सुदर्शन चक्रधर (चक्रव्यूह)
मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की दिल्ली के शराब घोटाले में गिरफ्तारी के बाद संभवत: यह पहला मौका है, जब किसी मुख्यमंत्री के पद पर रहते हुए गिरफ्तारी हुई और उसके बाद भी उसने इस्तीफा नहीं दिया। आम आदमी पार्टी के वरिष्ठ नेता और मंत्री एक सुर में कह रहे कि केजरीवाल इस्तीफा नहीं देंगे और अपनी सरकार तो वे जेल से ही चलाएंगे। सवाल उठता है कि क्या जेल में रहते हुए मुख्यमंत्री रहा जा सकता है? और क्या जेल से सरकार चलाई जा सकती है? संविधान इस पर मौन है इसलिए ये मुद्दा बहस का है। तमाम विशेषज्ञ भी मानते हैं कि संविधान में ऐसी कोई रोक नहीं है।
कानूनन कोई प्रतिबंध नहीं हैं, लेकिन प्रशासनिक रूप से ऐसा करना लगभग असंभव ही है। झारखंड विधानसभा के पूर्व स्पीकर इंदर सिंह नामधारी कहते हैं कि मुख्यमंत्री को जेल जाने पर इस्तीफा देना जरूरी नहीं है। ऐसा कोई प्रविधान नहीं है कि कोई जेल जाए, तो उसे पद छोड़ देना चाहिए, लेकिन लालू यादव से लेकर हेमंत सोरेन तक तमाम मुख्यमंत्रियों ने जेल जाने से पहले अपना इस्तीफा जो दिया, वह नैतिकता के आधार पर दिया। लेकिन अरविंद केजरीवाल ने इस्तीफा नहीं दिया, तो क्या उनकी नैतिकता मर गई? यह सवाल भी पूछा जा रहा है।
दरअसल, संविधान निर्माताओं ने कभी नहीं सोचा था कि ऐसी स्थिति भी आएगी कि कोई मुख्यमंत्री ऐसा करेगा। इसलिए इस संबंध में कोई प्रावधान नहीं है। सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील राकेश द्विवेदी कहते हैं कि संविधान में ऐसा कुछ लिखित नहीं है, लेकिन जेल से सरकार चलाना अब व्यावहारिक है और नैतिकता के खिलाफ भी है।
उधर, दिल्ली हाईकोर्ट ने अरविंद केजरीवाल को मुख्यमंत्री पद से हटाने की मांग वाली एक पीआईएल (यानी जनहित याचिका) पर सुनवाई करते हुए इसे खारिज कर दिया। कोर्ट ने सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील से ही पूछा कि क्या इसमें कोई कानूनी मनाही है? साथ ही कोर्ट ने कहा कि इसमें न्यायिक दखल आवश्यक नहीं है। अगर यह कोई संवैधानिक विफलता है, तो उपराज्यपाल उसे देखेंगे। उनकी सिफारिश पर राष्ट्रपति निर्णय लेंगे। यानी हाईकोर्ट ने गेंद अब उपराज्यपाल के पाले में डाल दी है।
हाईकोर्ट के अनुसार, यह विषय ऐसा नहीं है कि इस पर कोर्ट कोई आदेश दे। कोर्ट ने यह भी कहा कि हमने दिल्ली के एलजी का बयान भी अखबारों में पढ़ा है। हमें पता है कि ये मामला उनके संज्ञान में है। फिलहाल यह मामला उन्हें ही देखने दीजिए। राष्ट्रपति शासन लगाने का आदेश कोर्ट नहीं दे सकता! हम याचिका में लगाए गए आरोपों पर कोई टिप्पणी नहीं कर रहे हैं, लेकिन यह विषय ऐसा नहीं है कि इस पर कोर्ट कोई आदेश दे।
बता दें कि दिल्ली के उपराज्यपाल वीके सक्सेना ने कहा था कि राष्ट्रीय राजधानी वाली दिल्ली सरकार जेल से नहीं चलाई जाएगी! सक्सेना की यह टिप्पणी आम आदमी पार्टी के नेताओं के उन बयानों की पृष्ठभूमि में आई थी, जिसमें उन्होंने कहा था कि अरविंद केजरीवाल जेल में रहने के बावजूद मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा नहीं देंगे और जेल से ही सरकार चलाएंगे! अब अगर उपराज्यपाल मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को बर्खास्त करने की सिफारिश राष्ट्रपति से करते हैं, तो केजरीवाल को फिर सहानुभूति मिलेगी। क्योंकि मुख्यमंत्री को बर्खास्त करना मतलब पूरी सरकार को बर्खास्त करना होता है। अगर ऐसा हो गया तो फिर, आप पार्टी के तमाम कार्यकर्ता सड़कों पर उतरकर इस बात पर चिल्लाने लगेंगे कि भाजपा वालों ने एक चुनी हुई निर्वाचित सरकार को बर्खास्त कर दिया! इसकी पूरी सहानुभूति का लाभ केजरीवाल एण्ड आप कंपनी को मिलेगा! तो भाजपा के सामने और एक मुसीबत बढ़ गई है। मतलब केजरीवाल गले की ऐसी हड्डी बन गई है, जिसे आज की तारीख में भाजपा न निगल सकती है, न उगल सकती है…!
इसलिए अब देखना है कि भाजपा की मोदी सरकार, जो कि फिलहाल कार्यान्वित भी नहीं है, वो दिल्ली में राष्ट्रपति शासन लगाने की सिफारिश राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से करती है या फिर केजरीवाल को जेल से सरकार चलाने के लिए छोड़ देती है !
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