न्यूज डेस्क
बिहार विधान परिषद में भी आज जातिगत आरक्षण बढ़ने वाला विधेयक पास हो गया। कल ही विधान सभा में इसे पास किया गया था। अब इस विधेयक को दोनों सदनों से पास होने के बाद बिहार में आरक्षण की सीमा बढ़कर 50 से 65 फीसदी हो जाएगी। इसमें अगर आर्थिक रूप से कमजोर लोगों के लिए दस फीसदी आरक्षण को भी जोड़ दिया जाए तो बिहार में आरक्षण की यह सीमा 75 फीसदी हो जाएगी। लेकिन अब बड़ा सवाल है कि आरक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट का सख्त निर्देश तो यही है कि किसी भी सूरत में आरक्षण की सीमा 50 फीसदी से ज्यादा नहीं होनी चाहिए। ऐसे में सवाल है कि बिहार आरक्षण विधेयक को सुप्रीम कोर्ट में चुनौतिका सामना करना पड़ेगा ?
सुप्रीम कोर्ट ने 1992 में इंदिरा साहनी फैसले में आरक्षण की सीमा को 50 फीसदी तक ही तय किया था। हालांकि 2010 के एक दूसरे फैसले में शीर्ष अदालत ने राज्यों को फीसदी की सीमा से अधिक आरक्षण देने की सशर्त अनुमति भी दी है। अदालत ने यह शर्त रखी है कि राज्य चाहे तो राज्य सरकार 50 फीसदी से ज्यादा आरक्षण की सीमा को बढ़ा सकती है जिसे उचित ठहराने के लिए उसे वैज्ञानिक आंकड़े पेश करने होंगे।
मौजूदा समय में भी कई राज्यों में 50 फीसदी से ज्यादा आरक्षण है। पहला राज्य तो तमिलनाडु ही है। यहाँ एक आदेश के जरिये आरक्षण की सीमा 69 फीसदी कर दी गई। इसके साथ ही कई अन्य राज्यों में भी आरक्षण की सीमा बढ़ाई गई है। हालांकि इन राज्यों में अदालती चुनौती का सामना भी करना पर रहा है। जिन राज्यों को अदालती चुनौती का सामना करना पड़ है है उनमे शामिल राज्य है हरियाणा ,झारखंड ,मध्यप्रदेश ,महाराष्ट्र और राजस्थान। इन राज्यों में भी 50 फीसदी से ज्यादा आरक्षण लागू तय किये गए हैं। अभी ये सभी राज्य अदालती चुनौती के अधीन हैं।
इसके अलावा केंद्र सरकार ने 2019 में आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों को 10 फीसदी आरक्षण देने के लिए 103वां संविधान संशोधन किया। इसके तहत अनुच्छेद 15 में एक नए खंड को शामिल किया गया। जब केंद्र के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती मिली, तो उसने दलील दी कि अनुच्छेद 15 में नया खंड जोड़ने से 50% की अधिकतम सीमा लागू करने का सवाल कभी नहीं उठ सकता है जो राज्य को ईडब्ल्यूएस की बेहतरी और विकास के लिए विशेष प्रावधान बनाने का अधिकार देता है।
जानकार कह रहे हैं कि बिहार का यह आरक्षण लागू होगा ,क्योंकि सुप्रीम कोर्ट के दिशा निर्देश को ही माने तो शीर्ष अदालत 2010 में ही कह चुका है कि कोई वैज्ञानिक आकंड़ा सामने आने के बात अगर जातिगत आरक्षण की बात आगे बढ़ती है तो उसे देखा जा सकता है। ऐसे में नीतीश सरकार यह कह सकती है कि उनकी सरकार ने आरक्षण की सीमा बढ़ाने से पहले जातिगत सर्वे कराया है। और फिर सर्वे के बाद जो जातिगय स्थिति सामने आई है उसके मुताबिक ही आरक्षण की सीमा बधाई गई है। संभव है बिहार सरकार और सुप्रीम कोर्ट के बीच इस मुद्दे पर बातचीत होगी लेकिन जानकार यह मान रहे हैं कि अगर सर्वे वैज्ञानिक तरके से हुए हैं तो आरक्षण की सीमा बढ़ाने की बात को अदालत भी मान सकती है।