अखिलेश अखिल
बिहार में दलों की भरमार है और धर्म से ज्यादा वहां जाति का बोलबाला है। जितनी जातियां उतने जाति के नेता। सबके अपने खेल हैं और सबकी अपनी कहानी भी। इस सूबे में दर्जन भर से ज्यादा पार्टियां चुनावी कल में शामिल होती है। जीत हो या नहीं हो लेकिन वोट का बंटवारा जरूर कर देती है। यह वोट बाँटने की जो राजनीति है इसका लाभ बड़ी पार्टियां लेती रही है। लेकिन इस बारे क्या होगा कोई नहीं जानता। बीजेपी के नेतृत्व वाला एनडीए किसी भी सूरत में नीतीश कुमार को सबक सिखाने को तैयार है और सूबे की सभी 40 सीटों पर जीत हासिल करने के प्रयास में है। लेकिन क्या यह संभव है ?
बीजेपी के नेता और गृहमंत्री अमित शाह लगातार बिहार का दौरा करते रहे हैं। पिछले दौरे के दौरान शाह ने कहा था कि बिहार की सभी सीटों पर एनडीए की जीत होगी और बिहार की जनता नीतीश कुमार को सबक सिखाएगी। यह दावा आज भी बीजेपी के लोग कर रहे हैं। लेकिन क्या यह संभव है ?सियासी जानकारों के मुताबिक बीजेपी की ओर से बिहार की कई सीटों को लेकर एक इंटरनल सर्वे कराया गया था। उस सर्वे के रिपोर्ट काफी निराशाजनक थे। उस सर्वे में ये पाया गया कि 2019 में जेडीयू के हिस्से गई कई सीटों पर बीजेपी का स्पष्ट जनाधार नहीं है। उन सीटों पर एनडीए को मात खानी पड़ सकती है। यहीं से शुरू हुआ था बीजेपी के अंदर मंथन। मार्च 2023 तक अमित शाह चार बार बिहार का दौरा कर चुके थे। उस सर्वे का असर ये हुआ कि पार्टी की ओर से अपने घटक दलों पर ध्यान देना शुरू कर दिया गया। अमित शाह से लेकर जेपी नड्डा तक ने बिहार में अपने सहयोगियों को अभी से समझाना शुरू कर दिया है। बिहार की 40 सीटों पर कैसे कब्जा करना है। सूत्रों की मानें तो हाल के दिनों में बिहार एनडीए में शामिल घटक दलों के लिए बीजेपी ने सीट शेयरिंग का फॉर्म्युला भी तय कर लिया है। कहा जा रहा है कि बीजेपी की ओर से सब कुछ फिक्स कर दिया गया है। उसी राह पर एनडीए के सभी घटक दलों को चलने को कहा जाएगा। कुछ ऊंच-नीच होती है तो उसे केंद्रीय नेतृत्व की ओर से संभाला जाएगा।
अभी बिहार एनडीए की जो कहानी है उसके मुताबिक बीजेपी की सहयोगी पार्टी के रूप में चिराग और पशुपति पारस यानी चाचा -भतीजा हैं। इसके बाद उपेंद्र कुशवहा है और फिर जीतन राम मांझी हैं। हो सकता है कि चुनाव एते -आते कुछ और पार्टियां बीजेपी की सहयोगी बन जाये लेकिन अभी यही हाल है। उपेंद्र कुशवाहा की राजनीति कोइरी समाज तक है और इसमें कोई संदेह नहीं कि उपेंद्र कुशवाहा कुछ सेटों पर जदयू को टक्कर दे सकते हैं। लेकिन उनकी हालत यही है कि उनको बीजेपी दो से तीन सेट से ज्यादा नहीं दे सकती। जानकारी मिल रही है कि कुशवाहा पांच सीटों की मांग कर रहे हैं और बीजेपी अभी इस मुद्दे पर चुप है। हालांकि बीजेपी