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क्या हरियाणा में टूटेगा बीजेपी गठबंधन ,सहयोगी जजपा ने ओल्ड पेंशन स्कीम का किया वादा

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अखिलेश अखिल
हरियाणा में भी ओल्ड पेंशन स्कीम की राजनीति तेज हो गई है। लाखों कर्मचारी सड़क पर उतरकर इस योजना की मांग कर रहे हैं जिससे खट्टर सरकार परेशान हो गई है। खट्टर सरकार को लगने लगा है कि अगर ओल्ड पेंशन स्कीम को लागू नहीं किया गया तो चुनाव में बीजेपी को भारी नुकसान हो सकता है। लेकिन खट्टर से ज्यादा परेशान सरकार की सहयोगी पार्टी जजपा है। जजपा नेता दुष्यंत चौटाला खट्टर सरकार में उपमुख्यमंत्री है और उनकी पार्टी का बड़ा जनाधार कर्मचारियों के बीच है। इन्हे डर सता रहा है कि अगर राजस्थान ,छत्तीसगढ़ और हिमाचल की तरह ओल्ड पेंशन स्कीम को लागू नहीं किया गया तो आगामी चुनाव में पार्टी को हार का सामना करना पड़ेगा। उधर यही परेशानी बीजेपी के साथ भी है।

सरकारी कर्मचारियों की बढ़ती मांग और आंदोलन से डरकर दुष्यंत ने कर्मचारियों के सामने स्कीम लागू करने की हामी भर दी है लेकिन दिक्कत ये है कि केंद्रीय बीजेपी इस पर सहमत नही है। पीएम मोदी कह चुके हैं कि इस स्कीम की जगह नेशनल स्कीम लागू होगा लेकिन कर्मचारी इसे मानने को तैयार नहीं हैं। बता दें कि ओल्ड पेंशन स्कीम और नेशनल पेंशन स्कीम में चार फीसदी का अंतर है जिसे हरियाणा के पेंशनर और मौजूदा कर्मचारी मानने को तैयार नहीं हैं। पते की बात तो यह है कि अभी हरियाणा में ओल्ड पेंशन स्कीम पर फैसला बीजेपी के लिए आसान नहीं है। हरियाणा में भाजपा ओल्ड पेंशन स्कीम या नेशनल पेंशन स्कीम को लेकर कोई बड़ा फैसला लेती है तो उससे बीजेपी शासित दूसरे राज्यों की सरकारों पर भी दबाव पड़ेगा। देश में 15 ऐसे राज्य हैं जहां पर भाजपा और सहयोगी दलों की सरकारें अभी हैं। ऐसे में इन राज्यों में भी कर्मचारी ओपीएस को लेकर मांग तेज कर देंगे, जिससे आने वाले चुनावों में भाजपा के लिए मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं।

हरियाणा में लगभग 2.85 लाख कर्मचारी हैं और इतनी ही संख्या लगभग पेंशनरों की है। हाल ही में हिमाचल प्रदेश के चुनाव ओल्ड पेंशन मुद्दे ने बड़ी भूमिका निभाई है। खुद वहां के सीएम रहे जयराम ठाकुर ने पीएम नरेंद्र मोदी से मिलकर हार का ठीकरा पेंशन स्कीम पर फोड़ा। ऐसे में जजपा को भी अपने सियासी कामयाबी की चिंता सताने लगी। चूंकि छत्तीसगढ़, राजस्थान के बाद हिमाचल में भी कांग्रेस ने सत्ता में आते ही ओल्ड पेंशन स्कीम लागू कर दी तो ऐसे में कर्मचारी कांग्रेस के साथ जा सकते हैं। इसे देखते हुए जजपा ने पहले ही दांव खेल दिया।

जजपा के बदले रुख की एक वजह और भी है। जजपा भले ही भाजपा के साथ 2019 से हो लेकिन हरियाणा में BJP आठ साल से सत्ता में है। 2014 में भाजपा ने पूर्ण बहुमत से सरकार बनाई। ऐसे में जजपा को सत्ता विरोधी लहर का भी खतरा महसूस हो रहा है। जिसको लेकर जजपा ने अपनी स्थिति क्लियर करनी शुरू कर दी है।

ओपीएस की मांग को लेकर हरियाणा के कर्मचारी संघ सरकार को 25 अप्रैल तक का अल्टीमेटम दे चुके हैं। आंदोलन को सफल बनाने के लिए हरियाणा में कर्मचारी संगठनों ने रीच टू ईच प्लान तैयार किया है। 2023 में सभी कर्मचारी संगठन इसी प्लान पर जनवरी से अगस्त तक काम करेंगे। इस दौरान प्रदेश भर में सम्मेलन आयोजित किए जाएंगे। सितंबर में सभी कर्मचारी संगठन लामबंद होकर दिल्ली कूच करेंगे। हरियाणा बीजेपी इससे काफी डरी हुई है।

उधर अपनी नफा नुकसान का आकलन करते हुए हरियाणा के डिप्टी सीएम दुष्यंत चौटाला ओल्ड पेंशन स्कीम को लेकर बड़ा बयान दिया है। उन्होंने कहा कि उनकी इस मामले में मुख्यमंत्री मनोहर लाल से बातचीत हुई है। ओपीएस और एनपीएस में मात्र 4 फीसदी का ही अंतर है। 10 प्रतिशत हम जमा करते हैं और वह 14 प्रतिशत जमा करते हैं। हरियाणा भी जल्द प्रस्ताव लेकर आएगी।

दुष्यंत का यह बयान हरियाणा बीजेपी के लिए खतरे की घंटी है। खट्टर को लगने लगा है कि समय रहते इस मसले पर कोई ठोस निर्णय नही हुआ तो गठबंधन पर भी असर पड़ेगा और समय से पहले सरकार गिर जायेगी। उधर कांग्रेस ने ऐलान कर रखा है कि उसकी सरकार आते ही कर्मचारियों को ओल्ड पेंशन स्कीम दिया जायेगा। बीजेपी की परेशानी के साथ ही दुष्यंत की परेशानी बहुत कुछ कह रही है और इस बीच कांग्रेस की मजबूती बढ़ती जा रही है।

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