन्नाव, हाथरस में बच्चियों के साथ भाजपा नेताओं द्वारा ही किये गये क्रूर बलात्कार के मामलों पर मोदी ने क्या कदम उठाये? क्या आपने इसकी निंदा की? इन मामलों में अपराधियों को क्या सज़ा दी गई? महिलाओं के प्रति मोदी और ‘मोदी का परिवार’ की मानसिकता ‘मनुस्मृति’ अंकित विचारों से दूषित है, ऐसा पिछले दस वर्षों में कई बार देखा जा चुका है। तो इस देश की महिलाएं ‘नारी शक्ति का सशक्तिकरण’ की ‘मोदी की गारंटी’ पर कैसे विश्वास करेंगी?

‘किसानों का सम्मान’ ‘मोदी की गारंटी’ किसानों के घावों पर नमक छिड़कने का एक रूप ही है। 2020 में मोदी सरकार ने ‘कृषि सुधार विधेयक’ पारित किया। भारत में किसानों द्वारा इसका व्यापक विरोध किया गया। इस बिल के खिलाफ पंजाब-हरियाणा के किसानों ने दिल्ली बॉर्डर पर तेरह महीने तक आंदोलन किया। चारों तरफ नाकेबंदी होने के बाद भी किसान पीछे नहीं हटे। उनको बदनाम करके भी कुछ खास हासिल नहीं हुआ। इस आंदोलन में 700 किसानों की मौत हो गई। किसान नेताओं को ‘आंदोलनजीवी’ करार दिया गया। आख़िरकार मोदी सरकार को वो क़ानून वापस लेने पड़े।

हाल ही में इन किसानों ने सरकार द्वारा मानी गई मांगों को पूरा करने के लिए फिर से विरोध प्रदर्शन किया। लेकिन मोदी सरकार ने सड़कें खोदकर, आंसू गैस और बंदूकें चलाकर उन्हें दिल्ली तक नहीं पहुंचने दिया। इस आंदोलन के दौरान भी कई किसानों की मौत हो गई और कई घायल हो गए। अगर मोदी सरकार की नीतियां किसानों के हित में हैं, तो आम चुनाव से पहले किसानों पर सरकार के खिलाफ प्रदर्शन करने की नौबत क्यों आ गयी?

पिछले दस वर्षों में मोदी सरकार किसानों के कल्याण की नीतियों की बात तो दूर, किसानों को थोड़ी-सी भी राहत देने वाली नीतियों के प्रति कभी भी गंभीर नहीं रही, तो उन्हें ‘मोदी की गारंटी’ पर विश्वास क्यों करना चाहिए?

‘श्रमिकों का सम्मान’ को वास्तव में ‘गाजर गारंटी’ कहा जाना चाहिए। कोरोना लॉकडाउन के दौरान सभी तरह के रोजगार ठप हो गए। फिर छोटे-बड़े शहरों के मजदूरों ने अपने घरों की राह पकड़ ली। जब हजारों-लाखों लोगों ने कई किलोमीटर की पैदल यात्रा की, तब मोदी सरकार ने उनके लिए क्या किया? फिर आप कार्यकर्ताओं का सम्मान क्यों नहीं करना चाहते थे? कुछ लोग सड़क पर मर गये, कुछ दुर्घटना के शिकार हो गये। जो लोग गांव पहुंचने में कामयाब रहे, उन्हें कोरोना वायरस के डर से उनके ही गांव के लोगों ने सीमा पर रोक दिया। मोदी सरकार को इन मजदूरों की याद क्यों नहीं आई? यह सच है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कैमरे के सामने कुछ चुनिंदा कार्यकर्ताओं के पैर धोए, लेकिन सरकार की नीतियों ने उनके पैरों को मजबूत करने के बजाय यह साबित कर दिया कि वे एक-दूसरे से कैसे जुड़ेंगे! इसलिए अंधभक्तों के अलावा किसी को कोई संदेह नहीं है कि ‘सबका साथ, सबका विकास’ मोदी सरकार का आंखों में धूल झोंकने वाला सिर्फ एक जुमला ही था, है और रहेगा।

‘सुरक्षित भारत’ की ‘मोदी की गारंटी’ में कितनी सच्चाई है, ये चीन की घुसपैठ से पता चला। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज तक कभी संसद के सामने चीन की घुसपैठ का सच नहीं बताया है। मोदी सरकार ने पुलवामा घटना में पाकिस्तान को सबक सिखाने की कोशिश की, लेकिन अंतरराष्ट्रीय मीडिया ने इसकी काफी आलोचना की। अगर मोदी सरकार वाकई मजबूत है, तो चीन लगातार खुराफातें क्यों रहा रहा है?

