अखिलेश अखिल
पांच राज्यों में चुनाव और फिर लोकसभा चुनाव को लेकर मुंबई में इंडिया और एनडीए की बैठक के बीच अचानक संसद के विशेष सत्र की घोषणा कोई कम आश्चर्य की बात नहीं है। अभी कुछ दिन पहले ही तो संसद का मानसून स्तर शुरू हुआ था और हंगामे की भेंट चढ़ते हुए सत्र की समाप्ति भी हो गई। सत्र के दौरान लग रहा था कि दो गुटों के बीच कोई निजी लड़ाई चल रही हो। कोई किसी से सहमत नहीं। कोई किसी पर ऐतबार करने को राजी नहीं और कोई किसी के साथ देश और समाज की बेहतरी की बात करने पर सहमत नहीं।
यह सब आजादी के अमृतकाल में होता दिखा। सत्ता पक्ष और और विपक्ष के बीच ऐसी खींचतान और शायद दुश्मनी की कथा इससे पहले कभी देखी नहीं गई। लगता है कि कि पूरी मौजूदा राजनीति बदले की भावना में बदली हुई है। देश भी दो ध्रुवों पर है। समाज के कुछ लोग एक वर्ग के साथ नारे लगते दिख रहे हैं तो दूसरा वर्ग विपक्ष के साथ खड़ा दिख रहा है। एक तीसरा वर्ग भी है जो न इधर और न ही उधर। यह वर्ग निर्गुट है। यह सबके साथ है और सबके खिलाफ भी। इसी वर्ग को पकड़ने की कोशिश की जा रही है। जिसके पास यह वर्ग चला गया उसकी सत्ता निश्चित है।
लेकिन सवाल है कि चुनावी मूड में खड़े देश के भीतर संसद के विशेष सत्र की जरूरत क्यों आ पड़ी। क्या चीन की हड़कत पर कोई चर्चा होगी ?क्या पकिस्तान को लेकर संसद में कोई बात रखी जाएगी ?या फिर चुनाव से पहले संसद में कुछ बिलों को अंतिम रूप दिए जाने की बात है। कुछ भी हो सकता है। कहने को तो संसद जनता की सबसे बड़ी पंचाहैत है लेकिन इस संसद की अब पहले वाली गरिमा रही कहाँ ! यहाँ भी तो झूठ बोली जाती है और जनता की आवाज को दबाया भी जाता है। लेकिन फिर वही सवाल कि विशेष सत्र की जरूरत क्यों ?
बता दें कि केंद्र सरकार ने 18-22 सितंबर को संसद का विशेष सत्र बुलाया है। गुरुवार को केंद्रीय संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी ने इसकी जानकारी दी। उन्होंने बताया कि विशेष सत्र की पांच बैठकें की जाएंगी। राजनीतिक मामलों की कैबिनेट समिति (सीसीपीए) ने विशेष सत्र बुलाने का निर्णय लिया और इसकी विधिवत जानकारी संसद को दी। सूत्रों के मुताबिक विशेष सत्र के दौरान कोई प्रश्नकाल, कोई शून्यकाल और कोई निजी सदस्य कार्य नहीं होगा। सरकार विशेष सत्र के दौरान भारत की जी20 अध्यक्षता और जी20 शिखर सम्मेलन पर चर्चा कर सकती है। लेकिन यह भर है। कहानी की अहइ यह किसी को पता नहीं। कहानी तो केवल सरकार ही जानती है।
जानकारी के मुताबिक इस विशेष सत्र के दौरान एक देश एक चुनाव, समान नागरिक संहिता और महिलाओं के आरक्षण के मुद्दों पर विधेयक पेश करने के अनुमान जताया गया है। संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी ने विशेष सत्र को लेकर कहा, “अमृत काल के बीच संसद में सार्थक चर्चा और बहस की उम्मीद है। “
एक देश एक चुनाव के तहत लोकसभा चुनाव और अलग-अलग राज्यों की विधानसभा चुनावों को एक ही समय पर कराया जाएगा। पहले भी कई दफा इस कानून को लाने पर विचार किया गया है। इस बारे में विधि आयोग से अध्ययन भी किया है।
समान नागरिक संहिता का मकसद सभी धर्म, जाति, पंथ, सेक्सुअल ओरिएंटेशन और लिंग के लिए एक कानून लाना है। इसके तहत व्यक्तिगत कानून, विरासत, गोद लेने और उत्तराधिकार से संबंधित कानूनों को एक सामान्य संहिता के तहत लाने की संभावना है।
बता दें कि पहले भी कई सरकारों के दौरान संविधान दिवस और कई विशेष अवसरों को मनाने के लिए दोनों सदनों की कई विशेष सत्र और बैठकें बुलाई हैं।जानकारी के मुताबिक, तमिलनाडु और नगालैंड में राष्ट्रपति शासन की अवधि बढ़ाने के लिए फरवरी 1977 में दो दिनों के लिए राज्यसभा का विशेष सत्र बुलाई गई थी। इसके अलावा अनुच्छेद 356(3) के तहत हरियाणा में राष्ट्रपति शासन की मंजूरी के लिए 3 जून 1991 को एक और दो दिवसीय विशेष सत्र (158वां सत्र) आयोजित किया गया। जुलाई 2008 में मनमोहन सिंह सरकार से समर्थन वापस लिए जाने के बाद लोकसभा का विशेष सत्र बुलाया गया था।
लेकिन ध्यान देने की बात यह है कि इन पांच दिनों के विशेष सत्र में अगर महिला आरक्षण बिल और यूसीसी पर कोई बड़ा फैसला हो गया तो चुनावी राजनीति का खेल से बदल सकता है। बीजेपी का यह अंतिम ब्रम्हास्त्र हो सकता है। इंडिया का खेल तब बिगड़ सकता है। और बीजेपी अब अंतिम बारी में यह खेल कर सकती है। यह भी संभव है कि एक देश और एक चुनाव को लेकर भी चर्चा की जाए। कुल मिलकर कुछ ऐसी परिस्थिति पैदा की जाए टाक देश को पता चले कि इंडिया वाले देश के साथ कुछ भी बेहतर नहीं करना चाह रहे हैं।


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