Homeदेशकिंगमेकर रहे लालू यादव फिर से दिखेंगे किंगमेकर !

किंगमेकर रहे लालू यादव फिर से दिखेंगे किंगमेकर !

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अखिलेश अखिल 

पाटलिपुत्र की धरती पर राजद प्रमुख लालू यादव लम्बे समय के बाद पहुंचे हैं। कोई साथ महीने बाद पटना पहुंचे लालू यादव की रजड के लोगों ने खूब स्वागत किया। एयर पोर्ट से राबड़ी देवी के आवास दस सर्कुलर रोड तक फूलों की वर्षा होती रही और लालू यादव के समर्थन में नारे लगते रहे। बड़ा ही मनोरम दृश्य था। भारी भीड़ को लालू यादव सलाम करते आगे बढ़ते रहे और उनकी कमजोर हो चुकी काया से उनके लोग दुखी भी होते रहे। उनके स्वागत में राजद के लोग तो थे ही। बड़ी संख्या में महिलाये भी थी और युवा भी। वही युवा जो आज की राजद के पिलर हैं और जिस पर राजद और उसके नेता गुमान भी करते हैं। लालू यादव् अपनी पत्नी राबड़ी देवी के आवास पर पहुँच गए। उनका कोई अपना आवास तो है नहीं। जबतक राजनीति के शिखर पर रहे पुरे परिवार के साथ अपने आवास पर रहे। अब राबड़ी के आवास पर रहते हैं। यह भी राजनीति का खेल है।      
लेकिन लालू यादव के पटना पहुँचने से जहाँ उनके समर्थक और महागठबंधन के लोग फुले नहीं समा रहे वही बीजेपी की धड़कने बढ़ गई है। बीजेपी के कई लोग यह बात करते हैं कि पता नहीं अब पटना की राजनीति में क्या होगा ? लालू यादव क्या करेंगे ? बीजेपी को लालू  में उपस्थिति भारी लगती है। यह बात और है कि लालू यादव अब कोई सक्रिय राजनीति में नहीं है लेकिन उनकी निगाह बिहार की राजनीति को टटोलती रहती है और हर एक नेता की कहानी को पढ़ती रहती है। राजद से बीजेपी में गए मौजूदा कुशवाहा अभी बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष हैं। उनकी पूरी जन्मकुंडली लालू यादव के पास है। कुशवाहा अभी नीतीश कुमार पर पीले हुए हैं लेकिन यह खेल लालू यादव को पसंद नहीं। लोग कह रहे हैं कि इस खेल का काट भी लालू यादव निकल सकते हैं। खबर यह भी चली है कि बीजेपी के भीतर के कई नेता चुके से लालू यादव से मिलने को बेताब है। ये कौन से नेता हैं इसकी खोजबीन बीजेपी कर रही है। लेकिन किसी नाम अभी सामने नहीं आया है। लेकिन मिलने वालों को भला कौन रोक सकता है ?        
लालू यादव और आनंद मोहन के बीच कभी छत्तीस का आंकड़ा था। सीमांचल की राजनीति में एक तरफ आनंद मोहन की हुकूमत थी तो उस हुकूमत को चुनौती देने के लिए पापु यादव खड़े थे। पप्पू यादव पर लालू यादव का हाथ था। यह बात 90 की दशक की है। बिहार जल रहा था और चारो तरफ हिंसा ही हिंसा। जातीय खेल चरम पर था और लालू की तब तूती बोलती थी। लेकिन समय के साथ अब सब कुछ बदल गया। जातीय हिंसा रुक गई और वाम चरमपंथ भी ख़त्म हो गया। जो वाम चरमपंथी के नाम पर बिहार में हिंसा -प्रतिहिंसा का दौर था अब सब ख़त्म हो गया। अब आनंद मोहन जेल से बाहर निकले हैं। जी कृष्णैया हत्या कांड में वे दोषी थी और उम्र कैद की सजा उन्हें मिली थी। लेकिन जेल कानून में कुछ तब्दीली कर नीतीश सरकार ने उन्हें बाहर निकाल लिया है। आनंद मोहन की रिहाई को लेकर बीजेपी काफी तल्ख़ है। वही बीजेपी जो कभी मोहन को बहार निकालने के लिए नारे लगाती थी और दोष नीतीश सरकार पर मढ़ती थी। लेकिन बिहार की जनता को यह सब याद नहीं। आनंद मोहन की रिहाई पर कई सवाल उठ सकते हैं। यह रिहाई सही है या गलत इस पर बहस की जा सकती है।