मोदी सरकार ने हिंदुत्व के अहंकार को बढ़ावा देने के अलावा कुछ नहीं किया है। यदि भारत सभी धर्मों का देश है, तो सरकारी स्तर पर केवल हिंदू धर्म को बढ़ावा देना संविधान के मूल्यों के विरुद्ध है। लेकिन राम मंदिर के भूमिपूजन और राम मंदिर के उद्घाटन समारोह… दोनों को मोदी ने ‘सरकारी कार्यक्रम’ के रूप में मनाया। इतना ही नहीं, हिंदू धार्मिक विद्वानों और पुजारियों को आमंत्रित करके नई संसद का उद्घाटन भी किया गया। भाजपा की नीति सांप्रदायिक माहौल पैदा कर उसका राजनीतिक लाभ लेने की है।

‘सुशासन की गारंटी’ स्पष्ट रूप से ‘फेक न्यूज’ है। क्योंकि पिछले दस वर्षों में दिल्ली से लेकर केरल या प. बंगाल तक जहां-जहां विपक्षी दल सत्ता में हैं, वहां-वहां मोदी ने अड़ंगे डाले हैं। इन राज्यों में अड़ंगे लगाना उनके ‘कुप्रबंधन’ की स्वीकारोक्ति है। ‘भ्रष्टाचार के खिलाफ ठोस कदम’ वाला वाक्य सबसे हास्यप्रद है। क्योंकि हाल ही में सामने आई ‘इलेक्टोरल बॉन्ड्स’ की जानकारी से पता चला है कि मोदी सरकार ने ‘चंदा दो, धन्दा लो’ नीति का इस्तेमाल करते हुए सबसे ज्यादा इलेक्टोरल बॉन्ड हासिल किए हैं। केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के पति और अर्थशास्त्री परकला प्रभाकर ने सार्वजनिक रूप से इसे ‘दुनिया का सबसे बड़ा घोटाला’ करार दिया है। इतना ही नहीं, उन्होंने एक इंटरव्यू में सार्वजनिक तौर पर कहा था कि मोदी भारत के ‘इतिहास के सबसे खराब और भ्रष्ट प्रधानमंत्री’ हैं। पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक और बीजेपी नेता सुब्रमण्यम स्वामी भी इसी तरह के बयान दे चुके हैं।

राफेल घोटाला, अडानी शेल कंपनियां, पीएम केयर फंड, स्किल इंडिया घोटाला, ललित मोदी घोटाला, विजय माल्या घोटाला, नीरव मोदी घोटाला, नोटबंदी, राम मंदिर भूमि घोटाला, चुनावी बांड, ये घोटाले इस बात के उदाहरण हैं कि बीजेपी ‘सुशासन की गारंटी’ किस तरह धोखाधड़ी की बुनियाद पर देती है! इसके अलावा एक ओर तो अन्य दलों के नेताओं को भ्रष्ट कहा जाता था और फिर उन्हें अपनी पार्टी में ले लिया जाता था, जैसे कि अजित पवार, छगन भुजबल, प्रफुल्ल पटेल, अशोक चव्हाण की लंबी सूची है। उन्हें अपनी पार्टी में लेना और उन्हें भ्रष्टाचार से मुक्त करना और जो नेता उनकी पार्टी में शामिल नहीं होते, उन पर ईडी, सीबीआई के छापे पड़वाना और उन्हें जेल में डालना…. अगर मोदी इसे ही ‘सुशासन की गारंटी’ कहते हैं, तो इससे हास्यास्पद और कुछ नहीं हो सकता।

‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ की ‘गारंटी’ भी विवादास्पद है। जिस तरह से मोदी सरकार इस मुद्दे का हौवा खड़ा कर रही है, उससे इस पर संदेह बढ़ता है। पिछले दस वर्षों से केंद्र में सत्ता का आनंद लेने के बाद भी मोदी कहते हैं कि मुझे तीसरी बार चुनिए, फिर मैं ‘मोदी की गारंटी’ में किए गए वादों को पूरा करूंगा। उनका दावा है कि उन्होंने पहले 100 दिनों का रोडमैप भी तैयार कर लिया है। लेकिन पिछले दस वर्षों में क्या किया गया है, इसके बारे में वे ज्यादा कुछ नहीं कहते हैं! लेकिन वे यह हवाला दे रहे हैं कि वे 2047 तक भारत को एक विकसित देश बना देंगे! पिछले दस वर्षों में उन्होंने एक ऐसे प्रधानमंत्री के रूप में अपनी छवि बनाई, जिसने एक भी प्रेस कॉन्फ्रेंस नहीं की, केवल खोखले नारे लगाए, जहर फैलाया और खास उद्योगपतियों को धन देने के अलावा हिंदू-मुसलमानों के बारे में ही बात की। मोदी ने अपने उद्योगपति मित्रों को मुफ्त में या कौड़ी के भाव में क्या कुछ नहीं दिया। इसका सीधा-सा मतलब है कि ‘मोदी की गारंटी’ असल में ‘बीरबाल की खिचड़ी’ जैसी है। इसलिए अब वे 2047 का झूठा लॉलीपॉप जनता के हाथ थमा रहे हैं…….

अब ये निर्णय लेने के दिन आ गए हैं कि अब तक के अनुभव को देखते हुए मोदी के सारे सन्दर्भों को पूरी तरह भुला दिया जाए या कानों में पत्थर डाल दिया जाए! अथवा इस पार्सल को वापस कूड़े के ढेर पर फेंक दिया जाए!?

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