कनाडा में संसद के निचली सदन हाउस ऑफ़ कॉमंस में एक प्रस्ताव पारित कर चीन को उकसाने वाला करवाई की है। इस प्रस्ताव में यह कहा गया है कि तिब्बत को खुद यह तय करने का अधिकार है कि वह किसके साथ रहना चाहता है।गौरतलब है कि चाइना पॉलिसी के तहत लगभग 7 दशक से चीन तिब्बत पर अपना अवैध कब्जा जमाये हुए है। चीन तिब्बत को अब अपने ही देश का हिस्सा मानता है।यह बात दिगर है कि चीन द्वारा तिब्बत पर अवैध कब्जा किए जाने के बाद से बड़ी संख्या में तिब्बती दूसरे देशों में निर्वाशित होकर भी चीन का विरोध करता है।तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा समेत हजारों लोग भारत में भी हैं जो अक्सर तिब्बत को लेकर चीन के खिलाफ प्रदर्शन करते रहते हैं।
एलेक्सिस ब्रुनेले ड्यूसेपे ने पेश किया था प्रस्ताव
कनाडा की संसद में सांसद एलेक्सिस ब्रुनेले ड्यूसेपे ने यह प्रस्ताव पेश किया था, जिसे सोमवार को मंजूर कर लिया गया।सदन में मौजूद सभी सांसदों ने प्रस्ताव के पक्ष में मतदान किया।हालांकि जिस दौरान यह प्रस्ताव लाया गया था ,उस वक्त सदन में पीएम जस्टिन ट्रुडो मौजूद नहीं थे।एक अन्य सांसद जूली ने एक्स पर लिखा कि आज इस प्रस्ताव को 1 साल की बहस के बाद मंजूर कर लिया गया। वहीं कनाडा तिब्बत कमेटी ने लिखा कि हमें खुशी है कि कनाडा की संसद ने सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित किया है। इसमें कहा गया है कि तिब्बत को अपने बारे में खुद फैसला लेने का अधिकार है।
प्रस्ताव में तिब्बत पर चीन के अवैध कब्जे की है बात
कनाडा की संसद में पारित इस प्रस्ताव में कहा गया है कि चीन ने तिब्बत पर अवैध कब्जा किया है। इसके अलावा अपनी साम्राज्यवाद नीति के तहत चीन वहां के कल्चर को भी खत्म करने का प्रयास कर रहा है ।सबसे अहम बात यह है कि प्रस्ताव में तिब्बत के लोगों को एक अलग मुल्क के तौर पर माना गया है और उन्हें अपने बारे में फैसला लेने का अधिकार दिया गया है। प्रस्ताव में कहा गया है कि तिब्बतियों को यह अधिकार है कि वह अपनी आर्थिक,सामाजिक, सांस्कृतिक और धार्मिक नीतियों को चुन सके।इसमें किसी बाहरी ताकत को दखल देने का अधिकार नहीं होना चाहिए।
चीन के मिथ्या प्रचार से मुकाबले में भी करेंगे मदद
इस प्रस्ताव में यहां तक कहा गया है कि चीन को कोई अधिकार नहीं है कि वह दलाई लामा के उत्तराधिकारी की प्रक्रिया में कोई दखल दे ।यही नहीं इस प्रस्ताव में यह भी कहा गया है कि हम तिब्बतियों की उस मिथ्या प्रचार से निपटने में मदद करेंगे जिसके तहत चीन कहता है कि तिब्बत उसका ही हिस्सा है। 1950 में तिब्बत पर चीन ने कब्जा जमा लिया था ।एक अन्य सांसद ने कहा कि कनाडा का यह प्रस्ताव बेहद अहम है और मानवाधिकारों की रक्षा के लिए जरूरी है।इस प्रस्ताव को हमेशा सरकारी रिकॉर्ड में रखा जाएगा।