अपराधियों को राजनीति में इंट्री को लेकर कई सवाल उठाये जा सकते हैं लेकिन यह सब मामला नैतिकता का हो जाता है। सवाल है कि क्या राजनीति करने वाले नैतिकता के बंधन मेंरहते हैं ? फिर कौन नेता नैतिक है ? किसकी राजनीति नैतिक है ? कितने नेता अपराध मुक्त हैं ? कौन भ्रष्टाचारी नहीं है ? बहुत से सवाल हैं। कहा जा रहा है कि लालू यादव आनंद मोहन से मिलेंगे और आगे की रणनीति पर बात करेंगे। जानकार कह रहे हैं कि आनंद मोहन की रिहाई से जुड़े बवाल जल्द ही ख़त्म हो जायेंगे। अब लालू यादव उनको बड़े काम पर लगा सकते हैं। पार्टी जोड़ने का काम और विपक्षी एकता के काम में नीतीश के साथ आगे बढ़ने का काम। बिहार के युवा आनंद मोहन के प्रति आज भी लगाव रखते हैं। विपक्ष को लग रहा है कि आनंद मोहन समाज के एक बड़े हिस्से हो पाने साथ खींच  सकते हैं।        
 नीतीश कुमार की राजनीति को आगे बढ़ाने के लिए लालू यादव पूरी तरह से तैयार हैं। लोग कहते हैं कि लालू यादव की नजर बिहार में तेजस्वी के लिए सीएम की कुर्सी पर टिकी है। लेकिन यह सब शिगूफा से ज्यादा कुछ भी नहीं। सच तो यही है कि लालू यादव की नजर नीतीश के नेतृत्व में अगले लोक सभा चुनाव में बीजेपी को मात देने की है। इस खेल को जायद पुख्ता रखने के लिए लालू यादव महागठबंधन के नेताओं से भी बात करेंगे और मुकेश साहनी से लेकर मांझी तक से भी बात करेंगे। लालू की कोशिश है कि महागठबंधन को और भी मजबूत किया जाए और इससे कोई भी पार्टी बाहर नहीं निकले।  
  लेकिन असली खेल तो कुछ और ही है। लालू यादव यह भी चाहते हैं कि उनकी उपस्थिति में पटना में विपक्षी एकता को लेकर कोई बड़ा जलसा हो। इस जैसे में सभी दलों के नेता शामिल हों। पिछले दिनों ममता बनर्जी से मिलने जब नीतीश कुमार कोलकता गए थे तो ममता ने खा था कि जेपी आंदोलन की शुरुआत पटना से ही हुई थी। उनकी चाहत है कि विपक्षी एकता की शुरुआत भी पटना से ही हों। संभव है कि लालू यह खेल कर भी जाएँ। कर्नाटक चुनाव के बाद वैसे भी कांग्रेस बैठक बुलाने को तैयार है लेकिन उस बैठक से पहले पटना की बैठक भी हो जाए तो कोई आश्चर्य नहीं।      लालू यादव का जलवा आज भी कायम है। उनका शरीर भले ही कमजोर हुआ है लेकिन उनकी राजनीति आज भी सक्रिय है। देश के ऐसे कोई भी नेता नहीं हैं जिनके साथ उनके सरोकार नहीं हों। खासकर समाजवादी घरों के साथ उनके सरोकार काफी मजबूत रहे हैं। उनका एक मात्र लक्ष्य बीजेपी को हारने की है और इस लक्ष्य में लालू की भूमिका को कमतर नहीं माना  जा सकता। वे तब भी किंगमेकर थे और आज भी उसी भूमिका में नजर आते हैं। कहा जा रहा है कि चिराग पासवान भी लालू यादव के साथ बैठक करेंगे और ऐसा हुआ तो खेल निराला होगा। 

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