विकास कुमार
केंद्रीय अर्धसैनिक बलों के जवान और अफसर बड़ी संख्या में नौकरी छोड़ रहे हैं। दरअसल सीआरपीएफ, बीएसएफ, आईटीबीपी, एसएसबी, सीआईएसएफ, असम राइफल्स और एनएसजी को केंद्रीय अर्धसैनिक बल कहा जाता है। सवाल उठता है कि ऐसी क्या मजबूरी है कि पिछले पांच साल में केंद्रीय अर्धसैनिक बलों के 47 हजार जवानों और अधिकारियों ने नौकरी छोड़ दी। इन सभी ने अच्छी खासी नौकरी से वीआरएस ले लिया,इतना ही नहीं 6 हजार 3 सौ 36 जवान और अफसर ऐसे भी रहे हैं, जिन्होंने नौकरी से ही रिजाइन दे दिया। साल 2018 से लेकर 2022 के बीच 6 सौ 58 जवानों ने आत्महत्या कर ली है। वीआरएस लेने वालों में बीएसएफ के कार्मिक पहले नंबर पर हैं, जबकि सीआरपीएफ का नंबर दूसरा है।
- सीआरपीएफ के 230 पर्सनल ने की खुदकुशी
- बीएसएफ के 174 पर्सनल ने कर ली है खुदकुशी
- सीआईएसएफ के 91 स्टाफ ने की है खुदकुशी
- एसएसबी के 65 स्टाफ ने की है आत्महत्या
- आईटीबीपी के 51 स्टाफ ने कर ली है आत्महत्या
- असम राइफल के 47 और एनएसजी के करीब 6 जवानों ने की खुदकुशी
अर्ध सैनिक बल के पूर्व अफसर बताते हैं कि सरकार इस मामले में झूठ बोल रही है कि आत्महत्या के पीछे घरेलू वजह होती हैं,जबकि उनकी ड्यूटी पर क्या परेशानी है, इस बारे में सरकार कोई बात नहीं करना चाहती है।आतंक, नक्सल, चुनावी ड्यूटी, आपदा, वीआईपी सिक्योरिटी और अन्य मोर्चों पर इन बलों के जवान तैनात हैं। इसके बावजूद उन्हें सिविल फोर्स बता दिया जाता है। अर्धसैनिक बल के जवानों को पुरानी पेंशन से वंचित रखा जा रहा है। सिपाही से लेकर कैडर अफसरों तक के प्रमोशन में लंबा वक्त लग रहा है। इसी का नतीजा है कि जवान टेंशन में रहने लगते हैं।
केंद्रीय अर्धसैनिक बलों की मांग है कि उन्हें भारतीय सेना के बराबर शहीद का दर्जा मिले,साथ ही कई जगहों पर इन जवानों पर वर्कलोड काफी ज्यादा है। जवान ठीक से सो तक नहीं पाते हैं,कई बार सीनियर की डांट फटकार भी जवान को आत्महत्या की दहलीज तक ले जाते हैं। वहीं समय पर प्रमोशन या रैंक न मिलना भी जवानों को तनाव देता है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने 2019 में सीएपीएफ जवानों को एक साल में 100 दिन की छुट्टी देने की घोषणा की थी,लेकिन अभी तक किसी भी बल में यह योजना लागू नहीं हो सकी है।
भारत सरकार को केंद्रीय अर्धसैनिक बलों की समस्या को दूर करना होगा,तभी जाकर इस समस्या से निजात मिलेगी।