ने साफ कह दिया है कि सभी घटक दलों को सम्मान के साथ टिकट मिलेगा लेकिन कितना मिलेगा यह नहीं कहा गया है। उधर चिराग पासवान और उनके चाचा की अपनी कहानी है और अपनी राजनीति भी। वे पांच -पांच सीट मांग रहे हैं लेकिन बीजेपी ने तय कर लिया है कि चाचा -भतीजा मिलकर 6 से साथ सीटें ही उन्हें दी जा सकती है। और यही होगा भी। माझी की पार्टी को भी अधिकतम दो सीटें दी जा सकती है। इसके अलावा दो से तीन सीटें और भी किसी दल को दी जा सकती है। बीजेपी खुद 28 से 30 सीटों पर लड़ना चाहती है।
उधर बीजेपी ने आरसीपी को जदयू को तोड़ने का जिम्मा दे रखा है। संभव है कि आरसीपी अंत में कोई खेला कर भी जाएँ। जिस तरह की खबर आ रही है उसके मुताबिक जदयू से करीब चार पांच सांसदों के टिकट काट सकते हैं। इंडिया के बीच सीट शेयरिंग में ये सीटें किसी और पार्टी के पास जा सकती है। ऐसे नमे जदयू के कुछ नेता सीट पाने के लिए बीजेपी की तरफ जा सकते हैं और ऐसा होगा भी। अगर ऐसा हुआ तो बीजेपी को इन लोगों को भी मैदान में उतरना होगा। लेकिन बीजेपी का कहना है कि ऊके भी की संसद इस बार चुनाव नहीं लड़ पाएंगे। करीब पांच साँसड़फ़ोन को टिकट नहीं मिलेंगे। इनके नाम भी बिहार की सियासी गलियारों में तैर रहे हैं। अगर बीजेपी के कुछ लोगों को टिकट है मिलता ही तो जो लोग जदयू से बीजेपी में आएंगे उन्हें ये टिकट दी जा सकती है।
लेकिन सवाल है कि बीजेपी और उनके घटक दल जिन सीटों पर चुनाव लड़ेंगे उनमे से कितनी सीटें वे जीत पाते हैं यह काफी अहम् है। जनकर तो यह भी कह रहे हैं कि बीजेपी को घटक दलों को सीट देने के उन्हें चुनावी खर्च भी देने पड़ सकते हैं। जैसे कुशवाहा और मांझी की पार्टी की इतनी हैशियत नहीं है कि वह खुद के बल पर चुनाव लड़ सकें। ऐसे में यह भी संभव है कि बीजेपी ऐसे लोगों को ही मैदान में उतारेगी जो चुनाव जीतने के बाद बीजेपी के साथ आ जायेगे।
उधर इंडिया के बीच भी कम घमासान नहीं है। सूबे की 40 सीटों पर सबसे ज्यादा सीट राजद और जदयू को जाना है। कांग्रेस के खाते में सात से आठ सीटें देने की बात हो रही है। लेकिन मुश्किल है कि कांग्रेस में चुनाव लड़ने वाले बहुत से हो सकते हैं लेकिन जितने वाले चेहरे की काफी कमी है। यही हाल कई और दलों में भी है। राजद और जदयू 15 -15 सीटों पर चुनाव लड़ सकते हैं। एक सीट पर माले और एक सीट पर सीपीआई भी मैदान में उतरेगी। एक से दो सीटों पर कुछ और दलों को भी टिकट दिया जा सकता है। लेकिन सबसे बड़ी बात है कि माहौल क्या बनता है ? अगर इंडिया के पक्ष में माहौल बनता है तो बीजेपी साफ हो जाएगी और बीजेपी के पक्ष में माहौल बनता है तो उसे दस से 15 सीटें हाथ लग सकती है। और ऐसा भी हुआ तो एनडीए को कोई बड़ी हानि नहीं होगी। लेकिन यह सब माहौल पर ही निर्भर करता है।