न्यूज़ डेस्क
नेपाल में पीएम प्रचंड की पलटी मार राजनीति से सब दंग हैं। सत्ता वाले भी और विपक्ष भी राजनीति का ऐसा रंग कभी नहीं देखा था जैसा कि प्रचंड ने पेश किया है। जनता भी आवाक है और देश दुनिया भी राजनीति के इस खेल पर गहरी सांस ले रही है। इस खेल का नेपाल के भीतर और अंतर्राष्ट्रीय जगत पर क्या असर होगा इसे देखना बाकी है। दो महीने पहले सीपीएन नेता प्रचंड ने नेपाली कांग्रेस के साथ चुनाव लड़ा था। इस गठबंधन को सरकार बनाने के लिए बहुमत भी मिला लेकिन प्रधान मंत्री बनने के लिए प्रचंड अड़ गए और गठबंधन टूट गया। प्रचंड ने झट से ओली की पार्टी यूएमएल से साझा गठबंधन तैयार किया। कई और पार्टियों को मिलाया और पीएम की कुर्सी पर जा बैठे। ओली और प्रचंड में यह सहमति बनी कि बारी -बारी से ढाई -ढाई साल की पारी दोनों दलों की होगी। पहले ढाई साल के लिए प्रचंड पीएम बने। सब कुछ ठीक से चल ही रहा था कि अब प्रचंड ने फिर एक बार पलटी मारते हुए नेपाली कांग्रेस के साथ संपर्क बढ़ाया और राष्ट्रपति उम्मीदवार के लिए नेपाली कांग्रेस के नेता रामचंद्र पौंडवाल का समर्थन कर दिया। लेकिन बात यही तक की नहीं थी।
जब ओली ने इसका विरोध किया तो प्रचंड ने कांग्रेस उम्मीदवार का और भी पुरजोर समर्थन किया और अंत में ओली की पार्टी ने सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया। दूसरी तरफ, नेपाली कांग्रेस ने पौडयाल के दावे को मजबूती देने के लिए 8 पार्टियों के नेताओं की टास्क फोर्स बना दी। इससे भी बड़ी बात यह हुई कि इस टास्क फोर्स की मीटिंग प्रचंड की अगुआई में उनके ऑफिशियल रेसिडेंस में हुई। ओली और बिफर गए।इन पार्टियों के सांसदों से कहा गया कि वो प्रेसिडेंट इलेक्शन की वोटिंग से 2 दिन पहले यानी 7 मार्च को काठमांडू पहुंच जाएं। प्रचंड ने नेपाली कांग्रेस प्रेसिडेंट शेर बहादुर देउबा के साथ सीक्रेट मीटिंग भी की।
कई लोग मान रहे हैं कि नेपाल की सरकार अब गिर जाएगी। लेकिन प्रचंड ने इसका जुगाड़ कर लिया है।
सच तो यही है कि प्रचंड सरकार पर असर नहीं होगा। इसकी वजह यह है कि ओली की पार्टी सीपीएन यूएमएल के पास 79 सांसद थे। उसके अलायंस छोड़ने के बाद नेपाली कांग्रेस (89) गठबंधन में शामिल हो जाएगी।
कहा जा रहा है कि इसके पीछे सौदेबाजी भी साफ है। नेपाली कांग्रेस के रामचंद्र पौडयाल राष्ट्रपति बन जाएंगे। दूसरी तरफ, प्रचंड को शायद ढाई साल बाद प्रधानमंत्री की कुर्सी न छोड़नी पड़े। इसकी वजह यह है कि ओली इस शर्त पर सरकार और गठबंधन का हिस्सा बने थे कि पहले ढाई साल प्रचंड कुर्सी पर रहेंगे और इसके बाद ओली। अब चूंकि ओली ने गठबंधन छोड़ दिया है तो प्रधानमंत्री बनने का उनका सपना फिलहाल टूट गया है।
उधर ,ओली की पार्टी का आरोप है कि प्रचंड ने उसे गठबंधन छोड़ने पर मजबूर किया। वो मंत्रियों पर इस्तीफे देने का दबाव बना रहे थे। हैरानी की बात यह है कि प्रचंड ने फॉरेन मिनिस्टर बिमला राय पौडयाल को काठमांडू एयरपोर्ट से वापस बुला लिया था। वो एक कॉन्फ्रेंस के लिए जिनेवा जा रहीं थीं।
अब लेन-देन का फॉर्मूला बिल्कुल साफ है। नेपाली कांग्रेस का कैंडिडेट राष्ट्रपति बनेगा और प्रचंड प्रधानमंत्री बने रहेंगे, लेकिन नेपाली कांग्रेस और प्रचंड के रिश्ते कभी लंबे नहीं चले। लिहाजा इस बार यह साथ कितना लंबा होगा। इसका इंतजार करना होगा। उप-प्रधानमंत्री राजेंद्र सिंह लिंगदेन समेत राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी के 4 मंत्री पहले ही इस्तीफा दे चुके हैं।